न्यायालय ने अयोध्या फैसले पर पुनर्विचार याचिकायें खारिज कीं

Last Updated 12 Dec 2019 05:52:08 PM IST

उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में अपने नौ नवंबर के फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर सभी याचिकायें बृहस्पतिवार को खारिज कर दीं।


उच्चतम न्यायालय

न्यायालय ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि ‘राम लला’ को सौंपते हुये यहां राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।      

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने चैंबर में इन याचिकाओं पर विचार किया और इनमें कोई मेरिट नहीं पाने पर इन्हें खारिज कर दिया।      

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना खामिल थे।       

संविधान पीठ के समक्ष चैंबर में सिर्फ उन पुनर्विचार याचिकाओं पर गौर किया गया जो इस विवाद से संबंधित चार मुकदमों में पक्षकार थे। न्यायालय में दायर 18 पुनर्विचार याचिकाओं में से नौ याचिकायें मूल पक्षकारों ने दायर की थीं जबकि शेष याचिकायें ‘तीसरे पक्ष’ ने दायर की थीं।      

संविधान पीठ ने उन याचिकाओं पर विचार करने से इंकार कर दिया जो मूल वाद में पक्षकार नहीं थे।      

संविधान पीठ द्वारा इन पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार से इंकार किये जाने की वजह से इन याचिकाओं पर खुले न्यायालय में सुनवाई का अनुरोध भी खारिज हो गया।       

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति के फैसले में अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ भूमि की डिक्री राम लला के पक्ष में देने के साथ केन्द्र सरकार को निर्देश दिया था कि उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिये मुख्य स्थान पर पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का भी निर्देश दिया था। संविधान पीठ ने केन्द्र को यह निर्देश भी दिया था कि मंदिर निर्माण के लिये तीन महीने के भीतर एक न्यास का गठन किया जाये।      

शीर्ष अदालत के इस फैसले के खिलाफ सबसे पहले दो दिसंबर को पहली पुनर्विचार याचिका मूल वादी एम सिद्दिक के कानूनी वारिस मौलाना सैयद अशहद रशिदी ने दायर की थी।     

इसके बाद, छह दिसंबर को मौलाना मुफ्ती हसबुल्ला, मोहम्मद उमर, मौलाना महफूजुर रहमान, हाजी महबूब और मिसबाहुद्दीन ने दायर कीं। इन सभी पुनर्विचार याचिकाओं को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन प्राप्त था।      

मौलाना सैयद अशहद रशिदी ने 14 बिन्दुओं के आधार पर इस फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया था और कहा था कि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का निर्देश देकर ही इस मामले में ‘पूर्ण न्याय’ हो सकता है। उन्होंने नौ नवंबर के फैसले के उस अंश पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया था जिसमें केन्द्र को तीन महीने के भीतर मंदिर निर्माण के लिये एक न्यास गठित करने का निर्देश दिया गया था।       

इसके बाद नौ दिसंबर को दो पुनर्विचार याचिकायें और दायर की गयी थीं। इनमें से एक याचिका अखिल भारत हिन्दू महासभा की थी जबकि दूसरी याचिका 40 से अधिक लोगों ने संयुक्त रूप से दायर की। संयुक्त याचिका दायर करने वालों में इतिहासकार इरफान हबीब, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिक विश्लेषक प्रभात पटनायक, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर और जॉन दयाल शामिल हैं।       

अखिल भारत हिन्दू महासभा ने न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करके मस्जिद निर्माण के लिये पांच एकड़ भूमि उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड को आबंटित करने के निर्देश पर सवाल उठाये थे। महासभा ने फैसले से उस अंश को हटाने का अनुरोध किया था जिसमें विवादित ढांचे को मस्जिद घोषित किया गया था।      



विदित हो कि 14 मार्च, 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने स्पष्ट कर दिया था कि सिर्फ मूल मुकदमे के पक्षकारों को ही मामले में अपनी दलीलें पेश करने की इजाजत होगी। पीठ ने इस मामले में कुछ कार्यकर्ताओं को हस्तक्षेप करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था।

भाषा
नयी दिल्ली


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