युद्ध नहीं चाहते, पर देश की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं : किशन रेड्डी

Last Updated 25 Jun 2020 04:31:22 AM IST

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत-


सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय एवं केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी

गलवान घाटी में 20 सैनिकों की शहादत के बाद देश भर में रोष व्याप्त है। जनता और खासकर विपक्ष की जुबान पर यह सवाल है कि आखिर चीनी सैनिकों ने कैसे भारतीय सैनिकों पर हमला किया। क्या सीमा सुरक्षा को लेकर कोई चूक हुई है। क्या कूटनीतिक स्तर पर कोई चूक हुई। चीन के खिलाफ सीमा सुरक्षा को लेकर हमारी कैसी तैयारी है। सुरक्षा संबंधी इसी तरह के सवालों पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने खास बातचीत की। प्रस्तुत है विस्तृत बातचीत:

भारत और चीन के बीच लद्दाख में हिंसक झड़प के बाद पैदा हुए विवाद का समाधान क्या है? गलवान घाटी में हमारे सैनिकों ने कुर्बानी दी है। आखिर गतिरोध की मूल वजह क्या थी? और इससे निपटने के लिए क्या तैयारियां हैं?
चीन जानबूझकर इस तरह के मुद्दों को हवा देता है। हिंसक झड़प में हमारे 20 जवान शहीद हुए हैं। चीन इस मुद्दे को बड़ा बनाने पर लगा हुआ है। ब्रिटिश जब इस देश को छोड़ कर गए थे, तभी से उन्होंने जमीन पर लकीर खींचने के बजाय बस पेपर पर लकीर खींची थी। यहीं से यह लड़ाई शुरू हुई थी। 1962 का युद्ध भी इसी वजह से हुआ था। कांग्रेस ने इतने अहम मुद्दे को कारपेट के नीचे दबाकर रखा। इससे समस्या और गंभीर हो गई। कांग्रेस ने कभी भी जमीन के इस विवाद को गंभीरता से नहीं लिया। इसीलिए आज हमें अपने 20 जवानों की शहादत देनी पड़ी।

हमें अपनी पैरामिलिट्री फोर्सेस को लगाना पड़ा है। आईटीबीपी की 40 कंपनियों को तैनात किया गया है। इनमें एडीजी स्तर के अधिकारी भी हैं। आईटीबीपी की आवश्यकता क्यों पड़ी?
हमारे पास 7 पैरामिलिट्री फोर्सेस हैं। इनमें आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआईएसएफ, एसएसबी, डिजास्टर मैनेजमेंट, असम राइफल्स आदि हैं। आईटीबीपी को चाइना बॉर्डर के लिए ही रखा गया है। इसी तरह असम राइफल्स, असम और बांग्लादेश की सीमा पर काम करते हैं। बीएसएफ, पाकिस्तान सीमाओं पर तैनात रहती है। सीआईएसएफ को सामान्य तौर पर कहीं भी भेजा जा सकता है। आईटीबीपी की प्रमुख जिम्मेदारी चाइना बॉर्डर की रक्षा ही है। चाइना का रवैया जिस तरह का रहा है उसके बाद हमने सिर्फ आईटीबीपी नहीं, बल्कि अपने अन्य सुरक्षाबलों को भी यहां तैनात किया है। यह बहुत स्पष्ट है कि हम अपनी 1 इंच जमीन भी नहीं छोड़ेंगे और न ही किसी अन्य कि हमें 1 इंच जमीन चाहिए। हम बस अपनी संप्रभुता और अखंडता को बरकरार रखना चाहते हैं।

चीन सीमा विवाद के नाम पर अक्सर भारतीय इलाके में घुसपैठ और अतिक्रमण की कोशिश करता रहता है और हर बार उसे पीछे हटना पड़ता है। इसके पीछे क्या रणनीति है? सीमा विवाद के स्थायी हल के लिए चीन की ओर से कोई ठोस पहल क्यों नहीं होती?
चीन बिल्कुल ही अलग देश है। वहां लोगों की कोई भागीदारी नहीं होती है। आप जिस तरह से मुझसे सवाल पूछ रहे हैं। वहां कोई सवाल नहीं पूछ सकता। वहां तानाशाही चलती है और भारत में प्रजातंत्र है। हम सभी राजनीतिक पार्टयिों और बुद्धिजीवियों को साथ लेकर चर्चा करते हैं, जबकि चीन का तौर-तरीका बिल्कुल अलग है। हिंदी चीनी भाई-भाई कहा गया जोकि संभव नहीं है। वहां एक करोड़ लोग मर भी जाएं, तो कोई फर्क नहीं पड़ता। यह वहां का तरीका है, लेकिन हमारे यहां हर जान की कीमत होती है।

