दखल से इनकार

Last Updated 13 Mar 2019 04:29:03 AM IST

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आर्थिक आधार पर दिए गए आरक्षण पर स्थगनादेश राहत भरा निर्णय है।


दखल से इनकार

इससे उन लोगों की उम्मीद कायम रही है, जो वर्षो से जातिगत आरक्षण से स्वयं को पीड़ित मान रहे थे। यह आरक्षण गरीबी का जीवन जीते हुए जातिगत आधार पर आरक्षण से वंचित तबकों के लिए आशा की किरण बनकर आया है। याचिकाकर्ताओं को उम्मीद रही होगी कि जिस तरह अलग-अलग राज्यों में दिया गया आरक्षण सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया, उसी तरह यह भी खारिज हो जाएगा। वैसे, नरसिंह राव के शासनकाल में भी आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार दे दिया।

किंतु नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस बार आरक्षण के लिए संविधान की धारा 16-4 में संशोधन करके उसमें शैक्षणिक एवं सामाजिक के साथ आर्थिक पिछड़ापन शब्द जोड़ा। इस तरह यह आरक्षण संविधान का भाग हो गया है। जाहिर है, सरकार ने इसको ऐसा संवैधानिक आधार दिया है, जिसे खत्म करना कठिन है। इसलिए न्यायालय ने तत्काल इसे कायम रहने दिया है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय हमारे संविधान का व्याख्याकार और अभिभावक है, इसलिए इसकी संवैधानिकता पर विचार कर सकता है।

किंतु इसके लिए उसे संविधान पीठ का गठन करना होगा। संभावना इस बात की है कि संविधान पीठ का गठन हो। देखना होगा कि संविधान पीठ क्या फैसला देता है। किंतु यह चिंताजनक है कि वर्षो की मांग के बाद देश के गरीबों को जातियों से परे केवल 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था हुई और वह भी कुछ लोगों की आंखों में खटक रही है। न्यायालय के सामने याचिका लाने वाले कौन हैं? आरक्षण संबंधी संविधान संशोधन संसद में सभी पार्टयिों के समर्थन से पारित हुआ था। साफ है कि कुछ स्वार्थी तत्व इस पर राजनीति कर रहे हैं।

उसके लिए न्यायालय को हथियार बनाया गया। समझना होगा कि हर जाति और समुदाय में गरीब हैं। देश का दायित्व है कि उन्हें भी संविधान के तहत सामाजिक न्याय प्राप्त हो। वैसे भी इस आरक्षण में किसी जाति-समुदाय का निषेध नहीं किया गया है। हालांकि संविधान में परिवर्तन के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था के बाद उम्मीद यही है सर्वोच्च न्यायालय भी से वैध करार देगा। किंतु जो लोग इसे खारिज कराना चाहते हैं, उन्हें चिह्नित किया जाना चाहिए तथा कानून के दायरे में जितना संभव हो, विरोध भी होना चाहिए।



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