जी-20 : सनातन की रही धाक

Last Updated 19 Sep 2023 01:40:15 PM IST

जी 20 सम्मेलन भारत, हिंदुत्व या सनातन संस्कृति को संपूर्णता के साथ वास्तविक रूप में प्रस्तुत करने का सबसे बड़ा अवसर साबित हुआ।


जी-20 : सनातन की रही धाक

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने विश्व के सभी प्रमुख नेताओं व संस्थाओं के प्रमुखों, प्रतिनिधियों तथा अंतरराष्ट्रीय मीडिया के समक्ष प्राचीनतम राष्ट्र के रूप में भारत, हिंदू धर्म और संस्कृति तथा इसकी संपन्न विरासत को जितने प्रभावी और तार्किक तरीके से प्रस्तुत किया, ऐसा पहले नहीं हुआ। आयोजन की थीम से लेकर,स्थल का नाम, वहां लगीं तस्वीरें और मूर्तियां, देश का भारत नाम, नृत्य-संगीत, खान-पान, वेश-भूषा, नृत्य-संगीत-कला सभी महान सभ्यता-संस्कृति,जीवन-शैली एवं समृद्ध विरासत वाले देश की शानदार छवि पेश कर रहे थे। इसका संकेत भारत को अध्यक्षता मिलने के बाद ही मिल गया जब थीम में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ तथा सात दलों वाला कमल दिखाया गया। भारत मंडपम भगवान बसवेर के अनुभव मंडपम की अवधारणा से प्रेरित है। इसको शंख का आकार दिया गया।

मंडपम की दीवारों पर संस्कृत के वाक्य उकेरे गए हैं। इनमें सूर्य शक्ति और पंच महाभूत शामिल हैं। सूर्य ऊष्मा और प्रकाश के देव हैं जबकि पंच महाभूत में ब्रह्मांड के 5 मूल तत्व, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी आते हैं, जिसे हिंदू धर्म सभी जीवों का मूल आधार मानता है। इसका यह संदेश था कि भारत 15 अगस्त, 1947 को पैदा हुआ देश नहीं है और भारत का अर्थ राष्ट्र-राज्य के रूप में वह नहीं जो बताया जाता है। जीव-अजीव सहित संपूर्ण ब्रह्मांड की गहनतम और सूक्ष्मतम चिंतन इस राष्ट्र की आधारभूमि है, जिसका स्रेत हिंदुत्व, हिंदू धर्म या सनातन है। भारत मंडपम में स्वागत द्वार पर गीता आर्टििफशियल इंटेलिजेंस आगंतुकों का स्वागत कर रही थी। यह पूछे गए प्रश्नों का उत्तर श्रीमद्भागवत गीता के आधार पर देती है। मंदिरों और उन स्थलों को आधुनिक ब्रांड के रूप में पेश किया गया जो विश्व पर्यटन के मानचित्र पर लोकप्रिय नहीं थे। जैसे कोणार्क का सूर्य मंदिर। इसकी वास्तुकला, निहित प्रकृति के ज्ञान, सूर्य से संबंध, धार्मिंक-आध्यात्मिक महत्त्व आदि को प्रस्तुत किया गया। प्रधानमंत्री मोदी जहां मंडपम में नेताओं को रिसीव कर रहे थे,उसके पीछे कोणार्क चक्र था। यही चक्र राष्ट्रीय ध्वज में है,जो प्रगति और निरंतर परिवर्तन का प्रतीक है। यह लोकतंत्र के पहिए का प्रतीक है,जो लोकतांत्रिक आदर्श के लचीलेपन और प्रगति के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। कब इसे विश्व के सामने रखा गया?

