यदि शेषन होते..
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिख कर देश के साठ से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और कामकाज के तरीकों पर सवाल उठाये हैं, जो सर्वाधिक चिंता की बात है।
यदि शेषन होते.. |
ऐसे कुछ मामलों के उदाहरण भी दिये हैं, जो चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आते हैं।
मसलन, भारत की पहली उपग्रहभेदी मिसाइल के सफल परीक्षण की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गई घोषणा, मोदी पर बनी वेब सीरिज ‘मोदी : ए कॉमन मेन्स जर्नी’ को रिलीज करने की अनुमति देना, नमो टीवी चैनल की शुरुआत, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा भारतीय सेना को मोदी सेना बताना। जाहिर है पहली नजर में ये सभी मामले आचार संहिता का उल्लंघन करते दिखाई दे रहे हैं। इन सभी मामलों में चुनाव आयोग ने महज नोटिस जारी करके अपना पल्ला झाड़ लिया, जबकि उसे कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत थी।
चुनाव आयोग स्वायत्त संवैधानिक संस्था है और देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने के लिए उसे संविधान के अनुच्छेद 324 से पर्याप्त अधिकार मिला हुआ है। लोगों को पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का कार्यकाल याद होगा, जब उन्होंने चुनाव आयोग की भूमिका को काफी प्रभावशाली बना दिया था। उन्होंने राजनीतिक दलों के बाहुबली नेताओं को आचार संहिता के दायरे में रहने के लिए मजबूर कर दिया था। टीएन शेषन को जो संवैधानिक अधिकार मिले थे, वे वर्तमान के मुख्य चुनाव आयुक्त को भी प्राप्त हैं।
अहम सवाल है कि आप इन अधिकारों का इस्तेमाल कर पाते हैं या नहीं। भारतीय लोकतंत्र को गढ़ने और संवारने में चुनाव आयोग की महत्ती भूमिका रही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो से विपक्षी राजनीतिक दलों के नेता इसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। वर्तमान लोक सभा का चुनाव सात चरणों में हो रहा है। इसे चुनाव आयोग की सुस्ती मानते हुए उसकी आलोचना हो रही है।
यह सच है कि अब मतदान के दौरान पहले जैसे बूथ कब्जे या अन्य आपराधिक घटनाएं नहीं हो रही हैं। बावजूद इसके अगर चुनावी प्रक्रिया दो महीने तक चले तो सवाल तो उठता ही है, जिसका जवाब चुनाव आयोग को देना चाहिए। देर से ही सही चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बनी बायोपिक पर रोक लगा कर अपनी साख बचाने का प्रयास किया है। आगे भी उसे इसी दृढ़ता से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिए ताकि उसकी गरिमा और प्रतिष्ठा कायम रहे।
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