‘सुप्रीम’ सख्ती
बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार (इन्सेफलाइटिस) से बच्चों की लगातार हो रही मौतों पर सर्वोच्च न्यायालय का बिहार सरकार के प्रति सख्त रुख बिल्कुल सही है।
‘सुप्रीम’ सख्ती |
उसने सरकार से साफ कहा है कि बुखार से हर बार मौतें जारी नहीं रह सकतीं। न्यायालय ने इलाज में कोताही बरतने के बारे में जवाब देने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश सरकारों को सात दिनों का वक्त दिया है। मनोहर प्रताप की याचिका पर अदालत ने दोनों सरकारों से जवाब-तलब किया है। गौरतलब है कि एक छोटे से इलाके में पिछले एक पखवाड़े के दौरान करीब 170 मासूमों की जान जा चुकी है। मगर सरकार के स्तर पर अभी भी भारी कोताही देखी जा रही है। अदालत का तल्ख लहजा शायद सरकार की इसी घनघोर लापरवाही और चरम पर पहुंची उसकी संवेदनहीनता पर जाहिर हुआ है। अदालत ने न केवल लचर और पस्त स्वास्थ्य सुविधाओं पर अपना गुस्सा जाहिर किया वरन पोषण और साफ-सफाई के मामले पर भी सरकार से जवाब देने को कहा है। खास तौर पर बिहार सरकार के बेहद सतही रवैये पर अदालत ज्यादा खफा नजर आई। कायदे से देखें तो बिहार में न तो ढंग के सरकारी अस्पताल हैं, न फाम्रेसी है, न नर्स हैं, न दवा है, न सफाई है, न डॉक्टरों की पर्याप्त संख्या और न सरकार के स्तर पर संवेदना और संजीदगी है। वरना यह कैसे हो सकता है कि पिछले 20 दिनों मासूमों की सांसों की डोर लगातार टूटती रहे और सरकार हाथ-पर-हाथ धरे बैठी रहे? इसे एक तरह का आपराधिक कृत्य कहा जाएगा।
देखना होगा अदालत की सक्रियता के बाद बिहार सरकार जवाब के नाम पर क्या कुछ पेश करती है? यह भी अजीब विडंबना है कि आजादी के इतने सालों बाद भी हम ढंग के अस्पताल तक तैयार नहीं कर पाए हैं? यह सरकारी तंत्र की नाकामी और काहिली ही कही जाएगी। हालांकि अब भी वक्त जाया नहीं हुआ है। राज्य सरकार जो अब तक इस मामले में नीम बेहोशी में थी, वह जाग जाए और अपने नागरिकों के लिए कुछ अच्छा करे। सरकारी अस्पतालों की कालबद्ध बेहतरी की ठोस योजना बनाए। इसके लिए उसे जनता और अदालत का विश्वास जीतना होगा। ‘डबल इंजन’ (भाजपा-जदयू) की सरकारों पर जनता ने अटूट भरोसा जताया है। ऐसे में उसका भी फर्ज है कि वह जनता की आस्था का उसी निष्ठा से सम्मान करे। यही देश की जनता चाह रही है।
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