पति की सलामती के लिये विधवा का जीवन जीती हैं गछवाहा समुदाय की महिलायें

Last Updated 22 Jul 2017 03:41:36 PM IST

उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में गछवाहा समुदाय की औरतें अपनी पति की सलामती के लिये विधवा का जीवन बसर कर अनूठी प्रथा का पालन करती हैं.


फाइल फोटो

‘विधवा’ शब्द की कल्पना भी किसी विवाहिता के मन मस्तिष्क को विचलित करने के लिये काफी है मगर पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर समेत पड़ोसी राज्य के कुछ जिलों में गछवाहा समुदाय की औरतें अपनी पति की सलामती के लिये  मई से लेकर जुलाई तक विधवा का जीवन बसर कर सदियों पुरानी अनूठी प्रथा का पूरी शिद्दत से पालन करती हैं.
       
दरअसल, गछवाहा समुदाय के पुरूष साल के तीन महीने यानी मई से जुलाई तक ताड़ी उतारने का काम करते है और उसी कमाई से वे अपने परिवार का जीवन यापन करते है. ताड़ के पेड़ से ताड़ी निकालने का काम काफी जोखिम भरा माना जाता है. पचास फिट से ज्यादा ऊंचाई के सीधे ताड़ के पेड़ से ताड़ी निकालने के दौरान  कई बार जाने भी चली जाती हैं.
       
ताड़ी उतारने के मौसम में इस समुदाय की महिलायें अपनी पति की सलामती के देवरिया से तीस किलोमीटर दूर गोरखपुर जिले में स्थित तरकुलहां देवी के मंदिर में चैा माह में अपनी सुहाग की निशानियां रेहन रख कर अपनी पति की सलामती की मन्नत मांगती हैं. इन तीन माह तक ये औरतें अपने घरों में उदासी का जीवन जीती हैं.


      
गछवाहा समुदाय के बारे में जानकारी रखने वाले जगदीश पासवान ने बताया कि ताड़ी उतारने का समय समाप्त होने के बाद तरकुलहां देवी मंदिर में गछवाहा समुदाय की औरतें नाग पंचमी के दिन इकट्ठा होकर पूजा करने के बाद सामूहिक गौठ का आयोजन करती हैं. जिसमें सधवा के रूप में श्रंगार कर खाने पीने का आयोजन कर मंदिर में आशीर्वाद लेकर अपने परिवार में प्रसन्नता पूर्वक जाती हैं.

पासवान ने बताया कि गछवाहा समुदाय वास्तव में पासी जाति से होते हैं और सदियों से यह तबका ताड़ी उतारने के काम में लगा है हालांकि अब इस समुदाय में भी शिक्षा का स्तर बढता जा रहा है और युवा वर्ग इस पेशे से दूर हो रहे हैं.
 

 

वार्ता


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