बिहार : अतीत से छुटकारा नहीं पा सका राजद!

Last Updated 11 Nov 2020 12:38:34 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने सफलता अर्जित कर एक्जिट पोल के सभी संभावनाओं को नकार दिया।


तेजस्वी यादव (फाइल फोटो)

वैसे, राजग इस चुनाव में भले ही सत्ता तक पहुंचने में कामयाब हुई हो, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेतृत्व वाले महागठबंधन के चुनाव में मुख्यमंत्री का 'चेहरा' तेजस्वी यादव ने राजग को कड़ा मुकाबला दिया। इससे लोग नकार नहीं रहे हैं। हालांकि राजद के नेताओं ने अपने अतीत से पीछा छुड़ाने की कई कोशिशें की, लेकिन अंत तक अतीत उनके साथ जुड़ा रहा।

तेजस्वी ने चुनाव के प्रारंभ में ही इस बात के संकेत दे दिए थे, वे इस चुनाव में अपने पिता लालू प्रसाद और पुराने राजद को छोड़कर नए युवा नेता की भूमिका में चुनाव मैदान में जाएंगें। इस निर्णय से उनको लाभ भी हुआ, लेकिन उनके विरोधियों ने इस अतीत से उन्हें बाहर नहीं निकलने दिया।

तेजस्वी इस चुनाव में शुरू से अलग नजर आए तथा अपने पिता तथा राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद के साये से खुद को निकालने के प्रयास में जुटे रहे।

दूसरी ओर, भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन के नेता जहां राजद के 15 साल के शासनकाल के 'जंगलराज' को याद दिलाते हुए लगातार लोगों के बीच पहुंच रहे थे, जबकि तेजस्वी इस पर कुछ भी चर्चा करने से बचते रहे।

तेजस्वी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा भी, सत्ता पक्ष के लोग रोजगार, सिंचाई, शिक्षा के मामले में बात हीं नहीं करना चाहते। वे पुरानी फालतू की बातें कर लोगों को मुद्दा से भटकाना चाह रहे हैं।

वैसे, तेजस्वी ने इस चुनाव के पहले ही राजद के प्रमुख बैनरों और पोस्टरों से लालू प्रसाद और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की तस्वीर हटाकर यह संकेत दे दिया था कि इस चुनाव में वे अपनी युवा और नई छवि के जरिए लोगों के बीच पहुंचेंगे। इस निर्णय का लाभ भी उनकी रैलियों में देखा गया।

प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा और जदयू के नेता इशारों ही इशारों में तेजस्वी को 'जंगलराज के युवराज' कहकर लोगों को उस राजद काल के दौर की याद दिलाते रहे, जिसे पटना उच्च न्यायालय ने 'जंगलराज' की तरह कहा था।

राजनीतिक समीक्षक और बीबीसी के संवाददाता रहे और वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि तेजस्वी ने भले ही नई छवि पेश करने की कोशिश की, लेकिन पुराने लोगों के मन से डर नहीं निकाल सके। वे कहते हैं कि जंगलराज की इमेज उनपर भारी पड़ी।

उल्लेखनीय है कि 2005 में सत्ता में आने के बाद राजग ने नीतीश सरकार को 'सुशासन' का चेहरा बना दिया था और इस चुनाव में नीतीश और राजद सरकार की तुलना को मतदाताओं के बीच ले गए, जिसका अंतत: राजग को लाभ हुआ।
 

आईएएनएस
पटना


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