इंडिया परिवार में कार्यकारी निदेशक श्री अशोक रॉय चौधरी नहीं रहे
सहारा परिवार अपने सर्वप्रिय अभिभावक सहाराश्री सुब्रत रॉय सहारा के विछोह के साये से निकल भी नहीं पाया था कि गत 25 दिसंबर को इस परिवार का एक और स्तंभ ढह गया। सहारा इंडिया परिवार में कार्यकारी निदेशक श्री अशोक रॉय चौधरी ने लंबी बीमारी के बाद अंतत: जीवन से विदा ले ली।
![]() इंडिया परिवार में कार्यकारी निदेशक श्री अशोक रॉय चौधरी |
अशोक रॉय चौधरी यानी सहाराश्री की छोटी बहन, सहारा परिवार और लखनऊ शहर के सांस्कृतिक जीवन में ‘छोटी दीदी’ के नाम से लोकप्रिय सुश्री कुमकुम रॉय चौधरी के पति। सहाराश्री से 1 माह 11 दिन छोटे थे चौधरी साहब, और संयोग देखिए कि उनका निधन भी सहाराश्री के निधन के ठीक 1 माह 11 दिन बाद हुआ। सहारा इंडिया परिवार एक बार पुन: शोक में डूब गया।
अशोक रॉय चौधरी के नाम के स्मरण के साथ ही एक ऐसा सुदर्शन व्यक्तित्व जहन में उभरने लगता है जो सहज ही किसी को अपने आकषर्ण में बांध लेता था। उनका बाह्य व्यक्तित्व ही सुदर्शन नहीं था, उनके आतंरिक व्यक्तित्व की निर्मिति भी उतनी ही आकषर्क थी - चेहरे पर मुस्कान, व्यवहार में सरलता, मुलाकात में अपनत्व और व्यवहार में निश्छल मिलनसारिता।
जो भी व्यक्ति उनके संपर्क में आता था उनसे जुड़ाव महसूस करने लगता था। वह सहारा इंडिया परिवार में लेखा जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे थे।
वह सांख्यिकी में स्नातकोत्तर थे और सहारा में आने से पूर्व कानपुर में एक बैंक की सेवा में थे। उन्हें लेखा क्षेत्र में महारत हासिल थी। उनके साथ विवाह के बाद सुश्री कुमकुम रॉय भी अपनी ससुराल कानपुर में ही रही थीं और स्वयं भी रक्षा विभाग के अनुसंधान प्रकोष्ठ में कार्यरत रही थीं।
श्री अशोक रॉय चौधरी के पिता कानपुर में व्यवसायी थे और चमड़ा उद्योग की दो इकाइयों में उनकी साझेदारी थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि उनके निधन के बाद इन इकाइयों के अन्य साझेदारों ने अशोक रॉय चौधरी को उनके पिता का वाजिब हक नहीं दिया। यह परिवार के लिए आर्थिक कठिनाइयों का दौर था लेकिन अशोक रॉय चौधरी और कुमकुम रॉय चौधरी के एक-दूसरे के प्रति आगाध प्रेम और विास ने कठिनाई भरे दिनों को भी सुगमता से पार कराया। इस बीच सहारा की शुरुआत हो गयी थी।
अशोक रॉय चौधरी भी आंशिक रूप से सहारा से जुड़ गये। जब सहारा का मुख्यालय गोरखपुर से लखनऊ स्थानांतरित हुआ और सहारा की गतिविधियों का विस्तार हुआ तो 1987 में दोनों पति-पत्नी भी लखनऊ स्थानांतरित हो गये और पूरी तरह सहारा से जुड़ गये। अपनी क्षमता, प्रतिभा और मेहनत के बल पर उन्होंने पद और प्रभाव की ऊंचाइयां चढ़ना शुरू कीं तो सर्वश्री आदरणीय सहाराश्री, सुश्री स्वप्ना रॉय, श्री ओ.पी.श्रीवास्तव जैसे अभिभावकों का विास भी अर्जित किया और उनके सहयोग से निरंतर विकसित होती सहारा की गतिविधियों में अपना श्रेष्ठतम योगदान किया।
सहारा परिवार अपने प्रारंभ से ही विशुद्ध व्यावसायिक परिवार न होकर राष्ट्र-समाज से संबंधित अनेक गतिविधियों में भागीदारी करने वाला परिवार रहा। श्री चौधरी जहां सहारा की व्यावसायिक व्यवस्था को मजबूती दे रहे थे तो सुश्री कुमकुम रॉय चौधरी यानी सबकी प्रिय छोटी दीदी शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, कला और संस्कृति के क्षेत्रों में अपना बहुमुखी योगदान कर रहीं थीं। किसी भी शहर का सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन बहुत कम लोगों को वैसा सम्मान देता है जैसा उसने छोटी दीदी को दिया और छोटी दीदी के लिए यह सब करना अशोक रॉय चौधरी के सहयोग और समर्थन के बिना संभव नहीं हो सकता था।
