मणिपुर हिंसा की यह है असली वजह, Amit Shah ही सुलझाएंगे मामला !
मणिपुर पिछले पच्चास दिनों से हिंसा की आग में जल रहा है। पूर्वोत्तर के इस खूबसूरत राज्य की खूबसूरती पर ऐसा दाग लग गया है जिसे धोने में वर्षों लग जाएंगे।
![]() Amit Shah And N Beeren Singh |
केंद्र की मजबूत सरकार ,मजबूत इरादों वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह भी मणिपुर की समस्याओं को अब तक सुलझा पाने में क्यों असमर्थ हो रहे हैं ,यह बात समझ से परे है। शनिवार को गृहमंत्री अमित शाह ने सर्वदलीय बैठक का आयोजन कर देश की विभिन्न पार्टी के नेताओं से मुलाक़ात कर मणिपुर की समस्या का हल निकालने की कोशिश की है, हालांकि कांग्रेस ने इस बैठक का बहिष्कार कर इस बैठक को मणिपुर की राजधानी इम्फाल में कराने की मांग रखी है।
मणिपुर हिंसा को लेकर कई तरह की बातें की जा रही है। हालांकि हिंसा की शुरुवात मैतेई समुदाय को आरक्षण दिए जाने को लेकर हुई थी। कुकी समुदाय ने आरोप लगाया था कि वर्षों से चली आ रही परम्परा को ख़तम कर मैतेयी समुदाय को विशेष सहूलियत देने की बात की जा रही है। कुकी समुदाय के मुताबिक़ मैतेई समुदाय को अनुसूचित जन जाति का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए। दरअसल वहां की हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को यह आदेश दिया था कि मैतेई समुदाय को आरक्षित किये जाने की मांग को केंद्र सरकार के पास भेजा जाए। बस इसी आदेश के बाद वहां का कुकी समुदाय भड़क गया। कथित तौर पर कुकी समुदाय की तरफ से ही पहले हिंसा की शुरुवात हुई थी, जिसके बाद मैतेई समुदाय के लोग भी जवाबी कार्यवाई में हिंसा करने पर उतारू हो गए। आगे बढ़ने से पहले थोड़ा मणिपुर की भौगोलिक और जातीय स्थिति पर नजर डाल लेते हैं।
मैतेई समुदाय वहां का बहुसंख्यक और हिन्दू समुदाय है। इसकी आबादी वहां 54 प्रतिशत के आस-पास है, जबकि यह समुदाय वहां की लगभग दस प्रतिशत भूमि पर ही रहता है। वह भी वहां की राजधानी इम्फाल की घाटियों में। मैतेई समुदाय को पहाड़ी इलाकों पर खेती करने या वहां जमीनें खरीदने पर कानूनी रोक लगी हुई है। दूसरी तरफ वहां कुकी समुदाय जो कि अधिकांश ईसाई धर्म के मानने वाले हैं, के लोगों की आबादी 40 या 45 प्रतिशत के आस-पास है, और यह समुदाय वहां की लगभग 90 प्रतिशत के भूभाग पर रहता है। आम आदमी भी आसानी से इस बड़े अंतर को समझ सकता है। आखिर वर्षो से यह अंतर वहां क्यों बना हुआ है। वहां इतनी असमानता क्यों बनी हुई है। खैर यह तो हो गई वहां की जातीय और वहां की भौगोलिक स्थिति। साथ ही साथ वहां शुरू हुए हिंसा की वजह, जो बताई या दिखाई जा रही है, लेकिन हकीकत इससे परे है।
