जेल में अभियुक्तों के धमकी देने से गवाहों की सुरक्षा प्रभावित होती है: दिल्ली उच्च न्यायालय
संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्यों की ओर से जेल के अंदर से गवाहों को धमकी देने के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि इस तरह के कृत्यों से उन गवाहों की सुरक्षा प्रभावित होती है जो न्यायिक प्रणाली की आंख तथा कान हैं और उचित निर्णय तक पहुंचने का एकमात्र साधन हैं।
![]() दिल्ली उच्च न्यायालय |
अदालत ने आदेश दिया कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत दर्ज मामलों में गवाहों से एक महीने के भीतर पूछताछ की जाए और अभियोजन पक्ष द्वारा कोई अनावश्यक स्थगन की मांग नहीं की जाए।
संगठित अपराध और आतंकवाद से निपटने के लिए महाराष्ट्र द्वारा 1999 में मकोका लागू करने के बाद, कई अन्य राज्यों ने भी संगठित अपराध से निपटने के लिए इसी तरह के कानून अपनाए।
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि कानून के तहत संरक्षित लोगों को धमकी देने से अदालतें ‘‘सीधे तौर पर प्रभावित’’ होंगी क्योंकि दबाव में कोई गवाह कभी भी ईमानदारी से गवाही नहीं दे सकता।
अदालत ने हाल के अपने आदेश में कहा, ‘‘प्रतिवादियों के खिलाफ आरोप है कि वे जेल में बंद रहते हुए भी मामले के गवाहों को धमकी देने के कृत्यों में लगे हुए थे। इस तरह के कृत्यों से उन गवाहों की सुरक्षा प्रभावित होती है जो न्यायिक प्रणाली की आंख तथा कान हैं और उचित फैसले तक पहुंचने का एकमात्र साधन हैं।
अदालत ने कहा, ‘‘न्यायालय इस तथ्य से भी अवगत है कि यदि किसी आपराधिक मामले में कानून के तहत संरक्षित गवाहों को जेल से भी धमकी दी जाती है, तो इसका सीधा असर अदालतों पर न्यायसंगत फैसले तक पहुंचने और दोषियों को दंडित करने पर पड़ेगा। मुसीबत में पड़ा गवाह कभी भी ईमानदारी से गवाही नहीं दे सकता।’’
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि वर्तमान मामले में आरोपी गैरकानूनी गतिविधियों में लगे एक संगठित अपराध सिंडिकेट का हिस्सा थे और मकोका के तहत आरोपों का सामना कर रहे हैं।
अदालत ने जेल से गवाहों को धमकियों के आरोपों के संबंध में अभियोजन पक्ष को छह गवाहों को बुलाने और उनसे पूछताछ करने की अनुमति देने से इनकार करने संबंधी निचली अदालत के आदेश के खिलाफ राज्य की याचिका पर ये टिप्पणियां कीं।
अदालत ने निर्देश दिया कि मामले में गवाहों से एक महीने के भीतर पूछताछ की जाए और अभियोजन पक्ष द्वारा किसी अनावश्यक स्थगन की मांग नहीं की जाए।
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