सहारा परिवार में शीर्ष पदानुक्रम में प्रतिष्ठित अशोक रॉय चौधरी कभी भी अहंकार ग्रंथि से ग्रस्त नहीं हुए। उन्हें अपने वरिष्ठों का विास प्राप्त था तो अपने कनिष्ठों का सहयोग और सम्मान। तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद उनकी जीवनंतता उनका विशिष्ट गुण बनी रही। कठिन परिस्थितियों में भी उन्हें मुस्कुराते हुए देखा जा सकता था और कभी-कभी तो मजाक करते हुए भी। यह गुण उनकी उदात्तता का ही एक हिस्सा था। यूं तो घनिष्ठता से बंधे परिवारों में भी विवादास्पद मसले उत्पन्न होते ही रहते हैं लेकिन व्यक्ति की विशेषता इसमें होती है कि वह छोटे-मोटे विवादों से ऊपर उठकर किस तरह से वातावरण को सम पर बनाए रखता है और कैसे उसे कार्यक्षम बनाता है। जिन्होंने भी श्री चौधरी के साथ काम किया वे बताते हैं कि वह कार्यालयीय तनाव को छांटने और अप्रिय स्थितियों को टालने का भरपूर कौशल रखते थे।
अपने मातहतों के साथ उनका व्यवहार सदैव स्नेहपूर्ण रहा। कोई भी व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत अथवा व्यावसायिक समस्याओं को लेकर उनके पास आ सकता था और उनसे समुचित सहयोग या मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता था। प्राय: ऐसे लोग भी जो किन्हीं कारणोंवश उपेक्षा या प्रताड़ना के पात्र बन जाते थे वे भी अपने प्रिय चौधरी साहब के पास जाकर अपने दुख-सुख बोल दिया करते थे। उन्हें भरोसा होता था कि चौधरी साहब उन्हें समझेंगे, उनकी समस्या का निराकरण करेंगे और वांछित सहायता भी देंगे। उनका यह भरोसा टूटता भी नहीं था।
अपने इन्हीं विशिष्ट गुणों के कारण चौधरी साहब को समूचे सहारा परिवार में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। अपने कार्य को उच्चतम प्राथमिकता पर रखने वाले, निर्विवाद, निष्ठा और संलग्नता वाले और लक्षित कार्य को पूरा करने के लिए सुबह से शाम तक, जरूरत हो तो देर रात तक काम करने वाले श्री चौधरी साहब खेल प्रेमी भी थे।
तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वह खेल के लिए समय निकाल ही लेते थे। स्नूकर और टेबल टेनिस उनके प्रिय खेल थे। अगर उन्हें कोई जोड़ीदार नहीं मिलता था तो वह किसी कनिष्ठतम कार्यकर्ता को ही साथ लेकर खेलने लगते थे। अशोक रॉय चौधरी पूरी तरह पारिवारिक व्यक्ति भी थे।
वे अपनी पत्नी के लिए आदर्श पति थे तो अपनी दोनों पुत्रियों प्रियंका सरकार और शिवांका रॉय चौधरी के लिए आदर्श पिता तो प्रियंका के जीवन साथी अभिजीत सरकार के लिए पिता तुल्य सुर। अपने परिवार के लिए वह हमेशा शक्ति का स्रेत बने रहे। उनके अवसान ने न केवल उनके परिवार के जीवन में अपूरणीय रिक्ति पैदा कर दी है बल्कि अपने हर उस संबंधी, मित्र, परिचित के मन में भी रिक्ति पैदा कर दी है जो उनसे किसी भी रूप में संबंधित था या उनके संपर्क में था। अब इस रिक्ति में उनकी स्मृतियां ही जीवित रहेंगी।
नम आंखों से उन्हें ससम्मान नमन!
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