आयोग की सलाह

Last Updated 11 Mar 2019 12:33:36 AM IST

चुनाव आयोग का राजनीतिक दलों से चुनाव अभियान में सैनिकों और सैन्य अभियानों की तस्वीर का इस्तेमाल करने से बचने का आग्रह स्वाभाविक है।


आयोग की सलाह

सामान्य तौर पर विचार करने से ही यह लगता है कि सैनिक हमारी सीमा के तटस्थ पहरेदार हैं। उनका राजनीतिक दलों से कोई लेनादेना नहीं। इसलिए उनका राजनीतिक इस्तेमाल भी नहीं होना चाहिए। खासकर जवानों के बलिदानों या उनके सैन्य अभियानों को राजनीतिक मोर्चाबंदी से दूर रखा जाना चाहिए। आयोग ने 2013 में भी इसका परामर्श जारी किया था। इस बार भी उसका ही हवाला दिया गया है। इस समय सीमा पार वायुसेना की कार्रवाई के बाद से सेना को लेकर देश में अलग किस्म का भाव है। इसके बीच हो रहे आम चुनाव में इस वातावरण का लाभ उठाने की कोशिश राजनीति के वर्तमान चरित्र को देखते हुए अस्वाभाविक नहीं है। देश में व्याप्त भावना से राजनीति बिल्कुल अलग हो जाए, यह संभव भी नहीं है। वैसे एक पक्ष यह भी है कि शहीद या वीरता प्रदर्शित करने वाले जवानों की तस्वीरों के उपयोग से देश के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलती है।

यदि राजनीतिक दल जाति-संप्रदाय की जगह इनका उपयोग करते हैं तो इसका सकारात्मक असर भी हो सकता है। जवान किसी एक दल की बपौती तो हैं नहीं। कोई भी दल इनका इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन चूंंकि चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से पूर्व परामर्श के सख्ती से पालन का अनुरोध कर दिया है इसलिए इनका उपयोग तब तक संभव नहीं है, जब तक आयोग को इसके पक्ष में तर्क देकर तैयार नहीं कर लिया जाता। एक समय था जब आयोग ने सारे सियासी दलों से उनका घोषणा पत्र मांगा था और कई ने दे भी दिया। तब भाजपा अध्यक्ष के रूप में लालकृष्ण आडवाणी ने इसका विरोध किया और कहा कि यह हमारा सिद्धांत है। इससे चुनाव आयोग का लेना-देना होना नहीं चाहिए। उसके बाद आयोग ने अपना आदेश वापस लिया था। इस बार ऐसा शायद नहीं हो, क्योंकि भाजपा विरोधी ज्यादातर दल इस परामर्श के लागू होने के पक्ष में हैं। जो भी हो यह ऐसा विषय है जिस पर देश में एक राय संभव नहीं। आयोग के परामर्श को यदि दल मान भी लें तो वे तस्वीर नहीं लगाएंगे, किंतु उनको बोलने से तो नहीं रोका जा सकता। इसलिए हमारा मानना है कि आयोग ऐसे परामर्श देने में थोड़ा सतर्क रहे।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment