सुप्रीम कोर्ट का 1993 का आदेश संविधान का उल्लंघन!

Last Updated 27 Nov 2022 10:01:17 AM IST

केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा है कि मस्जिदों के इमामों को पारिश्रमिक देने का उच्चतम न्यायालय का 1993 का आदेश ‘संविधान का उल्लंघन’ है।


सुप्रीम कोर्ट का 1993 का आदेश संविधान का उल्लंघन!

यह ‘गलत उदाहरण’’ पेश करने के अलावा अनावश्यक राजनीतिक विवाद एवं सामाजिक असामंजस्य का कारण बन गया है। सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन के तहत एक आरटीआई कार्यकर्ता ने दिल्ली सरकार और दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा इमामों को दिए जाने वाले वेतन की जानकारी मांगी थी। इस आवेदन पर सुनवाई के दौरान सूचना आयुक्त उदय महूरकर ने टिप्पणी की कि न्यायालय का यह आदेश उन संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है, जिनमें कहा गया है कि ‘करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल किसी विशेष धर्म के पक्ष में नहीं किया जाएगा।’
न्यायालय ने 1993 में अखिल भारतीय इमाम संगठन की एक याचिका पर वक्फ बोर्ड को उसके द्वारा प्रबंधित मस्जिदों में इमामों को पारिश्रमिक देने का निर्देश दिया था। सूचना आयुक्त ने निर्देश दिया कि उनके आदेश की प्रति केंद्रीय कानून मंत्री को भेजी जाए और संविधान के अनुच्छेदों 25 से 28 के प्रावधानों को अक्षरश: पालन सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाए जाएं ताकि केंद्र एवं राज्यों दोनों में सभी धर्मों के पुजारियों, पादरियों एवं अन्य धर्माचायरें को सरकारी खजाने से मासिक पारिश्रमिक देने के मामले और अन्य मामलों में समानता रखी जा सके।
महूरकर ने कहा, ‘मस्जिदों में केवल इमामों और मुअज्जिनों को सरकारी खजाने से विशेष वित्तीय लाभ देने के दरवाजे खोलने वाले उच्चतम न्यायालय के ‘अखिल भारतीय इमाम संगठन बनाम भारत सरकार’ के मामले में 13 मई, 1993 को सुनाए गए फैसले की बात की जाए तो आयोग को लगता है कि देश की शीर्ष अदालत ने इस आदेश को पारित करके संविधान के प्रावधानों, खासकर अनुच्छेद 27 का उल्लंघन किया, जिसमें कहा गया है कि करदाताओं का धन किसी एक विशेष धर्म के पक्ष में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।’

सूचना आयुक्त ने कहा, ‘आयोग का कहना है कि उक्त आदेश देश में गलत मिसाल पेश करता है और यह अनावश्यक राजनीतिक विवाद और सामाजिक असामंजस्य का कारण बन गया है।’ उन्होंने दिल्ली वक्फ बोर्ड को निर्देश दिया कि आवेदन का जवाब हासिल करने के दौरान आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल का जो समय नष्ट हुआ और उनके संसाधनों का जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई के लिए बोर्ड उन्हें 25,000 रुपये का मुआवजा दे। अग्रवाल को उनके आवेदन का संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया था।  महूरकर ने कहा, ‘जब सरकार द्वारा मुस्लिम समुदाय को विशेष धार्मिक लाभ देने की बात आती है तो इतिहास को देखना आवश्यक है। भारतीय मुसलमानों के एक वर्ग की धार्मिक आधार पर भारत का विभाजन करने की मांग के कारण एक धार्मिक (इस्लामी) राष्ट्र पाकिस्तान का जन्म हुआ था। पाकिस्तान के एक धार्मिक (इस्लामी) राष्ट्र होने के बावजूद, भारत ने सभी धर्मों को समान अधिकार की गांरटी देने वाला संविधान चुना।’

भाषा
नई दिल्ली


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