सुरक्षा वापसी सही

Last Updated 19 Feb 2019 06:44:06 AM IST

पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व बल (सीआरपीएफ) के जवानों पर आत्मघाती हमले के तीन दिन बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने हुर्रियत कान्फ्रेंस के अलगाववादी नेताओं मीरवाइज उमर फारूक, अब्दुल गनी बट, हाशिम कुरैशी, शब्बीर शाह, फजल हक कुरैशी और बिलाल लोन को दिया गया सुरक्षा कवच और अन्य सुविधाएं वापस लेकर बिल्कुल सही फैसला किया है।


सुरक्षा वापसी सही

वास्तव में यह कदम सरकार को बहुत पहले उठाना चाहिए था।

और ये स्वयंभू नेता जिस अलगाववादी विचारधारा का पोषण कर रहे थे, उसका विरोध घाटी में ही किया जाना चाहिए था। कश्मीर घाटी की मौजूदा परिस्थितियों में हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा हटा लेने का कदम छाया पीटने जैसा ही है; क्योंकि आपके सामने बहुत बड़ा शत्रु है और आतंकवादियों को मात देने के लिए इच्छा शक्ति के साथ ठोस सैनिक कार्रवाई भी की जानी चाहिए।

जिन हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा-व्यवस्था छीनी गई है, उनमें से कुछेक के विरुद्ध तो आतंकी संगठनों का वित्तपोषण करने का मुकदमा भी चल रहा है। इसलिए लोगों को आश्चर्य हो रहा है कि आखिर इनको सुरक्षा देकर पुलिस बल और सरकारी संसाधनों का भारी दुरुपयोग क्यों किया जा रहा था! इनकी सुरक्षा पर सरकार प्रतिवर्ष करीब 15 करोड़ रुपये खर्च कर रही थी। लेकिन देर से उठाये गए इस सही कदम का राजनीतिक संकेत यह है कि केंद्र सरकार इन पाक समर्थक और आईएसआई के इशारों पर नाचने वाले अलगाववादी नेताओं को अब बर्दाश्त नहीं करेगी।

केंद्र सरकार इनके पासपोर्ट की वैधता को एक साल तक सीमित भी कर सकती है। सुरक्षा वापस लिये जाने से डरे नेता थोड़ा संयत रहेंगे। इसी के साथ सरकार को यह ध्यान भी रखना चाहिए कि आतंकवादियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई में बाधा डालने वाली पत्थरबाजी आम पत्थरबाजी नहीं है। यह इस बात का संकेत है कि घाटी में अलगाववादी विचारधारा का विस्तार हो चुका है।

इसे केवल सैन्य कार्रवाई से नहीं रोका जा सकता। सरकार को कश्मीर अवाम से संविधान के दायरे में लोकतांत्रिक संवाद का कोई न कोई रास्ता निकालना चाहिए। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि अलगाववादियों और पत्थरबाजों को सहन किया जाना चाहिए। पत्थरबाजों के खिलाफ सीधी कार्रवाई करते हुए उन्हें अवश्य दंड दिया जाना चाहिए। पत्थरबाजों ने वहां सेना के खौफ को खत्म कर दिया है, जो खतरनाक संकेत है। हालांकि इसके साथ ही, पत्थरबाजों को गिरफ्तार करके समझाने-बुझाने का कार्यक्रम भी चलाना चाहिए।



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