खत्म हो विवाद
उच्चतम न्यायालय द्वारा मतगणना के दौरान ईवीएम के मतों को वीवीपैट पर्चियों से मिलान की संख्या पांच करने के बाद जारी विवाद शांत हो जाना चाहिए था।
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अभी तक चुनाव आयोग प्रत्येक विधान सभा में एक मतदान केन्द्र से वीवीपैट पर्चियों का मिलान करता था।
अब उसे प्रत्येक विधानसभा के पांच मतदान केन्द्रों का मिलान करना होगा। आखिर वीवीपैट से मिलान का उद्देश्य क्या है? इससे यह सत्यापित हो जाता है कि ईवीएम का आंकड़ा वीवीपैट में भी हूबहू मिल जाता है। आप किसी भी मतदान केन्द्र का ईवीएम उठाकर वहां की वीवीपैट से मिलान कर दीजिए। अगर मिलान शत-प्रतिशत सही है तो फिर शंका का कोई कारण नहीं होना चाहिए।
वास्तव में न्यायालय के फैसले के बाद कांग्रेस का नकारात्मक बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रेस कह रही है कि यह फैसला तर्कसंगत नहीं है और इस पर पुनर्विचार होना चाहिए। कांग्रेस सहित सारे दलों को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ की समझ पर विश्वास करना चाहिए। इनने दोनों पक्षों की पूरी बात सुनने के बाद फैसला दिया है। 21 विपक्षी दलों ने वीवीपैट से कम से कम 50 प्रतिशत ईवीएम के मिलान का आयोग को आदेश देने की अपील की थी।
न्यायालय ने आयोग का पक्ष जाना और हर उस प्रश्न का जवाब दिया जो विपक्षी दल उठा रहे थे। चुनाव आयोग ने न्यायालय को स्पष्ट बताया कि ईवीएम बिल्कुल सुरक्षित प्रणाली है और इसमें छेड़छाड़ की संभावना पैदा ही नहीं होती। बावजूद विपक्षी दलों द्वारा बार-बार संदेह जताने पर सभी ईवीएम को वीवीपैट से जोड़ दिया गया है। पहली बार चुनाव में ऐसा हो रहा है। इसमें विपक्षी दलों के मतगणना एजेंट जिस भी ईवीएम को चाहें वीवीपैट से मिलान कर सकते हैं।
वस्तुत: चुनाव आयोग का तर्क था कि 50 प्रतिशत मिलान के मतगणना केन्द्र का बहुत ज्यादा विस्तार करना होगा, गणनाकर्मिंयों की संख्या भी काफी बढ़ानी होगी और इसमें कई दिनों का समय लग जाएगा। परिणाम आने में चार से पांच दिन का समय लगने की बात आयोग ने न्यायालय को बताया। कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को समझना चाहिए कि सभी पक्षों की गहन विवेचना के बाद न्यायपीठ को लगा है कि इनकी मांग न तर्कसंगत है और न जरूरी ही। दुर्भाग्य से कुछ विपक्षी दल जानबूझकर इसे मुद्दा बनाए हुए हैं। इस पर अब पूर्ण विराम लगना जरूरी है।
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