चीन की ओर से बार-बार उकसाने की कार्रवाई होती रहती है। अगर युद्ध के हालात बने तो भारत की कैसी तैयारी है?
हम युद्ध नहीं चाहते हैं, लेकिन अपनी अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखने के लिए हम हमेशा तैयार रहेंगे। हमारी तीनों सेनाएं (वायु सेना, जल सेना और थल सेना) पूरी तरह से तैयार हैं। 1962 का वक्त अलग था तब हमारी एयरफोर्स की तैयारी नहीं थी। अब हम देश की रक्षा के लिए जो भी कुछ करना होगा, हम करेंगे।

लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ हुई झड़प में शहीद कर्नल बी संतोष बाबू के घर जाकर आपने उनके परिवार को सांत्वना दी और कहा कि शहादत को बेकार नहीं जाने देंगे। उनके परिवार में किस तरह का हौसला देखने को मिला?
मैं उनके घर गया था और सच में ही उनके पिता और उनकी पत्नी का साहस देखने लायक है। उनके पिता ने मुझे बताया कि वह बैंक ऑफिसर थे और हमेशा से अपने बेटे को पुलिस में भर्ती कराना चाहते थे। इसके लिए बकायदा उन्होंने सैनिक स्कूल भी भेजा। संतोष बाबू से बाद में उन्होंने पूछा कि क्या आप सेना में जाना चाहते हैं या कोई और काम करना चाहते हैं। संतोष बाबू ने उस वक्त कहा था, मैं देश की सेवा करना चाहता हूं। पत्नी ने भी बताया कि 11 साल पहले ही शादी के बाद उन्होंने बता दिया था कि मैं देश को ज्यादा समय देता हूं और कोशिश करूंगा तुम्हें भी पर्याप्त समय दूं। हालांकि, उनके पिता और पत्नी ने सरकार के नाम संदेश भी दिया। जिसे मैं यहां स्पष्ट तौर पर रखना चाहूंगा। उन्होंने कहा युद्ध नहीं होने चाहिए बेटा जाने से परिवार पर बड़ी आफत टूट पड़ती है। बातचीत के द्वारा हल निकाला जाना चाहिए।

कोरोना संक्रमण काल के दौरान लॉकडाउन को सफल बनाने में आप लोगों को बहुत मेहनत करनी पड़ी क्योंकि यह पूरा मामला आपके मंत्रालय के अंतर्गत आता था। आपने और आपके सहयोगी मंत्री नित्यानंद राय ने कई रातें कंट्रोल रूम में ही बिताई। किस तरह आपने लॉकडाउन को मैनेज किया उसके बारे में भी बताएं?
बजट सेशन के बीच में ही कोरोना संक्रमण काल की विभीषिका देखने को मिल गई थी। अगले ही दिन लॉकडाउन की घोषणा माननीय प्रधानमंत्री जी ने की। उसी रात हमने एक कमांड कंट्रोल रूम बनाया और डिजास्टर मैनेजमेंट के तहत काम करना शुरू किया। यह भी गृह मंत्रालय का ही हिस्सा है। ऐसे वक्त पर हमारी जिम्मेदारी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है चाहे वायु सेवाएं हो, यातायात हो, नियमों को लागू करवाना हो, लोगों के लिए खाने की व्यवस्था करनी हो जैसे सारे कदम हमें उठाना पड़ते हैं। इसके अलावा लगातार राज्य सरकारों को एडवाइजरी भी जारी की जा रही थी। इसके लिए हमने 62 ऑनलाइन फोन नंबर रखे थे। इनसे व्यक्तिगत समस्याओं से लेकर राज्य सरकारों तक की समस्याओं को हम लगातार देख रहे थे। किसी का ऑपरेशन हो, लोग कहीं फंस गए हों, गाड़ी की समस्या आ रही हो, प्रवासी मजदूरों का मामला हो या फिर राज्य सरकारों की दिक्कतें या अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से लाखों लोगों की घर वापसी करने की दरख्वास्त हो, इन सारी जिम्मेदारियों को देखने के लिए हम 24 घंटे लगे रहे। 300 लोगों की डिजास्टर मैनेजमेंट की टीम बनाई गई। इसमें सब-इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों को हमने रखा। यहां ज्वाइंट सेक्रेट्री लेवल के अधिकारियों को हर डिपार्टमेंट से रखा गया था। इसमें सप्लाई, एविएशन और तमाम अन्य विभागों के अधिकारी थे। मैं और नित्यानंद राय जी 12-12 घंटे कंट्रोल रूम में रहते थे। मुख्यमंत्रियों, डीजीपी, प्रधानमंत्री कार्यालय, स्वास्थ्य मंत्री आदि से बात करने की जिम्मेदारी हमारी रहती थी। इसके अलावा माननीय अमित शाह जी से अलग-अलग मसलों पर सुझाव लेने का काम भी हम करते रहे। यह हमारे लिए बहुत बड़ा अनुभव रहा था। साथ ही साथ हमारे पार्टी कार्यकर्ताओं ने भी लोगों के लिए खाना और अन्य सुविधाओं का इंतजाम किया। कुल मिलाकर 10 से 10,000 लोगों तक की समस्याओं को हमने इस कंट्रोल रूम से दूर किया।

