ब्रिटेन का रवैया
ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरेजा मे का जालियांवाला बाग नरसंहार की सौंवीं वार्षिकी पर इसे ब्रिटिश इतिहास का शर्मनाक धब्बा कहना महत्त्वपूर्ण है।
ब्रिटेन का रवैया |
हालांकि उन्होंने जिस तरह मीडिया को बुलाकर बयान दिया, उससे साफ लगता है कि वो भारत के साथ संबंधों के महत्त्व को समझतीं हैं। उनको लगता है कि जालियांवाला बाग की पीड़ा आज भी भारतीयों को सालता है। इसलिए अपने बयान से उन्होंने इसे सहलाने की कोशिश की। ऐसा लगता है कि ब्रिटेन ने पहले से इसकी तैयारी कर रखी थी कि भारतीयों को इस अवसर पर सही संदेश दे। भारत में ब्रिटेन के उच्चायुक्त डोमिनिक एस्क्विथ अमृतसर स्थित जालियांवाला बाग स्मारक जाकर मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी और पुष्प चक्र अर्पित किया। एस्क्विथ ने स्मारक पर आगंतुक पुस्तिका में जो लिखा वह काफी महत्त्वपूर्ण है।
उन्होंने लिखा कि 100 साल पहले हुई जलियांवाला बाग की घटना ब्रिटिश-भारतीय इतिहास में एक शर्मनाक कृत्य है। जो भी हुआ और उसकी वजह से जो पीड़ा पहुंची, उसके लिए हम गहरा खेद व्यक्त करते हैं। वैसे पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने भी अपनी भारत यात्रा के दौरान खेद व्यक्त किया था और जलियांवाला बाग त्रासदी को अत्यंत शर्मनाक घटना करार दिया था। महारानी (एलिजाबेथ द्वितीय) ने भी घटना को भारत के साथ ब्रिटेन के बीते इतिहास का एक बेहद कष्टप्रद अध्याय बताया था।
एस्क्विथ ने अमृतसर में मीडिया से बात करते हुए कहा कि 1908 से 1916 तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे उनके परदादा एच एच एस्क्विथ ने जलियांवाला बाग त्रासदी को वीभत्स अत्याचारों में से एक करार दिया था। यह हम पर निर्भर है कि हम ब्रिटेन के इस आचरण को किस तरह लेते हैं। जालियांवाला बाग में जनरल डायर ने जिस निर्दयता से निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवाई, वह दुनिया के इतिहास की शर्मनाक नरसंहारों में शामिल है। वैसे भी ब्रिटेन किन-किन प्रसंगों पर खेद व्यक्त करेगा? आज दोनों देशों के बीच बहुआयामी द्विपक्षीय संबंध हैं और उसे प्रगाढ़ बनाने में ही हमारा भी हित है। टेरेजा मे ने लंदन में और ब्रिटिश प्रतिनिधि के रूप में एस्क्विथ ने अमृतसर में इसी भावना पर बल दिया है। हम उस घाव को भूल नहीं सकते लेकिन आगे बढ़ने में ब्रिटिशकालीन शासकीय अपराधों को बाधा भी नहीं बनने दे सकते।
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