सबक भविष्य के लिए

Last Updated 13 Mar 2019 04:25:08 AM IST

नवम्बर 2016 में नोटबंदी का जो फैसला हुआ था, उसकी कई परतें अब जाकर खुल रही हैं। इन खुलती परतों में भविष्य के लिए सबक हैं।


सबक भविष्य के लिए

हाल में सूचना के अधिकार के तहत कुछ दस्तावेज सामने आए हैं, इनमें यह पता चला है कि 8 नवम्बर 2016 को नोटबंदी के फैसले से सिर्फ  ढाई घंटे पहले ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के निदेशक मंडल की बैठक हुई थी। यानी इतने बड़े फैसले पर सुदीर्घ चिंतन मनन न हुआ, यह मोटे तौर पर नरेन्द्र मोदी का फैसला था, जिसे बाद में पूरी सरकार का फैसला कहा गया। रिजर्व बैंक की भागीदारी भी इस फैसले में नगण्य थी, रिजर्व बैंक सरकार के नोटबंदी के फैसले को मंजूर करने का काम किया। इस बैठक में यह दर्ज किया गया कि नोटबंदी एक सराहनीय कदम है, पर इसका चालू साल में लघु अवधि में नकारात्मक असर पड़ेगा। बोर्ड ने अपनी बैठक में यह भी दर्ज किया कि ज्यादातर काला धन नकद की शक्ल में नहीं होता, बल्कि सोने और रीयल इस्टेट की शक्ल में होता है और नोटबंदी का महत्त्वपूर्ण असर सोने और रीयल इस्टेट पर नहीं पड़ेगा। रिजर्व बैंक की दोनों ही बातें एकदम सही साबित हुई। विकास दर में कमी दर्ज की गई और काले धन पर वैसा प्रहार नहीं हो पाया, जैसे प्रहार की उम्मीद सरकार ने की थी।

नोटबंदी के पीछे का तर्क यह था कि काला धन बड़े मूल्य के नोटों में रखा जाता है, इन बड़े मूल्य के नोटों को चलन से बाहर करने पर काले धन का बड़ा हिस्सा चलन से बाहर हो जाएगा। इसलिए 500 रु पये और 1000 रु पये के नोटों को चलन से बाहर करके सरकार को उम्मीद थी कि काले धन का बड़ा हिस्सा वापस नहीं आएगा, क्योंकि लोग वापस करते हुए अपने धन का हिसाब देने में हिचकेंगे। पर हुआ यों कि 500 और 1000 रु पये की कुल करेंसी के 99.9 प्रतिशत मूल्य के नोट वापस आ गए। यानी बहुत छोटा-सा हिस्सा सिस्टम से बाहर हुआ। पर नोटबंदी ने डिजिटल अर्थव्यवस्था और नकदहीन अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया और कई करदाताओं में सरकार का खौफ पैदा हुआ और बाद के सालों में करदाताओं की तादाद में बढ़ोतरी हुई। यानी जिस उद्देश्य से नोटबंदी की गई थी, वह उद्देश्य तो पूरा न हुआ पर दूसरे उद्देश्यों की प्राप्ति हुई। कुल मिलाकर नोटबंदी ने ऐसे सबक दिए हैं, जो आने वाले सालों में नीति-निर्माताओं के लिए अहम प्रकाश स्तंभ के तौर पर काम करेंगे।



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