अमित शाह बहुत ही परिश्रमी नेता माने जाते हैं। वह अनवरत काम करते हैं। जिस तरह आप लोग लगातार काम करते रहे। वह लॉकडाउन के दौरान किस तरह काम कर रहे थे?
सामान्य तौर पर भी वह देर रात तक दफ्तर में काम करते रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान वह 3 बजे रात तक ऑफिस में ही रहकर काम किया करते थे। वह बहुत ही परिश्रमी व्यक्ति हैं। लॉकडाउन की तरह ही उन्होंने सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट और आर्टकिल 370 जैसे बड़े-बड़े निर्णयों के लिए रात-दिन एक कर दिया। वह बहुत रिसर्च करते हैं और उनके साथ हमें भी बहुत सीखने को मिलता है।

अमित शाह जी के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत ही गहराई से अध्ययन करते हैं। पार्लियामेंट में जब वह सवालों के जवाब देते हैं तो वह रिसर्च दिखाई भी देती है। पार्लियामेंट में तमाम सवालों के जवाब देने के लिए वह किस तरह की तैयारी करते हैं?
उनकी ग्रहण करने की क्षमता बहुत ज्यादा है और सबसे महत्वपूर्ण है उनका अनुभव। गुजरात के गृह मंत्री रहने के नाते उन्हें बहुत अनुभव मिला। इसके बाद चुनाव में उन्हें पहले उत्तर प्रदेश का प्रभाव और फिर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली। उनके अनुभव का दायरा बहुत बड़ा है। उनके पास यदि अफसर आकर कुछ कहते हैं तो उनके पास पहले से 10 ऐसी बातें मौजूद होती हैं, जो उनके शोध को दिखाती हैं। वह बहुत कम समय में तैयारी कर लेते हैं। जहां तक पार्लियामेंट में सवालों के जवाब का है, उन्हें अपेक्षित प्रश्नों के बारे में ज्यादातर समय पता होता है और उसके बारे में वह पहले से तैयारी करते हैं। छोटे विषयों पर वह मुझे और नित्यानंद राय जी को बोलने के लिए कहते हैं और बड़े विषयों पर स्वयं जवाब देते हैं।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेंद 370 हटाए जाने के बाद पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत जिन नेताओं को हिरासत में लिया था, उनमें से अधिकांश को रिहा किया जा रहा है, क्या यह मान लिया जाए कि अब हालात नियंत्रण में हैं।
अंग्रेज जाते-जाते जम्मू कश्मीर की समस्या भी हमें दे गए थे। तभी से यह 370 का एक्ट चला आ रहा था। डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर का संविधान पूरे देश में लागू है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में यह लागू नहीं था। वहां अलग ही किस्म के नियम थे। इनमें से ज्यादातर की लोगों को जानकारी होगी। बहुत डिटेल में मैं नहीं जाऊंगा, लेकिन कम उम्र में शादियां हों, जमीन न खरीद पाना हो, स्कॉलरशिप नहीं मिलना हो, महिलाओं को समान अधिकार न हो जैसी बहुत सी विशेषताएं यहां पर चली आ रही थीं। 370 को हटाने के लिए अमित शाह जी ने गहरी रिसर्च की। इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं दी गई। कुछ लोगों को अगर यह अंदाजा था भी कि 370 और 35-ए को हटाने पर काम किया जा सकता है, तो उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख को यूनियन टेरिटरी बना दिया जाएगा। एक झटके में बड़ा निर्णय लिया गया। इसके लिए उन्होंने इतिहास पर बहुत शोध किया। जवाहरलाल नेहरू और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के तमाम भाषाणों को पढ़ा। कई किताबों को पढ़ा और इस पूरे मामले के बैकग्राउंड को अच्छी तरह से जांचा परखा। मैं जब राजनीति में आया था, तो 1980 से ही हमारा एक नारा यह भी था कि कश्मीर हिंदुस्तान का, नहीं किसी के बाप का। आज सचमुच में कश्मीर हमारा है। पाकिस्तान की कोशिशें पूरी तरह से नाकाम हुई है। यहां तक कि लॉकडाउन के दौरान भी पाकिस्तान अपने नापाक इरादों को दिखाता रहा है और हमने अभी तक 90 आतंकियों को मार गिराया है। आप इसी से पाकिस्तान की बौखलाहट का अंदाजा लगा सकते हैं कि एक तरफ कोरोना महामारी पूरी दुनिया को रु ला रही है। खुद पाकिस्तान भी इसका सामना कर रहा है और दूसरी तरफ वह आतंकियों को इस तरीके से भारत की सीमा में भेजने का काम कर रहा है।
लोगों को नजरबंद रखने का निर्णय गृह मंत्रालय की तरफ से नहीं होता। यह राज्यपाल और वहां के चीफ सेक्रेटरी ने निर्णय लिया था। हमने सिर्फ इतना कहा था कि लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगड़नी नहीं चाहिए। इससे पहले कांग्रेस की तरफ से बयान दिए जा रहे थे कि जम्मू-कश्मीर खालिस्तान बन जाएगा, पाकिस्तान युद्ध कर देगा, इस्लामिक राष्ट्र हमसे नाराज हो जाएंगे। मगर आज इस बारे में ऐसी बातें कोई पूछता भी नहीं। यहां की जनता को आजादी चाहिए, लेकिन उन्हें आतंकवाद से आजादी चाहिए, 370 से आजादी चाहिए, वह चाहते हैं कि विकास की योजनाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें यह सारी सुविधाएं उन्हें मिलें।

