नया बवंडर
फ्रांस के एक समाचार पत्र द्वारा अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस कम्युनिकेशंस की अनुषांगिक कंपनी को निर्धारित करों में छूट की खबर का भारत में राजनीतिक मुद्दा बनना बिल्कुल स्वाभाविक है।
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जिस तरह विपक्षी दल और कुछ मीडिया संस्थान राफेल को भ्रष्टाचार का मुद्दा बनाने पर तुले हैं, उसमें यह खबर उनके लिए मुंहमांगा अवसर है। इसके अनुसार अंबानी की कंपनी पर अखबार की खबर के मुताबिक रिलायंस कम्युनिकेशन की संबद्धी अनुषंगी कंपनी फ्रांस में पंजीकृत है और दूरसंचार क्षेत्र में काम करती है।
समाचार पत्र के अनुसार फ्रांस के कर अधिकारियों ने रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस से 15.1 करोड़ यूरो के कर की मांग की थी, लेकिन 73 लाख यूरो में यह मामला सुलट गया। इसकी बात मानें तो फ्रांस के कर अधिकारियों ने इस पेशकश को पहले अस्वीकार कर दिया था, मगर राफेल सौदे की घोषणा के छह महीने बाद 73 लाख यूरो की पेशकश स्वीकार कर ली। प्रश्न है कि क्या इस मामले को राफेल से जोड़कर देखा जा सकता है?
फ्रांस की ओर से आए स्पष्टीकरण में कहा गया है कि फ्रांस के कर अधिकारियों और रिलायंस फ्लैग के बीच समझौता हुआ था और विधायी एवं नियामकीय ढांचे के पूर्ण अनुपालन में कर मामले को सुलटाया गया था। इसमें किसी प्रकार के राजनीतिक हस्तक्षेप से फ्रांस सरकार ने इनकार किया है। वास्तव में हर मामले को राफेल से जोड़कर देखना उचित नहीं है। भारत की कई कंपनियां फ्रांस और अन्य देशों में काम करतीं हैं। करों को लेकर ऐसे मामले आते हैं और अंतत: समझौते द्वारा उसका हल निकलता है। फ्रांस में इस तरह की प्रणाली है, जहां करों के मामले सुलझाए जाते हैं।
रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस ने अपने ऊपर लगाए गए करों के खिलाफ वहां मामला दायर करते हुए इसे पूरी तरह अमान्य एवं गैरकानूनी कहा था। उसके बाद मामला चलता रहा। वैसे रिलायंस कम्युनिकेशंस ने भी अपना स्पष्टीकरण दे दिया है, पर इस समय के माहौल में उसकी बात कोई सुन नहीं सकता। सच जो भी हो चुनाव अभियान के बीच इस तरह की खबर के कारण भाजपा को स्पष्टीकरण देना पड़ रहा है। हमारा मानना है कि मामला जब सर्वोच्च न्यायालय में फिर से आ गया है तो उसके फैसले की प्रतीक्षा की जाए। न्यायालय उचित समझेगा तो यह विषय भी अपनी सुनवाई के दायरे में लाएगा।
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