नागरिकता संशोधन बिल पर राज्यसभा में संग्राम, जानें किसने क्या कहा...

Last Updated 11 Dec 2019 12:14:40 PM IST

गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को नागरिकता संशोधन विधेयक चर्चा के लिए राज्यसभा में पेश करते हुए कहा कि भारत के मुसलमान देश के नागरिक थे, हैं और बने रहेंगे।


राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह

चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने कहा कि विपक्ष को राजनीतिक हितों के बजाय राष्ट्र के हित साधने की नसीहत दी। नड्डा ने कहा कि यह विधेयक बेहद परेशानियों में जीवन जी रहे लाखों लोगों को सम्मानपूर्वक जीवन यापन करने का अधिकार प्रदान करेगा।        

नड्डा ने राज्यसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 18 दिसंबर 2003 में दिये गये एक बयान का हवाला दिया। उस समय सिंह ने तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को सलाह देते हुए कहा था कि ऐसे प्रताड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देने के मामले में सरकार को अपने ‘‘रवैये को उदार बनाना चाहिए और नागरिकता कानून में बदलाव करने चाहिए। नड्डा ने दावा किया कि मनमोहनंिसह की बात को पूरा करते हुए हमारी सरकार इस विधेयक का लेकर आयी है।         

भाजपा नेता ने कहा कि पूर्वोत्तर में यह भ्रम फैलाया गया है कि इस क्षेत्र की सांस्कृति पहचान खत्म हो जाएगी। वहां लोगों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह इस बात का पहले ही स्पष्ट आासन दे चुके हैं कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद भी ‘इनर परमिट’ व्यवस्था जारी रहेगी। पूर्वोत्तर की सांस्कृतिक पहचान बरकार रहेगी। उनके अस्तित्व को कोई खतरा नहीं हुआ है।        

नड्डा ने कहा कि यह सच्चाई भले ही जितनी कड़वी हो पर सच यही है कि देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है। विभाजन के समय जितना नरसंहार हुआ और जितनी बड़ी संख्या में लोग अपना घर छोड़कर एक तरफ से दूसरी तरफ गये, इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ।  उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह स्थिति को समझना नही चाहती है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार को किसी भी तरह प्रभावित नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों को इंदौर, कच्छ या पश्चिम बंगाल में ऐसे शरणार्थियों के हालात जाकर देखना चाहिए। यदि ऐसे लोगों के हालात देख लिये जाए तो व्यक्ति तुरंत इस विधेयक पर मुहर लगा देगा। इससे पूर्व गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक चर्चा एवं पारित करने के लिए पेश करते हुए कहा कि भारत के मुसलमान भारतीय नागरिक थे, हैं और बने रहेंगे।        

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान वाले इस विधेयक को पेश करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि इन तीनों देशों में अल्पसंख्यकों के पास समान अधिकार नहीं हैं।  उन्होंने कहा कि इन देशों में अल्पसंख्यकों की आबादी कम से कम 20 फीसदी कम हुई है। इसकी वजह उनका सफाया, भारत प्रवास तथा अन्य हैं।         

शाह ने कहा कि इन प्रवासियों के पास रोजगार और शिक्षा के अधिकार नहीं थे।  शाह ने कहा कि विधेयक में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। इससे पहले कई विपक्षी सदस्यों ने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने का प्रस्ताव पेश किया।

सपा के जावेद अली ने इस विधेयक में 31 दिसंबर 2014 की तय समयावधि को लेकर सवाल उठाया। उन्होंने सरकार से पूछा कि 31 दिसंबर 2014 के बाद ऐसा क्या हो गया कि इन तीनों पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों के साथ धार्मिक प्रताड़ना बंद हो गयी। उन्होंने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि इस समय सीमा के लिए उसे ऐसा क्या ‘‘इलहाम’’ हुआ है?