पाकिस्तान, चीन और अब नेपान? तीन पड़ोसी मुल्कों से सीमा पर भारत को चुनौती मिल रही है। ऐसे में सरकार की रणनीति क्या है? क्योंकि लंबे समय तक ऐसी स्थितियां किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं मानी जा सकती हैं।
 यूपीए की डा. मनमोहन सिंह जी की सरकार के समय सीपीआई और सीपीएम भी सरकार की भागीदार थीं। सोनिया गांधी उस समय कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। नेपाल के राजा के खिलाफ आंदोलन चलाने के लिए चीन ने बहुत पैसा और हथियार माओवादियों को दिए। उस समय भारत ने अपरोक्ष रूप से इन चीजों का समर्थन किया। सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी ने वहां के नेता प्रचंड के साथ मिलकर भारत के खिलाफ ही बीज बो दिए। हमारा नेपाल के साथ रोटी-बेटी का रिश्ता  रहा है। बिहार, उत्तर प्रदेश की तरह ही हम नेपाल को भी अपने देश का हिस्सा मानते थे और उसके सुख-दुख में हमेशा साथ खड़े रहे। नेपाल रेजीमेंट के नाते भी रिश्ता मजबूत होता है। नेपाल हिंदू राष्ट्र जो धीरे-धीरे अब माओवादी देश बन गया है। यूपीए के समय में भारत के खिलाफ नेपाल को खड़ा करने के बीज बो दिए थे। चीन के मंसूबों को उस समय अपरोक्ष रूप से यूपीए सरकार ने ही हवा दी। चीन इसके अलावा पाकिस्तान की जमीनों को भी कब्जा चुका है। इसी तरह उसने श्रीलंका और बांग्लादेश में भी प्रयास किए लेकिन यह देश अब धीरे-धीरे अपने को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। पाकिस्तान में तो चीन धड़ल्ले से कंस्ट्रक्शन के काम कर रहा है और उसे किसी तरह की कोई इजाजत की जरूरत भी नहीं होती। कुल मिलाकर यूपीए की विदेश नीति की वजह से जो बीज बोए गए थे। उनके दुष्परिणाम फिलहाल देखने को मिल रहे हैं। हमारा दृढ़संकल्प है कि अपनी अखंडता और संप्रभुता के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। इस वक्त पूरी दुनिया भारत के साथ खड़ी हुई है।

