दादा कुलाधिपति, पिता चेयरमैन, फिर कैसे माफिया बन गए मुख्तार और अफजाल अंसारी?
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के एक छोटे से गाँव का एक लड़का पढ़ने जाता है। बात सन 1900 के आस-पास की है। उस समय पूर्वांचल शिक्षा के क्षेत्र में उतना आगे नहीं था जैसा की आज है। खासकर मुस्लिम परिवार में। लेकिन मुख्तार अहमद अंसारी ने ठान लिया था कि उसे पढ़ना है। उसने पढ़ाई की। मेडिकल में उसने एमडी और एमएस की डिग्री ली।
![]() माफिया मुख्तार अंसारी |
1926 और 1927 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष भी रहे। यह विवरण उस व्यक्ति की है, जिसके पोता मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी हैं। वहीं मुख्तार और अफजाल, जिनके ऊपर गैंगेस्टर एक्ट के तहत गाजीपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट में शनिवार को सजा सुनाई गई है।
इस कहानी का जिक्र करने का मकसद किसी माफिया का गुणगान करना नहीं है बल्कि यह बताना है कि इतने संभ्रांत और शिक्षित परिवार के दो लड़के माफिया कैसे बन गए। इन दोनों के दादा मुख्तार अहमद अंसारी दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे संस्थान को स्थापित करने वालों में से एक थे। बाद में मुख्तार अहमद अंसारी जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलाधिपति भी रहे। उसी व्यक्ति के पोते हैं, मुख्तार और अफजाल। यही नहीं इन दोनों के चाचा, हामिद अंसारी देश के उपराष्ट्रपति भी रहे। ऐसे परिवार से ताल्लुक रखने वाले मुख़्तार और अफजाल कैसे बन गए इतने बड़े माफिया, जिनसे आज गाजीपुर और उसके आस-पास के इलाके के लोग ना सिर्फ डरते हैं बल्कि इन दोनों को चुनावों में जीता कर उत्तर प्रदेश की विधान सभा और देश की लोकसभ में भी भेजते हैं।
दरअसल मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से पढ़ाई करते वक्त छात्र राजनीति के जरिए सक्रिय हुए। क्षेत्र में उसने अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी। अफजाल और मुख्तार के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी गाजीपुर के एक बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। वह कम्युनिष्ट पार्टी के नेता भी थे। 1971 में वो गाजीपुर के नगर पालिका चुनाव में निर्विरोध चुनाव जीत गए थे। पढ़ाई छोड़ अफजाल ने 1985 में भाकपा के सिम्बल पर विधान सभा का चुनाव लड़ा, जिसमे उसकी जीत हुई। इस तरह 1985 में अफजाल पहली बार विधायक बन गया। धीरे-धीरे गाजीपुर की मुहम्मदाबाद सीट पर इनका कब्जा हो गया। वर्षों तक इस सीट से इसके परिवार के सदस्य ही चुनाव जीतते रहे। जिस विधान सभा की सीट ने इन दोनों के परिवार का मान बढ़ाया वही सीट इनके माफिया बनने की वजह बनी।
अफजाल और मुख़ार को लगता था कि मुहम्मदाबाद की सीट उनकी बपौती हो गई है। उन्हें हमेशा यही लगता था कि, कुछ करे या न करे, उस सीट पर इनके परिवार का ही कोई न कोई सदस्य चुनाव जीतता रहेगा। लेकिन 2002 में वह भ्रम टूट गया। उस बार के चुनाव में अफजाल और मुख्तार के बड़े भाई सिबगतुल्लाह भाजपा के प्रत्यासी कृष्णानन्द राय से हार गए। वो अपनी हार को पचा नहीं पाए। हालांकि इस बीच वहां ठेकेदारी को लेकर दादागिरी शुरू हो चुकी थी। रेलवे, कोयला और सिविल के ठेके समेत कबाड़ निपटारे के काम को लेकर बहुतों में प्रतिस्पर्धा होने लगी थी। मुख्तार भी चाहता था कि अधिकांश ठेके उसके गिरोह को मिले। इस क्षेत्र में बृजेश सिंह नाम का एक अन्य माफिया भी सक्रीय था।
मुख़्तार और बृजेश सिंह के बीच कई बार मुठभेड़ें हो चुकी थी। 2002 में मुख्तार के भाई सिबगत उल्ला को जब कृष्णानंद राय ने हराया तो बृजेश सिंह उनके साथ हो लिया। बृजेश सिंह का उनके साथ जाना मुख्तार को भाया नहीं, और उसने 29 नवम्बर 2005 को कृष्णनंद राय जी हत्या करवा दी। बतया जाता है कि कृष्णानंद राय के ऊपर 400 गोलियां दागीं गई थीं। उस हमले में राय समेत सात लोगों की मौत हुई थी। बृजेश सिंह को भी कई गोलिया लगीं थी, उस समय बृजेश सिंह को मृत मान लिया गया था, लेकिन बाद में वो जीवित निकला। लेकिन बृजेश सिंह उस घटना के बाद से क्षेत्र छोड़कर कहीं दूर भाग गया था। उस मामले में मुख्तार अंसारी और उसके भाई अफजाल के ऊपर हत्या और गैंगेस्टर एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था। जिसकी सुनवाई पूरी हो चुकी है।
गाजीपुर की एमपी एमएलए कोर्ट में उस पर फैसला हो चुका है। मुख़्तार अंसारी को दस साल की सजा भी मिल गई है। मुख्तार और अफजाल कभी सपा में रहे तो कभी बसपा में रहे, तो कभी उन्होंने अपनी खुद की पार्टी बना ली। शुरू से पढ़े लिखे खानदान से ताल्लुक रखने वाले मुख्तार और अफजाल ने अपने गैंग में हमेशा हिन्दू शूटरों को प्राथमिकता दी। इसके गैंग में प्रेम प्रकश सिंह, मुन्ना बजरंगी, राकेश पांडेय संजीव माहेश्वरी उर्फ़ जीवा जैसे हिन्दू शूटर थे, जो इन दोनों भाइयों के एक इशारे पर किसी की भी हत्या कर देते थे।
जब कृष्णानंद राय की हत्या की गई थी तो उनकी चुटिया राकेश ने ही काटी थी। कृष्णानंद राय चुटिया रखते थे। एक आडियो, उस समय बहुत चर्चित हुआ था, जिसमे यह कहते हुए सूना गया था कि कृष्णानंद राय की चुटिया भी काट ली है। दादा पढ़े लिखे, पिता पढ़े लिखे और चाचा उपराष्ट्रपति, बावजूद इसके उसी परिवार के दो लड़के मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी बन गए माफिया। शनिवार को मुख्तार अंसारी को दस साल की सजा सूना दी गई। जबकि उसके भाई अफजाल अंसारी को कोर्ट ने चार की सजा सुनाई है। अफजाल की सांसदी अब खत्म हो जाएगी। इस तरह आतंक का प्रयाय बन चुके पूरब के एक और माफिया का अंत हो गया।
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