उन्होंने सुझाव दिया कि इस विधेयक में तीन देशों के बजाय पड़ोसी देश और धार्मिक अल्पसंख्यक लिखना चाहिए, इससे सारा विवाद खत्म हो जाएगा। उन्होंने आरएसएस के दूसरे प्रमुख एम एस गोलवलकर के एक आलेख का हवाला देते हुए कहा कि यह सरकार अल्पसंख्यकों के विरूद्ध एक खास विचारधारा पर चल रही है। जावेद अली ने कहा कि 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना ने एक ख्वाब देखा था कि पाकिस्तान को हिन्दू मुक्त और भारत को मुस्लिम मुक्त किया जाए। सपा सदस्य ने दावा किया मौजूदा सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक और नागरिकता रजिस्टर पंजी लाकर जिन्ना के उस ख्वाब को पूरा कर रही है।

अन्नाद्रमुक के एस आर बालासुब्रमण्यम ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि तमिलनाडु में श्रीलंका से कई हिन्दू, बौद्ध, ईसाई एवं शरणार्थी आये हैं। वे वर्षों से नागरिकता पाने की उम्मीद लगाये हुए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को भी नागरिकता दी जानी चाहिए। अन्नाद्रमुक सदस्य ने कहा कि बांग्लादेश की स्थापना से पहले पूर्वी पाकिस्तान से एक करोड़ शरणार्थी भारत आए थे। इनमें हिन्दू, मुस्लिम सभी थे। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की स्थापना के बाद बहुत सारे शरणार्थी वापस चले गये। उन्होंने अधिकारियों से जानना चाहा कि ऐसे जो लोग देश में अभी तक रह रहे हैं, उनका भविष्य क्या होगा?

जद (यू) के रामचंद्र प्रसाद सिंह ने भी विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह सीधा विधेयक है लेकिन बात कुछ और ही हो रही है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेदों की बात हो रही है लेकिन वह भारतीय नागरिकों के लिए है। लेकिन यहां तो बात लोगों को नागरिकता देने की ही हो रही है।

सिंह ने कहा कि इस विधेयक के बहाने लोगों के मन में भय पैदा किया जा रहा है। उन्होंने अपने संबोधन में तृणमूल नेता ब्रायन पर तीखा हमला बोला और कहा कि विगत में जब हाजीपुर में रेलवे जोन बन रहा था, उस समय तृणमूल कांग्रेस नेता ने उसका भारी विरोध किया था। सिंह ने बिहार में नीतीश कुमार नीत सरकार द्वारा विभिन्न समुदायों के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों को डराने का प्रयास बंद होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह खुद धर्म के नाम पर अन्याय नहीं होने देंगे।

तृणमूल कांग्रेस के सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने नागरिकता संशोधन विधेयक का भारी विरोध करते हुए कहा कि यह भारत और बंगाल विरोधी है।  उन्होंने कहा कि बंगालियों को राष्ट्रभक्ति सिखाने की जरूरत नहीं है और अंडमान की जेलों में बंद कैदियों में 70 प्रतिशत बंगाली थे।          

डेरेक ने बंगाल के कई स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र करते हुए कहा कि अंग्रेज भी भारतीय लोगों की मनोस्थिति को नहीं तोड़ पाए। उन्होंने कहा कि आज कुछ लोग बंगाल के हितैषी बन रहे हैं। उन्होंने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि इसके खिलाफ आंदोलन किया जाएगा और यह मामला उच्चतम न्यायालय में भी जाएगा।        

तृणमूल सदस्य ने आरोप लगाया कि यह सरकार ‘‘‘नाजियों’’ की तरह कदम उठा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार देश के नागरिकों को आासन देने के लिहाज से काफी अच्छी है लेकिन अपने वादों को तोड़ने के लिहाज से ‘‘और भी ज्यादा अच्छी है। ’’  उन्होंने जर्मनी के यातना केंद्रों की तुलना हिरासत शिविरों से की और एनआरसी का संदर्भ देते हुए कहा कि शिविरों में बंद 60 प्रतिशत लोग बांग्लाभाषी हिन्दू हैं।        

डेरेक ने दावा किया कि पूर्वी पाकिस्तान में 1970 के दशक में धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि भाषा के आधार पर उत्पीड़न किया गया था।    उन्होंने कहा कि वहां से आए कई लोगों के दस्तावेज अब नहीं हैं, ऐसे में वे कैसे अपने दस्तावेज दिखा सकते हैं।

