ऐसे तो पार्टी का अस्तित्व बचाना भारी पड़ जाएगा अखिलेश यादव को
नगर निकाय चुनाव का परिणाम आने के बाद आरोपों और प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया। भाजपा ने अपना परचम लहरा दिया है। इस चुनाव परिणाम के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव भले ही सत्ताधारी पार्टी भाजपा पर चुनाव में बेईमानी करने का आरोप लगा रहे हों लेकिन हकीकत यह है कि इस चुनाव परिणाम को देखने के बाद अब उत्तर प्रदेश में सपा का अस्तित्व खतरे में पड़ता नजर आ रहा है।
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सपा पिछले कई चुनावों से मुस्लिम वोटरों पर भरोसा करती आ रही है, लेकिन इस बार उन्ही वोटरों ने अखिलेश को नकारने की कोशिश की है। जिस तरह से दो छोटी पार्टियां ओवैसी की एआईएम्आईएम् और आम आदमी पार्टी ने मुस्लिम वोटरों में सेंध लगाई है, उसे दखते हुए अगर अखिलेश यादव ने अपनी राजनीति का तौर तरीका नहीं बदला तो उन्हें अपनी पार्टी का अस्तित्व बचाना भी भारी पड़ जाएगा।
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव के जो परिणाम आए हैं वो अपेक्षा के अनुरूप आए हैं। पिछले चुनाव की तरह इस चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन सभी पार्टियों से बेहतर रहा है। बल्कि भाजपा का प्रदर्शन इस बार पिछले चुनाव से भी कहीं ज्यादा अच्छा रहा है। पिछले चुनाव में जहां मेयर की 14 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी,वहीं इस बार सभी 17 सीटों पर जीत मिली है। पिछली बार मेयर की 16 सीटें थीं। शाहजहांपुर के रूप में इस बार मेयर की एक सीट बढ़ गई थी। नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायत अध्यक्षों के पदों पर भी भाजपा के ज्यादा प्रत्यासी जीत कर आए हैं। इस चुनाव में मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी का जादू देखने को मिला है। कहीं न कहीं उनकी अपराधियों के खिलाफ की जा रही कार्यवाई, प्रदेश की जनता को भा गया है। यानी सीधे-सीधे यह कह सकते हैं कि इस चुनाव में जो सफलता मिली है, उसमें भाजपा से ज्यादा बड़ी भूमिका योगी की रही है।
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में प्रदेश की दो बड़ी पार्टियां बसपा और सपा से जिस प्रदर्शन की उम्मीद थी, वैसा हो नहीं पाया। हालांकि अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद संभवतः पार्टी के कार्यकर्ताओं ने की होगी, जबकि हकीकत यह है कि बसपा और सपा से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद शायद प्रदेश की आम जनता ने नहीं की होगी। आम तौर पर सपा कुछ जातिगत समीकरणों पर चुनाव लड़ती आयी है। मसलन वह हमेशा यादव और मुस्लिम समीकरणों पर फोकस करती रही है। पार्टी के पदाधिकारी भी कमोबेश इसी फार्मूले को ध्यान में रखकर चुनाव प्रचार करते रहे हैं। इस समीकरण की बदौलत सपा प्रदेश की सत्ता पर काबिज भी हुई है, लेकिन यह फार्मूला हमेशा कारगर होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इस चुनाव परिणाम ने अखिलेश और सपा को यह बता दिया है। अब अखिलेश यादव,भले ही इस परिणाम को देखकर भाजपा पर बेईमानी करने का आरोप लगाएं, लेकिन हकीकत यह है कि अब मुस्लिम वोटर भी उनसे खिसकने लगा है।
इस बार का चुनाव परिणाम देखें तो पता चलता है कि ओबैसी की पार्टी एआईएमआईएम् और आम आदमी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है। ओवैसी की पार्टी के पांच प्रत्यासी नगर पालिका परिषद् अध्यक्ष बने हैं जबकि 75 पार्षद बने हैं। वहीँ आम आदमी पार्टी के सात प्रत्याशियों ने जीत दर्ज कराई है। ओवैसी की पॉर्टी को मुस्लिमों ने दिल खोलकर वोट किया है। मेरठ की मेयर सीट पर सपा ने इस बार सरधना के विधायक अतुल प्रधान की पत्नी को टिकट दिया था। पार्टी ने दावा किया था कि इस बार वो अपने गठबंधन की वजह से मेरठ की सीट जरूर जीतेगी।
