नवीन ने दिखाई राह
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने आगामी लोक सभा चुनावों में अपनी पार्टी के कुल उम्मीदवारों में 33 फीसद सीटें महिलाओं को देने की जो राह दिखाई है, वह अब रफ्तार पकड़ने लगी है।
नवीन ने दिखाई राह |
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी सूबे की 42 सीटों के लिए जो उम्मीदवार घोषित की हैं, उनमें 17 महिलाएं हैं। यह आकंड़ा 41 फीसद है। महिलाओं को लोक सभा और विधान सभा में 33 फीसद आरक्षण देने का विधेयक दो दशक से ठंडे बस्ते में है। कांग्रेस, भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दल इस मसले पर मतैक्य नहीं बना पा रहे हैं। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कहा है कि यदि इस बार पार्टी की सरकार बनती है तो महिला आरक्षण लागू किया जाएगा। उम्मीद की जाती है कि महिला सशक्तीकरण की जो बयार देश के पूर्वी राज्यों से चली है, उसका प्रभाव केंद्र और अन्य राज्यों पर भी पड़ेगा। निसंदेह नवीन पटनायक और ममता बनर्जी ने यह साबित कर दिया है कि जन प्रतिनिधि संस्थानों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए कानून में बदलाव की अनिवार्यता नहीं है। इनके इस असाधारण कदम का असर भाजपा और कांग्रेस पर भी पड़ेगा जो दिन-रात महिला सशक्तिकरण का ढोल पीटते रहते हैं। 2014 के लोक सभा चुनाव का वोटिंग ट्रेंड बताता है कि आधे से ज्यादा राज्यों में महिलाओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा किया। यह बहुत ही सकारात्मक प्रवृत्ति है, विशेषकर ऐसे देश में जहां का समाज अभी भी पितृसत्तात्मक, रूढ़िवादी और अर्धसामंती है।
यह संकेत है कि यदि राजनीति और शासन को सुशासन में तब्दील करना है, इसमें गुणात्मक सुधार लाना है तो राजनीतिक दलों को पंचायत से लेकर विधानसभाओं और लोक सभा में 50 फीसद सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करनी चाहिए। लेकिन यहां ध्यान रखना चाहिए कि सही मायने में समाजसेवा का रुझान रखने वाली महिलाओं का चयन किया जाना चाहिए और रुपये-पैसे के बल पर राजनीति में उतरने की इच्छा रखने वाली महिलाओं को हतोत्साहित भी किया जाना चाहिए। दरअसल, महिला आरक्षण कानून की उपस्थिति में ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को उम्मीदवार बनाने से डरती है क्योंकि बाहुबल के अभाव में उनके जीतने की संभावना कम रहती है।
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