तीन तलाक को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब
उच्चतम न्यायालय ने तीन बार तलाक कह कर संबंध विच्छेद करने को दंडनीय अपराध बनाने के कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की याचिका पर केंद्र से बुधवार को जवाब मांगा।
उच्चतम न्यायालय |
न्यायमूर्ति एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने नोटिस जारी करते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की याचिका मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दी।
यह अधिनियम तलाक ए बिद्दत और मुस्लिम पति द्वारा दिए गए किसी भी फौरी तलाक को अमान्य करार देता है और इसे गैर-कानूनी बनाता है। पीठ ने सीरथ उन नबी अकादमी की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस बात पर नाराजगी जताई कि विभिन्न लोगों और संगठनों ने बड़ी संख्या में रिट याचिकाएं दायर कर रखी हैं। पीठ ने कहा कि एक बार में तीन तलाक के मुद्दे पर 20 से अधिक याचिकाएं लंबित हैं।
पीठ ने अकादमी के वकील से जानना चाहा, ‘‘एक ही मुद्दे पर कितनी याचिकाएं दायर की जाएंगी। प्रत्येक मामले में अधिसूचना आती है और आप सभी जनहित याचिका लेकर आ जाते हैं। इस समय तीन तलाक के मसले पर 20 से अधिक याचिकाएं लंबित हैं। क्या हमें 100 याचिकाओं को संलग्न कर देना चाहिए और इन पर सौ साल तक सुनवाई करनी चाहिए? हम एक ही मसले पर 100 याचिकाओं को नहीं सुन सकते।’’ एआईएमपीएलबी और कमाल फारुकी की याचिका में कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
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