डीयू: आरक्षित सीटों में एडमिशन के लिए शिक्षक फरोम ने की जांच करवाने की मांग
फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश कुमार सिंह व कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता को पत्र लिखकर मांग की है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेजों में यूजी, पीजी, पीएचडी पाठ्यक्रमों में एससी, एसटी, ओबीसी कोटे के एडमिशन प्रक्रिया शुरू करने से पहले पिछले पांच वर्षो के सब्जेक्ट वाइज आंकड़े मंगवाए जाएं।
![]() दिल्ली विश्वविद्यालय (फाइल फोटो) |
विज्ञान, वाणिज्य व मानविकी जैसे विषयों के आंकड़े मंगवाकर उनकी जांच करवाई जाए। इससे पता चलेगा कि गत वर्ष कॉलेजों ने अपने यहां स्वीकृत सीटों से ज्यादा एडमिशन दिए थे उसकी एवज में आरक्षित सीटों को नहीं भरा जाता। फोरम के मुताबिक ये कॉलेज यूजीसी गाइडलाइंस और शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी आरक्षण संबंधी सकरुलर का पालन नहीं करते। बता दें कि डीयू में इस बार दाखिले कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट ( सीयूईटी ) स्कोर के माध्यम से हो रहे हैं। विश्वविद्यालय के अंतर्गत लगभग- 80 विभाग हैं जहां स्नातकोत्तर डिग्री ,पीएचडी, सर्टिफिकेट कोर्स, डिग्री कोर्स आदि कराएं जाते हैं । इसी तरह से दिल्ली विश्वविद्यालय में तकरीबन 79 कॉलेज है जिनमे स्नातक, स्नातकोत्तर की पढ़ाई होती है। इन कॉलेजों व विभागों में हर साल स्नातक स्तर पर विज्ञान, वाणिज्य व मानविकी विषयों में 70 हजार से अधिक छात्र-छात्राओं के प्रवेश होते हैं।
फोरम के चेयरमैन और दिल्ली यूनिवर्सिटी की एकेडेमिक काउंसिल के पूर्व सदस्य डॉ. हंसराज सुमन ने पत्र में लिखा है कि विश्वविद्यालय की कुल 70 हजार सीटों के अलावा कॉलेज अपने स्तर पर हर साल 10 फीसदी सीटें बढ़ा लेते हैं। बढ़ी हुई सीटों पर अधिकांश कॉलेज आरक्षित वर्गों की सीटें नहीं भरते। उन्होंने यह भी बताया है कि सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है। जो इस साल बढ़कर 25 फीसदी सीटों का इजाफा होगा। इस तरह से विश्वविद्यालय के आंकड़ों की माने तो लगभग 75 हजार से ज्यादा सीटों पर इस वर्ष एडमिशन होना चाहिए।
उन्होंने बताया है कि प्रत्येक कॉलेज एडमिशन के समय हाई कट ऑफ लिस्ट जारी करते हैं जिससे आरक्षित श्रेणी की सीटें हर साल खाली रह जाती है। उन्होंने बताया है कि डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर आरक्षित सीटों को भरने के लिए पांचवी कट ऑफ लिस्ट के बाद स्पेशल ड्राइव चलाते है उसमें भी जो कट ऑफ जारी की जाती है मामूली छूट दी जाती है जिससे एससी, एसटी, ओबीसी कोटे की सीटें कभी पूरी नहीं भरी जाती। ये सीटें हर साल खाली रह जाती है। कॉलेज यह कहकर कि इन सीटों पर छात्र उपलब्ध नहीं है बाद में इन सीटों को सामान्य वर्गों के छात्रों में तब्दील कर देते हैं।
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