नगर निकाय चुनाव में BJP को मिलेगी त्रिमूर्ति से मिलेगी कड़ी टक्कर!
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनावों के बाद जीते हुए प्रत्याशी भले ही प्रदेश की विधानसभा, या देश की लोकसभा में ना बैठते हों, लेकिन अपनी-अपनी राजनीतिक पार्टियों के लिए राजनैतिक जमीन की बुनियाद जरूर तैयार करते हैं। उत्तर प्रदेश में मई के महीने में होने वाले नगर निकाय चुनाव में उत्तर प्रदेश की चार बड़ी पार्टियां भाजपा,सपा, बसपा और कांग्रेस का तगड़ा इम्तिहान होने जा रहा है।
![]() नगर निकाय चुनाव में बीजेपी को मिलेगी त्रिमूर्ति से मिलेगी कड़ी टक्कर! |
इस बार के चुनाव में भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। भाजपा ने पिछले चुनाव में सपा ,बसपा और कांग्रेस के मुकाबले अच्छा परफार्म किया था, लेकिन इस बार उसे सपा से कड़ी चुनौती मिलने के कयास लगाए जा रहे हैं, क्योंकि इस बार सपा, रालोद और चंद्रशेखर रावण की पार्टी आजाद समाज के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। नगर निकाय की 762 सीटें हैं, जिसमें 760 पर चुनाव होने जा रहे हैं। इसमें 199 नगर पालिका परिषद की सीटें, जबकि नगर पंचायत की 544 सीटें हैं।
बीजेपी ने पिछले चुनाव में नगर पालिका यानी शहरी क्षेत्रों की 198 सीटों में से 67 सीटें जीती थीं। जबकि सपा 45, बसपा 28 और निर्दलीयों को 58 सीटें मिली थीं। उसी तरह नगर पंचायत की बात करें, यानी कस्बाई क्षेत्रों की 568 सीटों में से भाजपा के खाते में 100, सपा 83, बसपा 74, सीटें जबकि निर्दलीयों की जीत 181 सीटों पर हुई थीं। रही बात मेयर की सीटों का तो पिछले चुनाव में पूरे प्रदेश में 16 मेयर के पद थे, जिसमें से बीजेपी ने 14 सीटों पर जीत हासिल की थी। मेरठ और आगरा की 2 सीट पर बसपा की जीत हुई थी। इस बार मेयर की एक सीट शाहजहांपुर के रूप में बढ़ी है।
2024 में लोकसभा का चुनाव होना है, उसके पहले उत्तर प्रदेश में होने वाला यह आखरी चुनाव है। इस चुनाव के परिणाम, तमाम पार्टियों की राजनैतिक जमीन तैयार करेगी। बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती न सिर्फ उसे पुराने रिकार्ड को दोहराने की होगी, बल्कि कोशिश यह भी करनी है कि इस बार उसके सीटों में इजाफा हो। दूसरी तरफ भाजपा का मुकाबला इस बार त्रिमूर्ति से होने वाली है।
त्रिमूर्ति से मतलब सपा, रालोद और आजाद समाज पार्टी। आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर रावण ने दलित वोटरों पर अच्छा खासा प्रभाव जमा लिया है। इसका उदाहरण खतौली विधानसभा और मैनपुरी लोकसभा के उपचुनाव में देखने को मिला था। दोनों चुनावों में से गठबंधन के प्रत्याशियों को दलितों का वोट अच्छी खासी संख्या में मिले थे। समाजवादी पार्टी ने भी दलित वोटरों के रुझान को देखते हुए उन्हें अपनी तरफ करने का अभियान चला रखा है। कुछ महीनों पहले कोलकाता अधिवेशन में समाजवादी पार्टी ने दलित वोटरों को लुभाने की रणनीति बना ली थी।
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