प्रभुनाथ सिंह और अनंत सिंह को जेल से बाहर निकलवाने की क्यों हो रही है मांग?
बिहार के राजपूत नेताओं या कथित तौर पर अपराधी राजपूत नेताओं को लेकर इस समय राजनीति कुछ ज्यादा ही गरमा गई है। राजपूत नेता आनंद मोहन की जेल से रिहाई क्या हुई, जेल में बंद बाकी राजपूत नेताओं प्रभुनाथ सिंह और अनंत सिंह की रिहाई की मांग भी उठने लगी है
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बिहार के राजपूत नेताओं या कथित तौर पर अपराधी राजपूत नेताओं को लेकर इस समय राजनीति कुछ ज्यादा ही गरमा गई है। राजपूत नेता आनंद मोहन की जेल से रिहाई क्या हुई, जेल में बंद बाकी राजपूत नेताओं प्रभुनाथ सिंह और अनंत सिंह की रिहाई की मांग भी उठने लगी है। बिहार के लोगों ने शायद यह समझ लिया है कि सजायाफ्ता को जेल से रिहा करवाना बहुत ही आसान काम है। लोगों ने शायद यह समझ लिया है कि बिहार के मुख्यमंत्री के पास इतनी शक्ति है कि वो जिसको चाहें उसे ही हमेशा के लिए जेल से रिहा करवा देंगे। ताजा मामला जेल में बंद राजपूत नेता अनंत सिंह और प्रभनाथ सिंह से जुड़ा हुआ है। दोनों राजपूत नेता इस समय जेल में बंद हैं।
प्रभुनाथ सिंह और अनंत सिंह को अब जेल से रिहा कराने की मांग उठ रही है। यह मांग उठाई है स्वर्ण क्रांति दल ने।
जिन नेताओं की रिहाई की मांग उठाई जा रही है, उनमे से एक हैं प्रभुनाथ सिंह। वह बिहार के मसरख विधानसभा क्षेत्र से कई बार विधायक रह चुके हैं, जबकि महाराजगंज लोकसभा सीट से तीन बार सांसद रहे हैं। वर्तमान में वह राष्ट्रीय जनतादल के सदस्य हैं। 2017 में इन्हे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। तबसे वह झारखंड की हजारीबाग जेल में बंद हैं। इनके ऊपर विधायक अशोक सिंह की हत्या का आरोप था। अशोक सिंह की हत्या 1995 में उनके पटना आवास में गोली मारकर कर दी गई थी।
दूसरे बाहुबली राजपूत नेता हैं अनंत सिंह। अनंत सिंह को उनके क्षेत्र मोकामा और उसके आप-पास के लोग छोटे सरकार कह कर बुलाते हैं। अनंत सिंह भी 2019 से पटना की बेउर जेल में बंद हैं। इनके पैतृक आवास से ए के 47 राइफलें बरामद हुई थीं। उसी मामले में उन्हें दस साल की सजा सुनाई गई थी। तबसे वो जेल में बंद हैं। इन दोनों बाहुबली राजपूत नेताओं को सजा तब मिली थी जब बिहार में नीतीश की सरकार थी। यानि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे।
नीतीश कुमार आज भी बिहार के मुख्यमंत्री हैं। नीतीश कुमार ने जेल मैन्युअल में संसोधन करके एक ऐसा रास्ता बना दिया जिसके चलते आनंद मोहन की रिहाई हो गई। अगर यह संसोधन ना होता तो शायद आनंद मोहन को चार साल और जेल में रहना पड़ता। इस संसोधन के जरिए सरकारी कर्मियों को उनकी ड्यूटी के दौरान हत्या होने के बाद आरोपी को आजीवन कारावास के रूप में बीस साल जेल में रहना होता था, लेकिन इस संसोधन के बाद सरकारी कर्मियों वाली लाइन हटा ली गई थी, और इस तरह से आनंद मोहन का जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया था।
अब बात हो रही है प्रभुनाथ सिंह और अनंत सिंह को लेकर। प्रभनाथ सिंह जेल में पांच साल से बंद है, जबकि अनंत सिंह लगभग चार से जेल में हैं। यह दोनों नेता महागठबंधन में शामिल राजद के सदस्य हैं। अभी कुछ महीनों पहले अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी, मोकामा विधानसभा के उप चुनाव में भाजपा प्रत्यासी को हराकर विधायक भी बनीं थीं। इन दोनों नेताओं को जेल से बाहर निकलवाने की जिसने भी बात की है, या मांग उठाई है, वह या तो यह नहीं जानता कि ये दोनों लोग कितने सालों से जेल में बंद हैं। वह यह नहीं जानता कि सजा भुगत रहे किसी भी कैदी को छुड़ाना इतना आसान नहीं होता है, या उसे यह नहीं पता है कि मुख्यमंत्री की भी कानून के मामलों में एक सीमा होती है।
मुख्यमंत्री होने का मतलब यह नहीं कि वो जब चाहे तब किसी भी कैदी को जेल से बाहर करवा दें। ऐसा लगता है कि जिसने भी इन दोनों नेताओं को जेल से रिहाई करवाने की मांग की है, वह एक सस्ती लोकप्रियता हासिल करना चाहता है। जेल में बंद राजपूत नेताओं की हमदर्दी हासिल करना चाहता है। फ़िलहाल बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार को जो चाल चलनी थी, वह चल चुके हैं। आनंद मोहन समेत बिहार के सभी राजपूत नेता उनके साथ हैं। जो राजपूत नेता उनके साथ हैं, उनके खिलाफ भाजपा जैसी बड़ी पार्टी के नेताओं को भी कुछ बोलते समय सौ बार सोचना पडेगा। क्योंकि यही तो बिहार है।
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