दरअसल यह लड़ाई जरूर उस आदेश के बाद शुरू हुई थी जो वहां की हाई कोर्ट ने दिया था, लेकिन उस आदेश में ऐसा ज्यादा कुछ नहीं था जिसकी वजह से इतनी बड़ी हिंसा हो सके। वह आदेश तो एक बहाना था ,उसी आदेश की आड़ में वहां की सरकार को दबाना था। उसके कुछ फैसलों का विरोध करना था, तो फिर असली वजह क्या है ,यही सवाल आज देश भर के लोगों के जेहन में उठ रहे होंगे। मणिपुर, अच्छे किस्म की अफीम के लिए पूरे देश में मशहूर है। अधिकांश लोगों को पता है कि यहां पैदा होने वाली अफीम की गुणवत्ता 80 फीसदी है। मध्यप्रदेश की अफीम की गुणवत्ता 50 से 55 फीसदी है,जबकि झारखंड के अफीम की गुणवत्ता लगभग 25 फीसदी है। यहां अवैध तरीके से अफीम की खेती की जाती है। इसकी खेती भी कुकी समुदाय के लोग ही करते हैं। अफीम की तस्करी यहां खूब होती है। यहां तक कि म्यांमार से भी लोग यहां आते-जाते रहते हैं। यहां की अफीम राजस्थान के मारवाड़ में खूब भेजी जाती है। चूँकि मारवाड़ में इसकी खपत बहुत है। वहां की पुरानी परम्परा के चलते किसी भी कार्यक्रम में अफीम का सेवन अनिवार्य रूप से किया जाता है। शादी ,विवाह या किसी की मृत्यु के उपरान्त होने वाले कार्यक्रम की समाप्ति वगैर अफीम के संपन्न नहीं होती है। इन्ही वजहों के चलते मणिपुर की अफीम की खपत यहां ज्यादा होती है। तस्करी करके ही अफीम को मारवाड़ भेजा जाता है।
भाजपा की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने अफीम की खेती पर एक तरह से बैन लगा दिया। अब जिस खेती से करोड़ों रुपयों की कमाई होती हो उस पर अचानक रोक लग जाए तो स्वाभाविक रूप से इस काम में लगे हुए लोगों को नाराज होना ही था। जबकि नाराज होने वाले लोग अच्छी तरह जानते थे कि वह काम गलत है,गैरकानूनी है। यही नहीं अवैध अफीम की खेती की कमाई से उग्रवादियों को भी फायदा होता था। इसकी कमाई से उग्रवाद वहां फलता फूलता था। कथित तौर पर अफीम की खेती में लगा कुकी समुदाय को एन बीरेन सिंह का यह निर्णय अच्छा नहीं लगा था। हालांकि कुकी समुदाय अच्छी तरह जानता था कि जो काम वह कर रहा है वह अवैध है, इसीलिए वह राज्य सरकार के उस आदेश के खिलाफ खुलकर नहीं बोल पा रहा था। यानि कुकी समुदाय एक ऐसे मौके की तलाश में था जो उसे मैतेई समुदाय को आरक्षण दिए जाने के रूप में मिल गया। अफीम पर रोक लगाने से नाराज कुकी समुदाय उसी आरक्षण की आड़ में हिंसा करने पर उतारू हो गया। कथित तौर पर उसे अफीम माफियाओं का भी साथ मिलने लगा था। क्योंकि अफीम माफियाओं का भी करोड़ों का नुकसान हो रहा था।
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह चूँकि मैतेई समुदाय से ही आते हैं, लिहाजा उनके लिए कुकी समुदाय को समझाना और भी मुश्किल हो रहा है।अब मणिपुर की हिंसा की आग एक ऐसी जगह पहुँच चुकी है, जहां से इसको नहीं रोका गया तो पूर्वोत्तर का यह खूबसूरत सा राज्य बदनुमा दाग बनकर रह जाएगा, लेकिन सवाल यह है कि वहां की हिंसा की आग पर काबू कैसे पाया जाएगा। फिलहाल केंद्र और राज्य की सरकार को सबसे पहले अपने कदम को शायद कुछ मामलों में पीछे खींचना पडेगा। अपने स्वभाव में कुछ ऐसा लचीलापन दिखाना पडेगा, जिसे देखकर कुकी समुदाय शांत हो जाए। एक बार वहां का माहौल सही हो जाने के बाद दोनों पक्षों को बिठाकर बातचीत की जा सकती है, लेकिन अभी उस हिंसा को रोकना इसलिए जरुरी है क्योंकि वहां बेगुनाह मारे जा रहे हैं। हजारो बेगुनाहों को वहां से पलायन करना पड़ रहा है। कहीं ऐसा ना हो कि बहुत देर हो जाए।
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