सीएए आंदोलन के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के लिए आपने सोशल मीडिया और राजनीतिक पार्टयिों को जिम्मेदार बताया था। क्या आपको नहीं लगता कि अगर इंटेलिजेंस और पुलिस ने थोड़ी मुस्तैदी दिखाई होती तो दंगाई अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाते ?
हमारे यहां वामपंथी विचारधारा और कांग्रेस के लोगों ने मिलकर लोगों को भड़काया। इसकी बहुत बड़ी वजह है पांच सालों में किया गया प्रधानमंत्री मोदी का काम और उनका दोबारा ज्यादा बहुमत के साथ सत्ता में आ जाना। इसके बाद 370 और 35ए जैसे मुद्दों पर कठोर निर्णय से साफ हो गया कि प्रधानमंत्री मोदी आने वाले समय में देश के हित में और काम करेंगे। ऐसे में इन लोगों का कोई स्थान नहीं रह जाएगा। सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट (सीएए) पर इन्हें लोगों को भड़काने का एक मौका मिला। उन्होंने मुसलमानों के बीच में जाकर भड़काऊ भाषण दिए जबकि इस एक्ट का इन लोगों से कोई लेना-देना नहीं था। आज चीन के साथ हमारे 20 जवान शहीद हो जाते हैं और वामपंथियों का एक श्रद्धांजलि वाला बयान भी नहीं आता है। वहीं चीन के सामान के बहिष्कार का भी समर्थन नहीं करते हैं। पाकिस्तान ने भी भारत के खिलाफ कई साजिशें रचीं।

मोदी सरकार पार्ट वन और पार्ट टू में एनजीओ पर कई कार्रवाइयां की गई हैं। इंटेलिजेंस एजेंसी स्लिप फंडिंग और दूसरी चीजों पर नजर बनाए हुए हैं। कुछ एनजीओ अच्छा काम भी करते हैं। संगठनों पर कार्रवाई क्यों की जा रही है?
एनजीओ के नाम पर करोड़ों रुपए विदेशों से लाए जाते हैं और देश के विकास के खिलाफ काम किया जाता है। माइनॉरिटी को भड़काया जाता है और धर्म परिवर्तन करवाया जाता है। कोई किस धर्म को मानता है। इससे दिक्कत नहीं है लेकिन गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठाकर पैसे का लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाना गलत है। उदाहरण के लिए मैं आंध्र प्रदेश से आता हूं। यहां आदिवासी इलाकों में वायरल बुखार फैलता है। ऐसे समय पर मिशनरीज के लोग यहां पर जाते हैं और पहले एक नकली टेबलेट देते हैं। जो सिवाय चॉकलेट के और कुछ नहीं होती। तीन दिनों तक जब बुखार में कोई फर्क नहीं पड़ता है तो चौथे दिन पेरासिटामोल की गोलियां देते हैं और कहते हैं इसे हमारे भगवान का नाम लेकर खाओ तो तुम्हारा बुखार ठीक हो जाएगा। अब बताइए इस तरह की हरकतों के साथ यदि आप धर्म परिवर्तन करवाते हैं तो कैसे इस तरह के एनजीओ फंडिंग को चलने दिया जाए। हमारा मकसद एनजीओ की फंडिंग को रोकना नहीं है लेकिन देश के विकास के खिलाफ जो काम कर रहे हैं उन लोगों को रोकना जरूरी है। यह लोग ब्लू रिवॉल्यूशन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट जैसे विकास के कामों में रोड़ा अटकाते हैं। नर्मदा पर बनने वाले बड़े प्रोजेक्ट के खिलाफ विदेशी फंडिंग होती है। यह भी सच है कि सभी संगठन इस तरह से काम नहीं करते हैं। जो अच्छा काम कर रहे हैं वह करते रहें। उनके साथ कोई दिक्कत नहीं।