अखिलेश ने सपा ,रालोद और चंद्रशेखर की पार्टी आजाद समाज पार्टी के गठबंधन को ऐसा गठबंधन बतया था जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है, लेकिन मेरठ में ना सिर्फ सपा के प्रत्यासी की हार हुई बल्कि सपा प्रत्यासी का प्रदर्शन ओवैसी की पार्टी के प्रत्यासी से भी खराब रहा। यहां ओवैसी का प्रत्यासी दूसरे नंबर पर रहा। यानि मुस्लिम वोटरों ने सपा को वोट ना देकर ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार को वोट किया। प्रदेश की बाकी सीटों पर भी कमोबेश कुछ ऐसा ही देखने को मिला है। कुल मिलाकर सपा की मुलिम वोटों में इन दोनों पार्टियों ने जबरदस्त सेंध लगाईं है।
बात अगर बसपा की करें तो मायवाती ने पहले ही सरेंडर कर दिया था। बसपा के प्रत्याशियों ने पार्टी के भरोसे कम, अपने और भगवन के भरोसे ज्यादा चुनाव लड़ा था। बसपा सुप्रीमों मायावती अब आने वाले चुनाव में क्या करेंगी, इसका तो अभी पता, नहीं लेकिन अखिलेश यादव ने अगर अपनी रणनीति में बदलाव नहीं किया तो आने वाले चुनावों में उनकी स्थिति और ज्यादा ख़राब होती जायेगी। राजनीति में उनसे जूनियर और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने अपनी राजनीति में बदलाव कर लिया है। जबसे वो दूसरी बार बिहार के डिप्टी सीएम बने हैं, तबसे अपने विभाग पर लगातार ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी संभलऐसे तो पार्टी का अस्तित्व बचाना भारी पड़ जाएगा अखिलेश यादव को
नगर निकाय चुनाव का परिणाम आने के बाद आरोपों और प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया। भाजपा ने अपना परचम लहरा दिया है। इस चुनाव परिणाम के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव भले ही सत्ताधारी पार्टी भाजपा पर चुनाव में बेईमानी करने का आरोप लगा रहे हों लेकिन हकीकत यह है कि इस चुनाव परिणाम को देखने के बाद अब उत्तर प्रदेश में सपा का अस्तित्व खतरे में पड़ता नजर आ रहा है। सपा पिछले कई चुनावों से मुस्लिम वोटरों पर भरोसा करती आ रही है, लेकिन इस बार उन्ही वोटरों ने अखिलेश को नकारने की कोशिश की है। जिस तरह से दो छोटी पार्टियां ओवैसी की एआईएम्आईएम् और आम आदमी पार्टी ने मुस्लिम वोटरों में सेंध लगाई है, उसे दखते हुए अगर अखिलेश यादव ने अपनी राजनीति का तौर तरीका नहीं बदला तो उन्हें अपनी पार्टी का अस्तित्व बचाना भी भारी पड़ जाएगा।
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव के जो परिणाम आए हैं वो अपेक्षा के अनुरूप आए हैं। पिछले चुनाव की तरह इस चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन सभी पार्टियों से बेहतर रहा है। बल्कि भाजपा का प्रदर्शन इस बार पिछले चुनाव से भी कहीं ज्यादा अच्छा रहा है। पिछले चुनाव में जहां मेयर की 14 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी,वहीं इस बार सभी 17 सीटों पर जीत मिली है। पिछली बार मेयर की 16 सीटें थीं। शाहजहांपुर के रूप में इस बार मेयर की एक सीट बढ़ गई थी। नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायत अध्यक्षों के पदों पर भी भाजपा के ज्यादा प्रत्यासी जीत कर आए हैं। इस चुनाव में मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी का जादू देखने को मिला है। कहीं न कहीं उनकी अपराधियों के खिलाफ की जा रही कार्यवाई, प्रदेश की जनता को भा गया है। यानी सीधे-सीधे यह कह सकते हैं कि इस चुनाव में जो सफलता मिली है, उसमें भाजपा से ज्यादा बड़ी भूमिका योगी की रही है।
