मजबूत हुआ लोकतंत्र
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद की राजनीतिक पार्टी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) को संसदीय चुनावों में भारी जीत हासिल हुई है।
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इस जीत से मालदीव में राजनीतिक स्थिरता आएगी। पिछले साल दिसम्बर में एमडीपी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को हराया था। इस तरह करीब तीन सालों से चले आ रहे यामीन के सर्वसत्तावादी निरंकुश शासन का अंत हुआ।
राष्ट्रपति के चुनाव के बाद अब संसदीय चुनावों में एमडीपी की जीत मालदीव और भारत, दोनों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। पहली बात यह है कि यामीन के सर्वसत्तावादी शासन से पीड़ित पूर्व राष्ट्रपति नशीद का निर्वासन समाप्त हुआ और उनकी घर वापसी हुई और दूसरे हिंद महासागर के इस द्वीप में राजनीतिक स्थिरता और लोकतंत्र के नये प्रयोग की शुरुआत होगी। नशीद भारत के अच्छे मित्र माने जाते हैं।
गौर करने वाली बात है कि मालदीव में दशकों तक जारी निरंकुश शासन के बाद 2008 में बहुपक्षीय लोकतंत्र बहाल हुआ था, और नशीद लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित पहले राष्ट्रपति बने थे। इनकी पार्टी के सत्ता में आने से मालदीव और हिंद महासागर में चीन की सक्रियता पर रोक लगेगी जो भारत के लिए अनुकूल है। यामीन को चीन समर्थक माना जाता था। 2013 से 2018 तक यामीन ने लोकतंत्र की जड़ों को खोदने का काम किया था, और देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता को चीन के हाथों गिरवीं रख दिया था।
इस दौरान मालदीव और चीन के बीच अनेक समझौते हुए जिनमें चीन की महत्त्वाकांक्षी परियोजना ‘वन बेल्ट, वन रोड’ भी शामिल थी। यामीन धनशोधन और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं। सोलिह के नेतृत्व वाली एमडीपी सरकार चीनी परियोजनाओं की समीक्षा कर रही है क्योंकि उन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। नशीद की पार्टी एमडीपी ने चुनावों में भ्रष्टाचार खत्म करने के प्रति प्रतिबद्धता जताई थी।
अब वह इस पर अमल कर रही है। संसदीय चुनावों में भारी जीत के बाद नशीद को प्रधानमंत्री बनाए जाने की उम्मीद की जा रही है। देश की जनता को इस सरकार से राजनीतिक-आर्थिक सुधारों की अपेक्षाएं हैं। सोलिह के नेतृत्व वाली एमडीपी सरकार इस दिशा में आगे बढ़ती है, तो लोकतंत्र मजबूत होगा जो देश को निरंकुश और सर्वसत्तावादी शासन से सुरक्षित रख पाएगा।
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