प्रशांत किशोर पर भारी पड़ा बीजेपी मॉडल, बिहार में हार की टीस ने दी नयी ताकत
लोकसभा चुनाव 2014 के बाद चुनाव प्रबंधन में पीके मॉडल के रूप में उभरे प्रशांत किशोर को भाजपा ने यूपी में चित्त कर दिया.
PK पर भारी पड़ा BJP मॉडल (फाइल फोटो) |
लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के चुनाव प्रबंधन का कथित जिम्मा संभालने वाले पीके ने भाजपा से अनबन के बाद बिहार में नीतीश-लालू के लिए काम किया और भाजपा बिहार में तो पूरी तरह चित्त हो गयी. इसके बाद चुनाव प्रबंधन में लगातार दो जीत दर्ज करने वाले प्रशांत किशोर को कांग्रेस ने अपनी नैय्या पार लगाने के लिए साथ लिया.
पीके ने कांग्रेस की जमीनी हालत देखी और पहले 27 साल यूपी बेहाल के नारे के साथ कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी को सूबे में खाट सभाओं में उतारा फिर वह सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ समझौता कराने में जुटे. सपा-कांग्रेस का गठबंधन तो बना, लेकिन भाजपा का चुनाव मॉडल इस बार पीके पर पूरी तरह भारी पड़ा.
भाजपा को जहां पूरे प्रदेश में 322 सीटों पर जीत हासिल हुई वहीं सपा-कांग्रेस का गठबंधन बुरी तरह चुनाव हार गया और सिर्फ 55 सीटों पर ही सिमट गया. कांग्रेस अपनी अब तक की सबसे खराब स्थिति में पहुंच गयी.
भाजपा ने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की 39 सूत्री रणनीति को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित कराया. पार्टी ने चुनाव घोषित होने का इंतजार करने के बजाय से अप्रैल 2016 से ही प्रबंधन की शुरुआत कर दी थी. धम्म यात्रा निकाली, बूथ सम्मेलन कराये, महिला, दलित और किसान सभाएं की.
प्रचार की रणनीति में पीएम नरेन्द्र मोदी व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को केन्द्र में रखा. प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य के साथ ही तीन कद्दावर नेताओ राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र व उमा भारती को आगे किया.
चुनाव घोषित होने के दौरान मोदी रथ से लेकर मोटर साइकिल यात्राओ तक में कार्यकर्ताओं की सहभागिता बढ़ायी. चुनाव प्रबंधन के जरिये सीधे मण्डल व बूथ के बीच सेक्टर की रचना की गयी. 13051 सेक्टरों के जरिये बूथ कार्यकर्ताओं की निगरानी की गयी.
आईटी सेल ने भी अहम भूमिका निभायी. प्रदेश भर में युवाओ को आईटी सेल के जरिये जोड़ा गया और प्रचार तंत्र में नौजवानों को तरजीह देने से बेराजगारी के दंश से परेशान युवाओं ने पूरी ताकत झोंक दी.
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष व चुनाव प्रबंधन में लगे जेपीएस राठौर ने कहा कि भाजपा मॉडल का कोई मुकाबला नहीं, इसके आगे कई पीके फेल. यूपी के चुनाव नतीजे इसकी बानगी है.
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