त्रासदी अवश्यंभावी
यातायात साधनों की प्रगति के साथ हमारी जिंदगी कितनी जोखिम भरी हो गई है इसका प्रमाण एक ही दिन घटी तीन दुर्घटनाओं से मिलता है।
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एक ओर इथियोपिया और कोलंबिया में दो अलग-अलग विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गए तो हमारी राजधानी दिल्ली में एक चलती कार मिनटों में चिता में बदल गई।
इथियोपिया विमान बोइंग 737 के देश के मध्यवर्ती क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से उसमें सवार सभी 157 यात्री एवं चालक दल के सदस्य मारे गये। यह विमान केन्या की राजधानी नैरोबी जा रहा था। मरने वालों में चार भारतीय भी हैं। विमान ने आठ बजकर 38 मिनट पर उड़ान भरी थी और आठ बजकर 44 मिनट पर नियंत्रण कक्ष का विमान से संपर्क टूट गया था। यानी सब कुछ छह मिनट के अंदर हो गया। दूसरी ओर, लेजर एयरलाइन्स डीसी-3 विमान कोलंबिया डिपार्टमेंट ऑफ मेटा में दुर्घटनाग्रस्त हुआ।
मलवे से 14 शव बरामद किए गए। जो लोग उन विमानों पर सवार हुए होंगे, उनमें से किसको कल्पना रही होगी यह उनकी अंतिम यात्रा है। गंतव्य तक पहुंचने के लिए समय सीमा जितनी घटी है उतनी ही जिंदगी भी सस्ती हुई है। दिल्ली में एक कार में पति-पत्नी और उनकी तीन बच्चियां सवार थीं। पति और एक बच्ची किसी तरह बच गए, लेकिन पत्नी और दो बच्चियां अंदर ही झुलसकर मर गई।
लोग विवश देखते रहे। दुनिया के किसी रास्ते में मिनट के अंदर अग्निशमन दस्ते के आने की व्यवस्था नहीं होती। ये घटनाएं बतातीं हैं कि भागदौड़ के इस काल में हम हर समय दुर्घटना से होने वाली मौत के साये में हैं। चाहे सुरक्षोपाय कितने कर लें दुर्घटनाएं होंगी और ऐसी मानवीय त्रासदियों का सामना दुनिया को करते रहना पड़ेगा। आज के समय की यही नियति है। यह आवश्यक नहीं कि जहां का विमान या कोई वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो मरने वाले केवल वहीं के हों। इथियोपिया विमान दुर्घटना में 30 देशों के लोग मारे गए।
उनमें संयुक्त राष्ट्र के भी चार कर्मी थे। संचार एवं यातयात के विस्तार के साथ हमारे लिए उन जगहों तक जाना आसान हुआ है जहां पहले नहीं पहुंच सकते थे। आकाश मार्ग के वायुयानों का तीव्र विस्तार हो रहा है तो सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या भी अपरिमित होती जा रही है। इसके विस्तार को रोक पाना हमारे वश में नहीं है। तो फिर ऐसी दुर्घटनाओं से होने वाली त्रासदियों को अपनी नियति मानकर ही हमें जीना होगा।
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