रामलला विराजमान की दलील, रामजन्म स्थान हिंदुओं की अटूट आस्था का सवाल

Last Updated 08 Aug 2019 02:32:39 AM IST

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की आज दूसरे दिन सुनवाई के दौरान रामलला विराजमान की ओर से दलील दी गई कि भगवान राम का जन्म स्थान एक आस्था की बात है।


उच्चतम न्यायालय

पौराणिक ग्रंथों में अयोध्या में राम के जन्म की बात कही गई है। हिंदुओं की आस्था के कारण यह जगह पूज्य है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, धनंजय चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ के समक्ष राम लला विराजमान की ओर से पूर्व अटार्नी जनरल के परासरन ने कहा कि रामजन्मभूमि खुद ही मूर्ति का आदर्श बन चुकी है और यह हिन्दुओं की उपासना का प्रयोजन है। परासरन ने संविधान पीठ से सवाल किया कि इतनी सदियों बाद भगवान राम के जन्म स्थल का सबूत कैसे पेश किया जा सकता है।  वकील परासरन ने अदालत से कहा कि वाल्मीकि रामायण में तीन स्थानों पर इस बात का उल्लेख है कि अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था। सदियों के बाद हम यह कैसे साबित कर सकते हैं कि इसी स्थान पर भगवान राम का जन्म हुआ था। ब्रिटिश काल में भी ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब इस स्थान का बंटवारा किया गया तो मस्जिद की जगह को राम जन्म स्थान माना। रामजन्म भूमि स्थान हिंदुओं की आस्था से जुड़ा है।



क्या ऐसे विवाद दुनिया में पहले कभी हुए
अयोध्या विवाद की सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने रामलला विराजमान की ओर से पेश पूर्व अटार्नी जनरल के परासरन से पूछा कि क्या इस तरह के किसी धार्मिक व्यक्तित्व के जन्म के बारे में पहले कभी किसी अदालत में इस तरह का सवाल उठा था। क्या बेथलेहम में ईसा मसीह के जन्म जैसा विषय दुनिया की किसी अदालत में उठा और उस पर विचार किया गया? इस पर परासरन ने कहा कि वह इसका अध्ययन करके अदालत को जानकारी देंगे। परासरन ने कहा कि 22/23 दिसंबर, 1949 की रात को भगवान की मूर्ति रखी गई। यदि यह गलत था तो रिसीवर ने इसे जारी कैसे रखा।

सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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