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में प्रदेश की दो बड़ी पार्टियां बसपा और सपा से जिस प्रदर्शन की उम्मीद थी, वैसा हो नहीं पाया। हालांकि अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद संभवतः पार्टी के कार्यकर्ताओं ने की होगी, जबकि हकीकत यह है कि बसपा और सपा से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद शायद प्रदेश की आम जनता ने नहीं की होगी। आम तौर पर सपा कुछ जातिगत समीकरणों पर चुनाव लड़ती आयी है। मसलन वह हमेशा यादव और मुस्लिम समीकरणों पर फोकस करती रही है। पार्टी के पदाधिकारी भी कमोबेश इसी फार्मूले को ध्यान में रखकर चुनाव प्रचार करते रहे हैं। इस समीकरण की बदौलत सपा प्रदेश की सत्ता पर काबिज भी हुई है, लेकिन यह फार्मूला हमेशा कारगर होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इस चुनाव परिणाम ने अखिलेश और सपा को यह बता दिया है। अब अखिलेश यादव,भले ही इस परिणाम को देखकर भाजपा पर बेईमानी करने का आरोप लगाएं, लेकिन हकीकत यह है कि अब मुस्लिम वोटर भी उनसे खिसकने लगा है।
इस बार का चुनाव परिणाम देखें तो पता चलता है कि ओबैसी की पार्टी एआईएमआईएम् और आम आदमी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है। ओवैसी की पार्टी के पांच प्रत्यासी नगर पालिका परिषद् अध्यक्ष बने हैं जबकि 75 पार्षद बने हैं। वहीँ आम आदमी पार्टी के सात प्रत्याशियों ने जीत दर्ज कराई है। ओवैसी की पॉर्टी को मुस्लिमों ने दिल खोलकर वोट किया है। मेरठ की मेयर सीट पर सपा ने इस बार सरधना के विधायक अतुल प्रधान की पत्नी को टिकट दिया था। पार्टी ने दावा किया था कि इस बार वो अपने गठबंधन की वजह से मेरठ की सीट जरूर जीतेगी।
अखिलेश ने सपा ,रालोद और चंद्रशेखर की पार्टी आजाद समाज पार्टी के गठबंधन को ऐसा गठबंधन बतया था जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है, लेकिन मेरठ में ना सिर्फ सपा के प्रत्यासी की हार हुई बल्कि सपा प्रत्यासी का प्रदर्शन ओवैसी की पार्टी के प्रत्यासी से भी खराब रहा। यहां ओवैसी का प्रत्यासी दूसरे नंबर पर रहा। यानि मुस्लिम वोटरों ने सपा को वोट ना देकर ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार को वोट किया। प्रदेश की बाकी सीटों पर भी कमोबेश कुछ ऐसा ही देखने को मिला है। कुल मिलाकर सपा की मुलिम वोटों में इन दोनों पार्टियों ने जबरदस्त सेंध लगाईं है।
बात अगर बसपा की करें तो मायवाती ने पहले ही सरेंडर कर दिया था। बसपा के प्रत्याशियों ने पार्टी के भरोसे कम, अपने और भगवन के भरोसे ज्यादा चुनाव लड़ा था। बसपा सुप्रीमों मायावती अब आने वाले चुनाव में क्या करेंगी, इसका तो अभी पता, नहीं लेकिन अखिलेश यादव ने अगर अपनी रणनीति में बदलाव नहीं किया तो आने वाले चुनावों में उनकी स्थिति और ज्यादा ख़राब होती जायेगी। राजनीति में उनसे जूनियर और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने अपनी राजनीति में बदलाव कर लिया है।
जबसे वो दूसरी बार बिहार के डिप्टी सीएम बने हैं, तबसे अपने विभाग पर लगातार ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी संभाल रखी है। हर सप्ताह वो किसी न किसी अस्पताल का दौरा कर वहां की स्थिति का जायजा लेते रहते हैं। ऐसा करके वो प्रदेश की सभी जातियों और धर्मों के लोगों के बीच अपनी पैठ बढाते जा रहे हैं। अखिलेश यादव को तेजस्वी यादव से कुछ सीखना चाहिए। कुल मिलाकर अगर इस चुनाव परिणाम से अखिलेश यादव ने कोई सबक नहीं लिया तो आने वाले समय में सपा सिर्फ नाम के लिए पार्टी बनकर रह जाएगी। जहां तक बात मुस्लिम वोटरों की है तो, संभव है कि लोकसभा के चुनाव में वह वोटर कांग्रेस के साथ खड़ा होता हुआ दिखाई दे।
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