दिल्ली उच्च न्यायालय ने फरवरी 2020 के दंगों के दौरान आसूचना ब्यूरो (आईबी) के कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या के मामले में आम बृहस्पतिवार को आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की जमानत याचिका खारिज कर दी।

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न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने आदेश सुनाते हुए कहा, ‘‘अर्जी खारिज की जाती है।’’
पुलिस ने हुसैन की याचिका का विरोध करते हुए इसे एक युवा खुफिया अधिकारी की नृशंस हत्या से जुड़ा चौंकाने वाला मामला बताया था।
आदेश में कहा गया है कि साक्ष्यों से पता चलता है कि जब शर्मा आरोपियों को शांत करने और उनसे कानून अपने हाथ में न लेने का आग्रह कर रहे थे, तो उन्हें पकड़ लिया गया, घसीटा गया और धारदार हथियार से 51 वार किये गये, उसके बाद उनका शव पास के नाले में फेंक दिया गया।
हुसैन के वकील ने दलील दी कि उन्होंने हिरासत में पांच साल से अधिक समय बिताया है और मुकदमे के शीघ्र निस्तारण के लिए अधीनस्थ अदालत के “सर्वोत्तम प्रयासों” के बावजूद, इसके निष्कर्ष में समय लग सकता है।
निचली अदालत ने 12 मार्च को हुसैन की जमानत पर रिहाई का आदेश देने से इनकार कर दिया था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 26 फरवरी, 2020 को शिकायतकर्ता रविंदर कुमार ने दयालपुर पुलिस थाने के अधिकारियों को सूचित किया था कि आसूचना ब्यूरो में तैनात उनका बेटा अंकित शर्मा 25 फरवरी, 2020 से लापता है।
बाद में उन्हें कुछ स्थानीय लोगों से पता चला कि एक व्यक्ति की हत्या करके चांद बाग पुलिया मस्जिद से उसका शव खजूरी खास नाले में फेंक दिया गया था।
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि शर्मा का शव खजूरी खास नाले से बरामद किया गया था और उसके शरीर पर जख्मों के 51 निशान थे।
हुसैन इस मामले में एक आरोपी हैं।
चार अन्य आरोपियों को भी उस हिंसक भीड़ का हिस्सा बताया गया है, जो दंगे और आगजनी की घटनाओं में शामिल थी, जिसमें शर्मा की मौत हो गई।
नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा के बाद 24 फरवरी, 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक झड़पें हुईं, जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए और कई घायल हो गए थे।
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