सीबीआई के अनुरोध लंबित रहने पर कोर्ट चिंतित
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि यह ‘वांछनीय स्थिति नहीं है’ कि सीबीआई द्वारा पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र सहित आठ राज्यों को 2018 से इस साल जून तक मामलों की जांच के लिए सहमति देने के अनुरोध 78 फीसद मामलों में लंबित हैं।
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शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सीबीआई निदेशक के हलफनामे से सामने आए दो पहलुओं से ‘चिंतित’ है- पहला, सीबीआई द्वारा आठ राज्यों से किए गए अनुरोधों का लंबित रहना तथा दूसरा, सीबीआई द्वारा जांच किए जा रहे मामलों में अपीलीय अदालतों के स्थगन आदेश।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश के अनुपालन में सीबीआई निदेशक के हलफनामे का जिक्र किया जिसमें एजेंसी को अभियोजन इकाई को मजबूत बनाने के लिए उठाए जाने वाले कदमों, बाधाओं और दोषसिद्धि दर के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया गया था। ये मुद्दे तब सामने आए थे जब न्यायालय ने गौर किया था कि जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के 2018 के आदेश के खिलाफ सीबीआई की अपील 542 दिनों की देरी के बाद दायर की गई थी।
पीठ ने सोमवार को मामले की सुनवाई करते हुए कहा, हलफनामे में बताई गई बाधाओं में से एक यह है कि सीबीआई ने महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल और मिजोरम की सरकारों को 150 से अधिक अनुरोध भेजे हैं। ये अनुरोध उन राज्यों में मामलों की जांच के लिए विशिष्ट सहमति प्रदान करने के लिए 2018 से जून 2021 के दौरान किए गए।
पीठ ने कहा, हलफनामे के अनुसार, इन आठ राज्यों ने डीएसपीई कानून की धारा छह के तहत दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (सीबीआई) को पहले दी गई सामान्य सहमति को वापस ले लिया है। पीठ ने कहा, ये अनुरोध आय के ज्ञात स्रेतों से अधिक संपत्ति के मामलों, धोखाधड़ी के आरोपों से संबंधित मामलों, हेराफेरी और बैंक धोखाधड़ी के मामलों की जांच के लिए किए गए हैं। पीठ ने कहा, 78 प्रतिशत मामलों में अनुरोध लंबित हैं जो मुख्य रूप से देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले बैंक धोखाधड़ी के बड़े मामलों से संबंधित हैं। पीठ ने कहा, निश्चित रूप से यह वांछनीय स्थिति नहीं है।
न्यायालय ने कहा, दूसरा पहलू अपीलीय अदालतों द्वारा दिए गए स्थगन आदेशों से संबंधित है जो मामलों में सुनवाई की गति को प्रभावित करते हैं। पीठ ने कहा, इस पहलू को भारत के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष विचार और उचित निर्देश के लिए रखा जाना चाहिए। पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने में 542 दिनों की देरी पर चार सप्ताह के भीतर 25,000 रुपये जमा करने की शर्त को माफ कर दिया। उसने कहा, यह पता लगाने के लिए जांच की जाए कि इस देरी के लिए कौन जिम्मेदार था और जुर्माना जिम्मेदार अधिकारी से वसूल किया जाए।
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