क्या 'सबका साथ', 'सबका विकास' छुआछूत को खत्म करेगा?

Last Updated 30 Sep 2019 12:25:29 AM IST

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का 'सबका साथ, सबका विकास' एजेंडा समाज से छुआछूत जैसे भेदभाव को खत्म करने के महात्मा गांधी के सपने को पूरा कर पाएगा।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

जाति और धर्म के नाम पर समाज में फैले छुआछूत के खिलाफ संघर्ष करने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर यह सवाल पूछा जाना लाजिमी है और शायद पूछा जाए भी। दलितों को सदियों से इस तरह के भेदभाव से गुजरना पड़ता है।

गांधी जी छुआछूत को मानवता और हिंदुत्व पर धब्बा बताते थे। उनका मानना था कि छुआछूत पाप है और एक बड़ा अपराध भी है।

भारत के प्राचीन जाति प्रथा तंत्र ने हिंदुओं को चार मुख्य श्रेणियों में विभाजित करने के साथ 3000 जातियां और 25,000 उपजातियों में बांटा था, जिनमें दलित सबसे नीचे थे, जिन्हें आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जाति कहा जाता है।

जाति प्रथा को परिभाषित करने और उनकी पहचान को स्वीकार्य करने के लिए दलित आए दिन सड़कों पर अच्छी चिकित्सा, उच्च शिक्षा, उद्यम में बेहतरी और राजनीतिक क्षेत्र में जागरूकता के लिए मांग करते आए हैं।

वर्तमान में जब दो अक्टूबर को मोदी सरकार गांधी जी की 150वीं जयंती बड़े पैमाने पर मनाने की तैयारी में है, तो ऐसे में यह देखना होगा कि उनका 'सबका साथ, सबका विकास' एजेंडा इस छुआछूत की समस्या को कम करता है या नहीं।



मोदी के अनुसार 'सबका साथ, सबका विकास' का उनका एजेंडा समाज के हर तबके लिए बिना किसी भेदभाव बेहतरी का काम और विकास करने से संबंधित है।

मोदी साल 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही यह नारा देते आ रहे हैं। वहीं इस साल सत्ता में वापसी करने के बाद उन्होंने इसके साथ 'सबका विश्वास' भी जोड़ लिया है।

आईएएनएस
नई दिल्ली


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