विनिवेश लक्ष्य

Last Updated 19 Feb 2019 06:39:19 AM IST

उदारीकरण के समय से ही विनिवेश हर सरकार के लिए महत्त्वपूर्ण रहा है। हर बजट में सरकारें विनिवेश का एक लक्ष्य निर्धारित करती हैं।


विनिवेश लक्ष्य

इससे प्राप्त धन सरकार के राजकोषीय घाटा कम रखने का आधार बनता है। वर्तमान सरकार ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से अब तक 53,558 करोड़ रुपये जुटाए हैं। चालू वित्त वर्ष यानी 2018-19 में विनिवेश का बजटीय लक्ष्य 80,000 करोड़ रुपये रखा गया है। इस लक्ष्य में करीब 26 हजार 500 करोड़ रु पये कम है।

पिछले सप्ताह सरकार ने भारत-22 ईटीएफ से 10,000 करोड़ रुपये जुटाए थे। ईटीएफ यानी एक्सचेंज ट्रेडेड फंड वास्तव में इंडेक्स फंड होते हैं, जो कि स्टॉक एक्सचेंज में शेयरों की तरह ही ख़्ारीदे और बेचे जाते हैं। विश्व भर में ईटीएफ छोटे निवेशकों और संस्थागत निवेशकों में बहुत ही लोकप्रिय निवेश का साधन है। इसकी लोकप्रियता और कम जोखिम के कारण सरकार को इतनी राशि मिल गई है। आगे इसमें और कितनी राशि आती है, देखना होगा। सरकार ने एक्सिस बैंक में एसयूयूटीआई की हिस्सेदारी बेचकर 5,379 करोड़ रुपये प्राप्त किए हैं।

इसके अलावा, इंडियन ऑयल कारपोरेशन की शेयर पुनर्खरीद से 2,647 करोड़ रुपये आए हैं। वहीं, भेल, एनएचपीसी और कोचीन शिपयार्ड में हिस्सेदारी बिक्री से सरकार को क्रमश: 992 करोड़ रुपये, 398 करोड़ रुपये और 137 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। एनएलसी की शेयर पुनर्खरीद से सरकार को 990 करोड़ रुपये जबकि नाल्को और केआईओसीएल से क्रमश: 260 करोड़ रुपये और 205 करोड़ रु पये प्राप्त हुए। अब वित्त वर्ष पूरा होने में करीब डेढ़ महीने का समय बचा हुआ है। इसमें चुनाव को देखते हुए आने वाले समय वित्त मंत्रालय का फोकस कम हो सकता है।

हेलिकाप्टर सेवा प्रदाता कंपनी पवन हंस में सरकार और ओएनजीसी की हिस्सेदारी है। इसके लिए बोली लगाने वाली कंपनियों के साथ जल्द अंतिम शेयर खरीद करार साझा किया जाएगा। अगर इस बार का लक्ष्य पूरा होगा तभी अगले वर्ष के 90 हजार करोड़ लक्ष्य को पाने की उम्मीद की जा सकती है। तो देखते हैं। किंतु प्रश्न है कि इस तरह सरकारी संस्थानों का विनिवेश क्या दूरगामी दृष्टि से देख के लिए उपयुक्त नीति है? उदारवाद के समर्थक कहेंगे, हां। ऐसा नहीं होता कि विनिवेश के साथ सरकार की जिम्मेवारी खत्म हो जाती है।



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