नागरिकता संशोधन विधेयक पर चर्चा में हिस्सा ले रहे टीआरएस सदस्य के केशव राव ने कहा ‘‘गृह मंत्री ने कहा कि उन्हें शासन के लिए चुना गया है और दोबारा जनादेश मिला है। यह ठीक है। लेकिन वह संविधान को तोड़ नहीं सकते। ’’ उन्होंने कहा ‘‘आप 40 फीसदी की बात करते हैं लेकिन बात तो 100 फीसदी की होनी चाहिए। हमारे यहां वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा रही है, यह हमें नहीं भूलना चाहिए।’’        

विधेयक को न्याय से परे बताते हुए केशव राव ने कहा ‘‘गृह मंत्री ने धर्म के आधार पर देश के विभाजन की बात कही है। मैं ऐसा नहीं मानता। हम धर्म की बात क्यों करते हैं? धर्म निरपेक्षता हमारे देश की मूल धारणा रही है।’’ उन्होंने कहा कि यह विधेयक मुस्लिम विरोधी है जिसकी वजह से वह इसका विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा ‘‘इसे एनआरसी से अलग नहीं किया जा सकता, यह एनआरसी की छाया है। विधेयक के कानून बनने के बाद किसी को नागरिकता मिलेगी, किसी को नहीं। नागरिकता के लिए अलग अलग आधार बनाए जा रहे हैं जो नहीं होना चाहिए।’’


माकपा सदस्य टी के रंगराजन ने विधेयक को संविधान विरोधी बताते हुए कहा ‘‘यह विधेयक भारत के बहुलतावाद पर चोट करता है। इसके जरिये मुसलमानों को दोयम दज्रे का नागरिक बनाया जा रहा है। इसके लिए जो औचित्य दिया जा रहा है वह सही नहीं है।’’ उन्होंने सवाल किया ‘‘क्या मुस्लिम धार्मिक आधार पर प्रताड़ित नहीं हो सकते? पाकिस्तान में अहमदिया, म्यामां में रोहिंग्या और श्रीलंका में तमिल लोग धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हो रहे हैं।’’

रंगराजन ने हर किसी के लिए नागरिकता की मांग करते हुए कहा ‘‘धर्म कभी भी, किसी भी राष्ट्र का आधार नहीं हो सकता।’’   उन्होंने कहा ‘‘क्या सरकार ने इस बात पर विचार किया है कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) को मोदी सरकार का ‘‘हिन्दुत्व का एजेंडा आगे बढाने’’ वाला करार कदम देते हुए इस बात पर भरोसा जताया कि यह प्रस्तावित कानून न्यायालय के कानूनी परीक्षण में नहीं टिक पाएगा।

चिदंबरम ने विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि सरकार इस विधेयक के जरिये संसद से एक ‘‘असंवैधानिक काम’’ पर समर्थन लेना चाहती है। उन्होंने कहा कि संसद में निर्वाचित होकर आये सदस्यों का यह प्राथमिक दायित्व है कि वे कानून बनाते समय यह देखें कि यह संविधान के अनुरूप है कि नहीं।  उन्होंने कहा कि इस विधेयक के मामले में लोकसभा के बाद यदि राज्यसभा इसे पारित कर देती है तो वह अपने दायित्व को संविधान के तीन अन्य अंगों में से एक (न्यायालय) के लिए ‘‘त्याग’’ रही है। उन्होंने कहा, ‘‘आप इस मुद्दे को न्यायाधीशों की गोद (विचारार्थ) में डाल रहे हैं।’’        

पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि यह मामला यही नहीं रूकेगा और यह न्यायाधीशों के पास जाएगा। उन्होंने कहा कि निर्वाचित नहीं होने वाले न्यायाधीश और निर्वाचित नहीं होने वाले वकील अंतत: इसके बारे में निर्धारण करेंगे। ‘‘अत: यह संसद का अपमान होगा।’’    

मनोनीत सदस्य स्वप्न दास गुप्ता ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि शरणार्थियों और प्रवासियों की श्रेणियां पूरी तरह अलग अलग और स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं। उन्होंने कहा कि पूर्वी बंगाल से आए बंगालियों को विलुप्त किया जा रहा है और उनकी पहचान को स्वीकार करना चाहिए।

 

भाषा
नई दिल्ली


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