लोकोत्सव का शुभारम्भ

Last Updated 12 Mar 2019 05:21:51 AM IST

सत्रहवीं लोक सभा के चुनाव की घोषणा के साथ ही देश में राजनीति विमर्श की प्रक्रिया तेज हो गई है।


लोकोत्सव का शुभारम्भ

हालांकि घोषणा से पूर्व ही विभिन्न राजनीतिक दल राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर अपनी रणनीतियां बनाने में जुटे हुए थे। पुलवामा में भारतीय सुरक्षा बलों पर फिदायीन हमले के पहले प्रतीत हो रहा था कि विपक्ष की ओर से बेरोजगारी, नोटबंदी, जीएसटी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बदहाली और राफेल विमान सौदे में कथित दलाली प्रमुख चुनावी मुद्दे होंगे।

लेकिन पाकिस्तान के बालाकोट में घुस कर किये गए भारतीय हमले ने तो चुनाव-परिदृश्य ही बदल दिया है। इसलिए भी इस बार के चुनाव प्रचार में पाकिस्तान, आतंकवाद, सर्जिकल स्ट्राइक और एअर स्ट्राइक की गूंज जोर-शोर से सुनाई देगी। हालांकि प्रत्येक आम चुनाव में पाकिस्तान एक मुद्दा रहा है, लेकिन 2019 के आम चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए पाकिस्तान, राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद प्रमुख चुनावी मुद्दे होंगे।

वह पिछले पांच वर्षो से अनेक अवसरों पर पाकिस्तान के विरुद्ध जनमत तैयार करने की कोशिश में लगी रही है। 2015 में उरी में आतंकी हमले के बाद तो सरकार ने इस्लामाबाद को यह स्पष्ट संकेत दे दिया था कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकती। हालांकि सरकार के इस स्टैंड को विपक्षी दलों सहित देश की आम जनता ने भी समर्थन किया था। यही वजह है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का भारत से वार्ता के न्योते को मोदी सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया और पाकिस्तान के विरुद्ध कठोर रुख का इजहार किया।

इस्लामाबाद के प्रति नरम रु ख दिखाने का मतलब कट्टरपंथी सहयोगी शिवसेना के साथ विपक्ष और आम जनता की आलोचनाओं का शिकार होना माना गया। मोदी सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में यह जोखिम नहीं ले सकती थी। प्रत्येक चुनाव की तरह 17वीं लोक सभा-चुनाव का भी अलग महत्त्व है। घरेलू और वैिक दोनों स्तरों पर देखा जाए तो 2019 के आम चुनावों को मुश्किल भरे चुनावों की श्रेणी में रखा जा सकता है। कृषि बदहाल है और किसान दुर्दशा का शिकार है।

बेरोजगारी चरम पर है। मझोले व्यापारी परेशान हैं। लाख कोशिशों के बावजूद जम्मू-कश्मीर की हालत सुधर नहीं रही है। चुनाव में बढ़त लेती सत्तारूढ़ भाजपा को इन चुनौतियों से पार पाना आसान नहीं है। इस चुनाव में सबसे अधिक लोक सभा सीटों वाला उत्तर प्रदेश में यह देखना दिलचस्प होगा कि दलित, पिछड़े और मुस्लिम मिल कर मोदी का रथ रोक पाते हैं या नहीं।



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