मुफ्त उपहारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दलील: आर्थिक निकाय 'मुफ्तखोरी' पर जता चुके हैं चिंता

Last Updated 09 Aug 2022 07:46:03 PM IST

चुनाव के दौरान 'मुफ्त उपहार' के वादों के खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि देश के दो सर्वोच्च आर्थिक निकायों ने राज्य सरकार द्वारा उनके वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) पर चिंता व्यक्त की है और इस बात पर जोर दिया है कि ऐसे वितरण या मुफ्त के वादे से पहले, एक स्थायी अर्थव्यवस्था के लिए एक 'आर्थिक प्रभाव मूल्यांकन' आवश्यक है।


सुप्रीम कोर्ट

याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने कहा, "यह प्रस्तुत किया जाता है कि देश के दो सर्वोच्च आर्थिक निकायों ने उचित वित्तीय और बजटीय प्रबंधन के बिना राज्यों द्वारा मुफ्त के वितरण पर चिंता और दीर्घकालिक प्रभाव व्यक्त किया है। यह प्रस्तुत किया गया है कि ऐसा वितरण या मुफ्त उपहारों के वादे से पहले, एक स्थायी अर्थव्यवस्था के लिए एक 'आर्थिक प्रभाव मूल्यांकन/आकलन' आवश्यक है।"

उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह दलीलें पेश की गईं, जिसमें राजनीतिक दलों के खिलाफ 'तर्कहीन मुफ्तखोरी' के लिए कार्रवाई की मांग की गई है।

हंसारिया ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 293(3) के तहत केंद्र सरकार का कर्ज बकाया होने पर राज्य सरकार न तो कोई कर्ज ले सकती है और न ही उधार ले सकती है और ऐसी परिस्थितियों में केंद्र की सहमति से ही कर्ज लिया जा सकता है और वह ऐसी शर्तें लगा सकता है, जो वह खंड (4) के तहत ठीक समझे।

अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर की गई दलीलों में कहा गया है, "यह प्रस्तुत किया जाता है कि राज्य सरकारें अनुच्छेद 293 (3) और (4) की आवश्यकताओं के अनुपालन के बिना भारत सरकार से ऋण बकाया होने पर भी पैसा उधार ले रही हैं। राज्य सरकार को ऋण सुविधा प्रदान करने के लिए 'क्रेडिट रेटिंग की प्रणाली' लागू करने सहित इन प्रावधानों का कड़ाई से पालन करना आवश्यक है।"

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए स्वीकार किया था कि गरीबों को कुछ मदद की जरूरत है, लेकिन वह यह भी जानना चाहता है कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर मुफ्त में बांटी जाने वाली चीजों या सुविधाओं का क्या प्रभाव पड़ता है? शीर्ष अदालत ने हितधारकों से सुझाव मांगे थे और तर्कहीन मुफ्तखोरी से जुड़े मुद्दों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ पैनल स्थापित करने की सिफारिश की थी।

बता दें कि वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि चुनाव प्रचार के दौरान मुफ्त की योजनाओं की घोषणा को मतदाताओं को रिश्वत देने की तरह देखा जाए। उन्होंने मांग की है कि चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ऐसी घोषणाएं करने वाली पार्टी की मान्यता रद्द करे।

वहीं अब आम आदमी पार्टी (आप) ने 'मुफ्त उपहार' के नियमन (रेगुलेशन) की मांग वाली एक जनहित याचिका में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

आप ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर 'मुफ्त उपहार/मुफ्त रेवड़ियां' बांटने पर रोक लगाने की मांग वाली जनहित याचिका पर पुरजोर विरोध जताया। पार्टी ने शीर्ष अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के भाजपा से मजबूत संबंध हैं और वे ऐसी कल्याणकारी योजनाओं का विरोध करना चाहते हैं, जिन्होंने समाज के कमजोर वर्गों के जीवन को मौलिक रूप से बदल दिया है। आप ने कहा कि ऐसी योजनाओं को याचिकाकर्ता ने 'मुफ्तखोरी' के तौर पर दिखाया है।

शीर्ष अदालत ने केंद्र, नीति आयोग, वित्त आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक जैसे हितधारकों से चुनाव के दौरान मुफ्त उपहारों की घोषणा से जुड़े मुद्दों पर विचार-मंथन करने को कहा है।

आईएएनएस
नई दिल्ली


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