राहुल गांधी लगातार प्रधानमंत्री पर हमलावर हैं और वह लॉकडाउन को हटाए जाने को लेकर अपना विरोध जता रहे हैं। उनके बयानों पर क्या कहना चाहेंगे?
यह कहना अच्छा नहीं लगता लेकिन राहुल गांधी को राजनीति की कोई समझ नहीं है। आप उनके सभी बयानों को सोशल नेटवर्किंग साइट से निकाल लीजिए। जब लॉकडाउन नहीं लगाया गया तो उन्होंने सवाल किया लॉकडाउन क्यों नहीं लगाया जा रहा है। जब लॉकडाउन लगाया गया तब कहा कि लॉकडाउन ठीक से नहीं लगा है। जब लॉकडाउन उठा लिया गया तब उन्होंने कहा लॉकडाउन को क्यों उठा लिया गया। जहां उनकी सरकार है, राजस्थान, पंजाब और पहले मध्य प्रदेश में थी, वहां के मुख्यमंत्रियों की राय भी राहुल गांधी से मेल नहीं खाती है। उनके अपने नेता उनकी बात को ठीक नहीं पाते हैं। प्रधानमंत्री ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बातचीत की और कोरोना संक्रमण के खिलाफ सभी का साथ दिया। उन्होंने यह भी अंतर नहीं किया कि किस राज्य में हमारी सरकार है। किस राज्य में नहीं है हर मंत्री को 20 दिनों का जिम्मा दिया गया है। जो हर जिले के डीएम से बात करते हैं। मुझे भी 17 जिलों की जिम्मेदारी दी गई है और मैं लगातार अधिकारियों से बात करके पल-पल की जानकारियां लेता हूं। राहुल गांधी की राजनीति का कोई स्तर नहीं है। उन्हें जिले की समझ नही है न ही राज्य की, न राष्ट्रीय राजनीति की, न ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति की। वह एक नाकाम राजनीतिज्ञ हैं।

आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए जारी 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में नकद कम और लोन ज्यादा हैं। ये पैकेज अर्थव्यवस्था को ऊंचाइयों पर ले जाने में कितना कामयाब हो पाएगा?
गरीबों तक सीधे मदद पहुंची है। सबसे पहले गरीबों को खाना मिले इस बात को सुनिश्चित किया। तीन महीने तक का चावल दिया गया है। जनधन खाता धारकों किसानों को पैसा दिया गया है। गरीबों को सिलेंडर दिए गए। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात मनरेगा के लिए 60 हजार करोड़ रु पए का बजट अप्रैल में रखा गया था। आत्मनिर्भर भारत ने इसमें 40 हजार करोड़ रुपए को बढ़ाया गया है। यानी कुल एक लाख करोड़ का बजट मनरेगा योजना के तहत रखा गया है। सभी राज्य सरकारों को बता चुके हैं कि हर एक को काम मिलना चाहिए, पैसा मिलना चाहिए। शहरी इलाकों में एमएसएमई को आगे बढ़ाने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए का फंड रखा गया है। इनके अलावा स्ट्रीट वेंडर्स और किसानों के लिए भी मदद की गई है। आजादी के बाद अभी तक सरकार ने इतना गेहूं कभी नहीं खरीदा था जितना इस बार खरीदा है। हमारे पास पर्याप्त चावल और गेहूं है। दो साल तक अनाज की कोई दिक्कत देश में नहीं होगी। साथ ही पर्याप्त धन भी मौजूद है। मनरेगा के तहत लोगों को धनराशि मिलती रहेगी इसके विपरीत यदि 7000 रुपए किसी के अकाउंट में डाल दिए जाएं तो वह कितने दिन तक चलेंगे? हमारा मकसद है कि लोगों को रोजगार मिलता रहे, भोजन मिलता रहे।

तब्लीगी जमात के लोगों पर आपने कठोर एक्शन ले लिया। अब उन्हें जमानत के लिए चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। ऐसा क्यों?
इनके ऊपर सिर्फ  केस लगाए गए हैं। किसी को जेल में नहीं डाला गया, क्योंकि यह विदेशी हैं। इनकी एंबेसीज से संपर्क किया जा रहा है। कोई भी वीजा रूल का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई तो होनी चाहिए। भारत ऐसा देश नहीं है जहां मनमर्जी से कोई भी आएगा, आतंकवाद फैलाएगा, राशन कार्ड बनवा कर यहां बस जाएगा या मजहब के नाम पर प्रचार करेगा। नियमों का पालन करना पड़ेगा और हम वही करवा रहे हैं।

