आयोग का परामर्श
चुनाव आयोग का राजनीतिक दलों से चुनाव अभियान में सैनिकों और सैन्य अभियानों की तस्वीर का इस्तेमाल करने से बचने का आग्रह स्वाभाविक है।
आयोग का परामर्श |
सामान्य तौर पर विचार करने से ही लगता है कि सैनिकों का राजनीतिक दलों से कोई लेना-देना नहीं। जवानों के बलिदानों या सैन्य अभियानों को राजनीतिक मोर्चाबंदी से दूर रखा जाना चाहिए। आयोग ने 2013 में भी इसका परामर्श जारी किया था। इस बार भी उसका ही हवाला दिया गया है। तो देखते हैं कि राजनीतिक दल इसका क्या उत्तर देते हैं? इस समय सीमा पार वायुसेना की कार्रवाई के बाद से सेना को लेकर देश में अलग किस्म का भाव है।
इसके बीच हो रहे आम चुनाव में इस वातावरण का लाभ उठाने की कोशिश राजनीति के वर्तमान चरित्र को देखते हुए अस्वाभाविक नहीं है। देश में व्याप्त भावना से राजनीति बिल्कुल अलग हो जाए यह संभव भी नहीं है। वैसे एक पक्ष यह भी है कि शहीद या वीरता प्रदर्शित करने वाले जवानों की तस्वीरों के उपयोग से देश के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलती है। जवान किसी एक दल की बपौती तो हैं नहीं। कोई भी दल इनका इस्तेमाल कर सकता है। अगर एक दल करता है तो दूसरे को समस्या नहीं होनी चाहिए। चूंंकि चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से पूर्व परामर्श के सख्ती से पालन का अनुरोध कर दिया है, इसलिए इनका उपयोग तब तक संभव नहीं है, जब तक चुनाव आयोग को इसके पक्ष में तर्क देकर तैयार नहीं कर लिया जाता।
हमारे राजनीतिक दलों में इतना आत्मविश्वास और साहस नहीं बचा है कि वो चुनाव आयोग के सामने उसकी किसी सलाह के विरु द्ध अपना पक्ष लेकर प्रस्तुत करें। एक समय था जब चुनाव आयोग ने सारे राजनीतिक दलों से उनका घोषणा पत्र मांगा था, और कई ने दे भी दिया। तब भाजपा के अध्यक्ष के रूप में लालकृष्ण आडवाणी ने इसका विरोध किया और कहा कि यह हमारा सिद्धांत है, इससे चुनाव आयोग का लेना-देना होना नहीं चाहिए। उसके बाद चुनाव आयोग ने अपना आदेश वापस लिया था। इस बार ऐसा शायद न हो क्योंकि भाजपा विरोधी ज्यादातर दल इस परामर्श के लागू होने के पक्ष में हैं। जो भी हो यह ऐसा विषय है, जिस पर देश में एक राय संभव नहीं। चुनाव आयोग की सलाह को यदि राजनीतिक दल मान भी लें तो वे तस्वीर नहीं लगाएंगे किंतु उनको बोलने से तो नहीं रोका जा सकता। इसलिए हमारा मानना है कि चुनाव आयोग ऐसे परामर्श देने में थोड़ा ज्यादा सतर्क रहे।
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