भारत मंडपम के सामने नटराज शिव की प्रतिमा है, जो उनके आनंद तांडव का प्रतीक है। शिव नृत्य से सकारात्मक ऊर्जा के संचार का संदेश देते हैं। चंद्रयान 3  के चंद्रमा पर उतरने के स्थल को शिव शक्ति नाम देने के बाद शिव के स्वरूप से विश्व को परिचित कराने का यह अगला कदम था। मेहमान भारत मंडपम में प्रवेश करते तो दीवारों पर अंकित 32 योग मुद्राएं देखने को मिलतीं, जो घेरंड संहिता से ली गई हैं। महर्षि घेरंड ने राजा चण्डकपालि को स्वास्थ्य के लिए 32 आसनों का ज्ञान दिया। संहिता कहती है कि इस जगत में जितने भी प्राणी हैं, उन सभी की सामान्य शारीरिक स्थिति को आधार बनाकर एक-एक आसन की खोज की गई है। संयुक्त राष्ट्रसंघ में योग को मान्यता दिलाने के बाद विश्व को उसकी सूक्ष्मता से परिचय करना आवश्यक था।
इसी तरह, वॉल ऑफ डेमोक्रेसी में पांच हजार वर्षो के भारत का लोकतांत्रिक इतिहास है। यहां लगे 26 स्क्रीन पैनल में अलग-अलग समय की कहानियां थीं। इनमें भारतीय संविधान, आधुनिक भारत में चुनाव से लेकर भारत-मदर ऑफ डेमोक्रेसी, सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक काल, रामायण, महाभारत, महाजनपद और गणतंत्र, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, कौटिल्य और अर्थशास्त्र, मेगस्थनीज, सम्राट अशोक, फाह्यान, पाल साम्राज्य के खलीमपुर ताम्रपत्र, श्रेणीसंघ, तमिलनाडु का प्राचीन शहर उथीरामेरु, लोकतंत्र का दार्शनिक आधार, कृष्णदेव राय, अकबर, छत्रपति शिवाजी, स्थानीय स्वशासन आदि हैं। इससे यह झूठ ध्वस्त हो जाता है कि अंग्रेजी शासन के कारण ही भारत एक राष्ट्र-राज्य के रूप में संगठित हुआ तथा इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था मिली। दरअसल, आम विश्व को यह जानकारी ही नहीं है कि भारत हजारों वर्ष पूर्व भी एक संगठित सुव्यवस्थित शासन तंत्र, समाज व्यवस्था, संस्कृति व अध्यात्म वाला व्यवस्थित राष्ट्र था। मोटे अनाज (मिलेट्स ऐंड अदर एनिशएंट ग्रेन्स इंटरनैशनल रिसर्च इनिशिएटिव) को महर्षि अन्न के नाम से पहल की गई, इससे विदेशी अनभिज्ञ थे।

नृत्य संगीत कार्यक्रम में भी थीम सॉन्ग ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ पर पूरी प्रस्तुति सनातन संस्कृति को दर्शाने वाली थी। शास्त्रीय संगीत वाले सामान्य वाद्ययंत्रों के साथ प्राचीन वैदिक संगीत वाद्ययंत्रों, जनजातीय वाद्ययंत्रों और लोक वाद्ययंत्रों का शानदार सुमेल बनाया गया। सुरबहार, जलतरंग, नलतरंग, विचित्र वीणा, रुद्रवीणा, सरस्वती वीणा, धंगली, सुंदरी, भपंग और दिलरु बा जैसे कई वाद्ययंत्र प्रदर्शित किए गए। भारतीय संस्कृति में ही ये वाद्ययंत्र में मिलते हैं और उनके वाद्य में संपूर्ण ब्रह्मांड की गति और लय के साथ तादात्म्य माना जाता है। राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपति मुर्मू द्वारा आयोजित रात्रिभोज में भारत की ही इतनी विविध निरामिष भोज्य सामग्री परोसी गई, जो अकल्पनीय थी। विश्व के नेताओं को आहसास हुआ कि भारत में भोजन के पीछे भी कितनी गहरी सोच है और उसमें कितनी समृद्ध विविधताएं हैं।

इस तरह यह स्वीकार करने में समस्या नहीं है कि मोदी सरकार ने इस अवसर का  भारत के प्राचीन गौरव, ज्ञान, हिंदुत्व, सनातन संस्कृति तथा एक महान विरासत वाले राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करने के लिए  गहन विमर्श व शोध किया और उसके अनुरूप रचनाएं भी कीं। हिंदुत्व और भारत सरकार की नीति को लेकर की जाने वाली वैश्विक आलोचनाओं का उत्तर देने का इससे श्रेष्ठ अवसर और तरीका नहीं हो सकता था। जैसे प्रधानमंत्री मोदी ऐसे अवसर की तलाश में थे, जिससे टुकड़े-टुकड़े में भारत और हिंदुत्व को समझाने के बजाय उसे समग्रता में पेश किया जाए जिससे विश्व के प्रभावी लोग देख-समझ सकें, इस पर विश्व भर में चर्चाएं हों तथा नकारात्मक धारणाएं ध्वस्त की जा सके। इसका कितना प्रभाव पड़ा, इसके बारे में कहना कठिन है पर यह निष्फल नहीं हो सकता। बाद में किसी भी मौके पर सबका उपयोग हो सकता है। चीन ने ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ एवं महर्षि शब्द का इस आधार पर विरोध किया कि ये संस्कृत के शब्द हैं, जो संयुक्त राष्ट्र से अनुमोदित नहीं है। किंतु भारत का संकल्प नहीं डिगा।

अवधेश कुमार


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