दिल्ली दंगों में क्या हुआ यह अभी तक किसी को नहीं पता है। क्या दिल्ली दंगों के पीछे छिपे चेहरे कभी सामने आ पाएंगे? इस दिशा में किस तरह की कार्रवाई अभी तक हुई है ?
बिल्कुल इस पूरे मामले पर कार्यवाही चल रही है। लॉकडाउन लगने की वजह से कई चीजें सामने नहीं आई। आंदोलन खत्म होने के वक्त यह दंगे हुए थे और लॉकडाउन में भी आंदोलन कुछ दिन चला लेकिन जब सख्ती से लॉकडाउन का पालन करवाया गया तब यह खत्म हुआ था। दंगा किसने करवाया था? कौन है इसके पीछे है? षड्यंत्र कैसे रचा गया? और कहां से इन दंगों के लिए पैसा आया था? यह सारी जानकारियां हम देश और दुनिया के सामने रखेंगे। दिल्ली पुलिस लगातार इस पर काम कर रही है और इन दंगों के पीछे जो भी चेहरे उनके खिलाफ इतनी कड़ी कार्रवाई की जाएगी कि आगे से कोई दंगा करने के बारे में सोचेगा भी नहीं।

आप अमित शाह जी के मातहत काम कर रहे हैं। उनके व्यक्तित्व के बारे में क्या बताना चाहेंगे? उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा है?
उनके मातहत काम करना एक बहुत बड़ा मौका है क्योंकि उनके साथ सीखने को बहुत कुछ मिलता है। वह बहुत कम बात करते हैं लेकिन ज्यादा काम करते हैं। जो सही बातें होती हैं उन पर वह फौरन फैसला लेते हैं और यदि कोई निर्णय लेते हैं तो उससे पीछे नहीं हटते हैं। यदि देश के लिए यह निर्णय अच्छा है तो वह इसके लिए जरूर आगे बढ़ते हैं। हाल में उन्होंने दिल्ली में दो लाख टेस्ट कराने के लिए 169 सेंटर की जिम्मेदारी मुझे दी है। वह लगातार इस पर पूछते हैं। यहां तक कि वह दिन में तीन बार पूछते हैं कि कितने टेस्ट हुए और क्या स्थिति चल रही है। उन्होंने डिफेंस और प्राइवेट सेक्टर की मदद से एक सौ बेड के कोरोना हॉस्पिटल का निर्माण भी करवाया है। जिसमें वेंटीलेटर्स की भी व्यवस्था की जा रही है। एक महीने में दिल्ली वालों को यह अस्पताल मिल जाएगा। इसकी मॉनिटिरंग भी वह लगातार करते हैं। उनके कमरे में सभी गृह मंत्रियों के नाम लिखा हुआ बोर्ड है जिसमें उनका भी नाम है। वह कहते हैं कि यहां नाम लिखाने के लिए मैं गृह मंत्री नहीं बना। देश की सेवा के लिए बना हूं। ऐसे नाम यहां आते जाएंगे और जाते जाएंगे। महत्वपूर्ण यह है कि जब आपको अवसर मिला है तो आप देश की सेवा करें कुछ करके दिखाएं।

पूरी दुनिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खासे लोकप्रिय हैं। आप उनकी क्या विशेषताएं देखते हैं?
भारत सरकार की जितनी भी योजनाएं हैं उनके लोगो या क्रिएटिव कामों में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक विद्यार्थी की तरह दिलचस्पी लेते हैं। वर्ष 1993 में मुझे, स्वर्गीय अनंत कुमार जी और माननीय मोदी जी को बीजेपी ने अमेरिका भेजा था। तब 40 दिन हम अमेरिकी सरकार के मेहमान थे। मोदी जी जहां भी जाते थे वहां लिखना शुरू कर देते थे। लोगों से सवाल पूछते थे। वह सचमुच में एक विद्यार्थी मन के व्यक्ति हैं और आज भी विद्यार्थी की तरह ही रहते हैं। सबसे महत्वपूर्ण गुण उनका यह है कि उनके दिल में भारत और भारत के विकास के अलावा कुछ नहीं है। वह हमेशा इस बात को दोहराते रहते हैं, शक्तिशाली भारत बनाना है। छह साल से वह प्रधानमंत्री हैं लेकिन कभी कोई बुखार, आराम, किसी निजी कार्यक्रम में जाने के लिए उन्होंने छुट्टी नहीं ली। दुनिया में ऐसा कोई नेता नहीं है जिसने अपने आप को पूरी तरह से देश के लिए समर्पित कर दिया हो।



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