जानिए, क्या कहते हैं नागरिकता संशोधन अधिनियम के प्रावधान?

Last Updated 17 Jan 2020 10:14:21 AM IST

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का उद्देश्य उन छह अल्पसंख्यक समुदायों- हिंदुओं, पारसियों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करना है, जो मुस्लिम बहुल देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न का सामना करते हुए 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले भारत आए थे।


यह विवादास्पद कानून नागरिकता अधिनियम-1955 का संशोधित रूप है। नया नागरिकता कानून 10 जनवरी को प्रभावी हो गया। इसे 11 दिसंबर 2019 को संसद से पारित कर दिया गया और बाद में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर को इसे मंजूरी दे दी।

इस कानून का विरोध देशभर के साथ ही असम में भी जोरशोर से हो रहा है, क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने आशंका जताई कि यह पड़ोसी मुस्लिम बहुल बांग्लादेश से हजारों अवैध प्रवासियों को कानूनी निवासियों में बदल देगा।

देश के काफी मुसलमानों ने भी कानून का विरोध किया है, क्योंकि यह मुस्लिमों को अन्य धर्मों के लोगों की तरह समान नागरिकता का अधिकार नहीं देता है। आलोचकों का कहना है कि यह कानून धर्मनिरपेक्ष संविधान को कमजोर करने वाला है।

इसके साथ ही प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नागरिकता कानून का पालन राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) द्वारा किया जाएगा। इससे अल्पसंख्यकों में डर है कि यह कानून हिंदू-राष्ट्रवादी सरकार द्वारा उन मुसलमानों को निष्कासित करने के लिए बनाया गया है, जिनके पास पर्याप्त नागरिकता दस्तावेज नहीं हैं।

सरकार ने हालांकि इन आरोपों का खंडन किया है और सभी नागरिकों को समान रूप से सुरक्षा मुहैया कराने का संकल्प भी दोहराया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट करते हुए कहा है, "सीएए कानून नागरिकता प्रदान करने के लिए है। यह नागरिकता नहीं छीनता है। सरकार कानून के माध्यम से नागरिकता प्रदान कर रही है। सरकार किसी की भी नागरिकता वापस नहीं ले रही है।"

सीएए के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन के दौरान 26 लोगों की मौत हो चुकी है। सिर्फ उत्तर प्रदेश में 21 लोग मारे जा चुके हैं और 100 से अधिक सुरक्षाकर्मी घायल हो चुके हैं। मोदी के 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद से यह उनके और उनकी सरकार के खिलाफ यह अभी तक का सबसे बड़ा असंतोष देखा जा रहा है।

नागरिकता अधिनियम 1955 से कैसे अलग है सीएए

विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून द्वारा नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया है।

यह नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2 में संशोधन करता है। इसके तहत कहा गया है कि छह गैर-मुस्लिम समुदाय जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले तीन मुस्लिम-बहुल देशों से भारत में प्रवेश किया था और जिन्हें पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920 या फारेनर्स अधिनियम 1946 के प्रावधानों के आवेदन से छूट दी गई है, उन्हें इस अधिनियम के उद्देश्यों के तहत अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।

सीएए में एक नई धारा 6बी शामिल की गई है जिसमें चार ब्योरे का उल्लेख है और उनमें से एक में कहा गया है कि केंद्र सरकार या इस संबंध में इसके द्वारा निर्दिष्ट प्राधिकरण प्रतिबंध निर्धारित कर सकता है, जिसे सीएए के तहत सर्टिफिकेट के रजिस्ट्रेशन की अनुमति है।

इसमें कहा गया, "धारा 5 में निर्दिष्ट शर्तों को पूरा करना या तीसरी अनुसूची के प्रावधानों के तहत नैचुराइलेजेशन की योग्यता के अधीन, एक व्यक्ति को रजिस्ट्रेशन का प्रमाणपत्र दिया जाता है और उसे भारत में प्रवेश करने के दिन से देश का नागरिक माना जाएगा।"

धारा 6बी के तीसरे ब्योरे में कहा गया, "नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के प्रारंभ होने की तारीख से इस धारा के तहत किसी व्यक्ति के खिलाफ अवैध प्रवास या नागरिकता के संबंध में लंबित कोई कार्यवाही नागरिकता प्रदान किए जाने के बाद रोक दी जाएगी।"

आईएएनएस
नई दिल्ली


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