तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल को एनसीईआरटी की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में शामिल होने में तीन दशक लग गए। इमरजेंसी के 21 महीनों के दौरान सेंसरशिप और विपक्षी नेताओं की सामूहिक गिरफ्तारी देखने को मिली थी।

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दिलचस्प बात यह है कि ‘आपातकाल’ को पाठ्यपुस्तकों में 2007 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान शामिल किया गया था।
हालांकि अब भी ऐसी शिकायतें हैं कि स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में आपातकाल की पूरी ज्यादतियों को सही तरीके से नहीं दिखाया गया है, फिर भी इस काले दौर से जुड़े कई अंशों को 2023 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के तहत पाठ्यक्रम के सरलीकरण की एक कवायद के तहत हटा दिया गया। कोविड-19 महामारी के बाद पाठ्यक्रम के सरलीकरण की यह कवायद शुरू की गयी थी।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के पूर्व अध्यक्ष कृष्ण कुमार के अनुसार, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफ) में संशोधन के बाद 2007 में कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में आपातकाल को शामिल किया गया था।
उन्होंने हालांकि इस विषय को पाठ्यक्रम में शामिल करने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से नहीं बताया।
पाठ्यपुस्तक में, “लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट” नामक अध्याय के 25 पृष्ठों में संकट की प्रकृति, उसके पीछे के तर्क, समर्थकों और विरोधियों तथा आपातकाल ने उस समय की राजनीति को किस प्रकार आकार दिया, इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। यह पाठ्यपुस्तक 2007 में प्रकाशित की गयी थी।
पाठ्यपुस्तकों के विकास के लिए एनसीईआरटी द्वारा गठित कुछ समितियों की अध्यक्ष अनीता रामपाल ने कहा कि कांग्रेस सरकार के सत्ता में होने के बावजूद आपातकाल और सिख विरोधी दंगों को पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया गया था, क्योंकि तब शिक्षा जगत पूरी तरह स्वायत्त था।
उन्होंने कहा, “पाठ्यपुस्तक सलाहकारों ने तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह से मुलाकात की थी और उन्हें बताया था कि पाठ्यपुस्तकों में क्या शामिल किया जा रहा है और इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है।”
दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय की पूर्व डीन रामपाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “एनसीईआरटी या उस मामले में अकादमिक संस्थाएं उस समय पूरी तरह स्वायत्त थीं। यह तथ्य कि आपातकाल या सिख विरोधी दंगों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है, वह भी इंदिरा गांधी की आलोचना करने वाले कार्टूनों के साथ...आज के समय में यह अकल्पनीय है।”
इस अध्याय में इंदिरा गांधी द्वारा आकाशवाणी पर राष्ट्र के नाम दिए गए भाषण के अंश, आर.के. लक्ष्मण द्वारा आलोचनात्मक कार्टून, उस काल की ज्यादतियों पर शाह आयोग की रिपोर्ट का विवरण, आपातकाल की घोषणा और उसके बाद लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बारे में कई समाचार पत्रों की कतरनें, जबरन नसबंदी पर अमूल का व्यंग्यात्मक कार्टून, बिजली कटौती के कारण समाचार पत्रों की छपाई बंद होने की कतरनें और प्रेस को सेंसर करने के प्रयासों को दर्शाने वाले टेलीग्राम संदेश शामिल थे।
कुछ समाचार कतरनों में लिखा था: “आपातकाल घोषित”, “सुरक्षा की स्थिति ख़तरे में, प्रधानमंत्री ने कहा”, “कई नेता गिरफ़्तार” और “अधिकार निलंबित”। समाचार कतरनों के एक अन्य सेट में आपातकाल की समाप्ति पर प्रकाश डाला गया: “श्रीमती गांधी पराजित”, “कांग्रेस की पूरी तरह से हार”, और “दुःस्वप्न समाप्त हो गया, वाजपेयी ने कहा”।
राजनीति विज्ञान की प्रस्तावना में पहले कहा गया था कि यह “भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता का सम्मान” है।
राजनीति विज्ञानी और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव, जो उस समय मसौदा तैयार करने वाली समिति के सदस्य थे, ने कहा कि 2007 से पहले, राजनीतिक स्कूलों की पाठ्यपुस्तकें भारत की स्वतंत्रता तक ही सीमित थीं, जिससे छात्रों को 20वीं सदी के उत्तरार्ध में घटित घटनाओं की जानकारी के बिना 21वीं सदी की राजनीति समझने के लिए छोड़ दिया जाता था।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “स्कूली पाठ्यपुस्तकों में आपातकाल को शामिल करना कोई चूक नहीं थी, यह सोचसमझकर किया गया था क्योंकि विचार पूरी तरह से गैर-पक्षपातपूर्ण पाठ्यपुस्तकों का निर्माण करना था, ताकि आपातकाल की अवधि के बारे में घिनौने विवरण तथ्यात्मक तरीके से बताए जाएं, बिना यह सोचे कि यह कांग्रेस सरकार के लिए शर्मनाक होगा।”
यादव और राजनीतिक वैज्ञानिक सुहास पलशीकर ने 2023 में एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में नवीनतम संशोधनों का विरोध किया था, जिसकी विपक्षी दलों ने भी आलोचना की थी।
पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाने की हालिया कवायद में 2023 में उस अध्याय से कम से कम पांच पृष्ठ काट दिए गए हैं।
हटाई गई सामग्री आपातकाल लगाने के निर्णय से संबंधित विवादों, तथा इंदिरा गांधी सरकार द्वारा सत्ता के दुरुपयोग और गलत कार्यों से संबंधित अनुच्छेदों से संबंधित है।
आपातकाल 50 वर्ष पहले 25 जून 1975 को लगाया गया था, जो राजनीतिक अशांति के दौर और एक अदालती फैसले के बाद लगाया गया था, जिसमें गांधी के चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया था।
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