लाज नहीं आती उनको
लोक सभा चुनाव का प्रचार अभियान अपने चरम पर है और इस बीच राजनीतिक नेताओं की बदजुबानी भी जारी है।
लाज नहीं आती उनको |
ताजा प्रसंग उत्तर प्रदेश के रामपुर से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आजम खान का है। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा प्रत्याशी जयाप्रदा के विरुद्ध अश्लील और अमर्यादित बयान देकर जनप्रतिनिधिक लोकतंत्र को शर्मसार किया है। हालांकि उनके विरुद्ध केस दर्ज किया गया है और राष्ट्रीय महिला आयोग ने कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है, लेकिन ऐसे नेताओं के खिलाफ चुनाव आयोग को कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई और इस तरह की अश्लील टिप्पणी करने से पहले सौ बार सोचे। चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है और लोकतंत्र को शर्मसार करने वाले ऐसे नेताओं के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने के लिए उसके पास पर्याप्त अधिकार है।
अभी पिछले दिनों सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बसपा नेता मायावती ने क्रमश: मेरठ और बदायूं में सामाजिक ध्रुवीकरण करने से संबंधित भाषण दिया था। चुनाव आयोग ने इन दोनोें नेताओं के विरुद्ध कड़ा कदम उठाया और योगी आदित्यनाथ के चुनाव प्रचार पर 72 घंटे और मायावती पर 48 घंटे की रोक लगा दी है। जाहिर है कि ये दोनों दूसरे चरण के मतदान तक सभा और रैली नहीं कर पाएंगे। लेकिन आजम खान तो मर्यादा की सभी सीमा ही लांघ गए। उन्होंने समूची महिला आबादी का अपमान किया है। अगर लोकतंत्र को बचाना है तो उनकी उम्मीदवारी रद्द करते हुए 10 साल तक उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। जनप्रतिनिधिक लोकतंत्र के कुछ सिद्धांत होते हैं। चुनावी राजनीति में हिस्सा लेने वाले सभी राजनीतिक दल मतदाताओं के समक्ष देश के ज्वलंत सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मुद्दों से संबंधित अपनी नीतियां और कार्यक्रमों को प्रस्तुत करते हैं। इनके आधार पर ही मतदाता दलीय अथवा निर्दलीय उम्मीदवारों को वोट देते हैं। लेकिन क्या भारत का एक भी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल इस कसौटी पर खरा उतर पाएगा? इसका उत्तर हमें ‘नहीं’ में ही मिलेगा। तटस्थ मूल्यांकन किया जाए तो पिछले सत्तर वर्षो में हमारा लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाएं सुदृढ़ होने के बजाय कमजोर ही हुई हैं। परंतु लोकतंत्र की बुनियादी शतरे को पूरा किये बगैर मजबूत लोकतांत्रिक भारत का निर्माण संभव नहीं है।
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