राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक वापस लेने की विपक्ष की मांग
लोकसभा में सम्पूर्ण विपक्ष ने भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) का स्थान लेने वाले राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक, 2019 को गरीब-विरोधी तथा सामाजिक न्याय और सहकारी संघवाद के खिलाफ करार देते हुए इसे वापस लेने की मांग की है।
![]() राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक वापस लेने की मांग |
विपक्ष ने सदन में सोमवार को विधेयक को चिकित्सकों के अधिकारों को कम करने वाला बताया तथा कहा कि सरकार ने एमसीआई सहित विभिन्न संवैधानिक संस्थानों को कमजोर किया है।
कांग्रेस के विसेंट पाला ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि सरकार ने एक तरफ जहां सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून जैसे कानूनों को कमजोर किया है, वहीं एमसीआई और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) जैसे संवैधानिक संस्थानों को भी कमजोर करने का प्रयास भी किया है।
श्री पाला ने प्रस्तावित कानून के तहत स्तरीय बोर्ड के प्रावधानों पर भी सवालिया निशान खड़े करते हुए इनमें चिकित्सकों की भूमिका नगण्य किये जाने की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि विधेयक के कई प्रावधान केंद्र और राज्यों के बीच सहकारी संघवाद की परम्परा का खुला उल्लंघन है।
भारतीय जनता पार्टी के डॉ. महेश शर्मा ने कहा कि 1956 में स्थापित एमसीआई अपने उद्देश्यों की पूर्ति में असफल रही है। एमसीआई भ्रष्टाचार का गढ़ बना हुआ है। एमसीआई की गलत नीतियों और मिलीभगत की वजह से मेडिकल कॉलेजों में सीटें लाखों में बिकती हैं।
डॉ. शर्मा ने 2009 की यशपाल कमेटी की अनुशंसाओं का हवाला देते हुए कहा कि विधेयक में उन अनुशंसाओं को समाहित किया गया है। सरकार ने विधेयक में संशोधन के जरिये चिकित्सकों, मेडिकल कॉलेजों और प्रस्तावित आयोग की जिम्मेदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया है, ताकि देश में कुशल चिकित्सकों की नयी जमात भी सामने आये और इनकी कमी भी पूरी हो सके।
उन्होंने आयोग के कुल 25 सदस्यों में 21 चिकित्सा क्षेत्र से मनोनीत किये जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि इस प्रयास से चिकित्सकों के हित प्रभावित नहीं होंगे। उन्होंने देश में चिकित्सकों पर हो रहे हमलों की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि चिकित्सक भी आम इंसान ही हैं, भगवान नहीं। चिकित्सकों को केवल जीवनदाता समझा जाये, न कि लूटेरा।
द्रविड़ मुने कषगम के ए. राजा ने विधेयक को गरीब-विरोधी, लोकतंत्र-विरोधी तथा सामाजिक न्याय के खिलाफ करार देते हुए कहा कि विधेयक मे स्तरीय बोर्ड के प्रावधान मेडिकल के क्षेत्र का क्रूर मजाक है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून सरकार के सबसे खराब निर्णयों में शामिल होगा।
तृणमूल कांग्रेस की डॉ. काकोली घोष दस्तीकार ने भी विधेयक की आलोचना की। उन्होंने कहा कि पांच साल की मेडिकल शिक्षा पाकर और एक साल का इण्टर्नशिप करने के बाद अंतिम प्रमाण-पा आयोग की ओर से दिये जाने का प्रावधान बहुत ही गलत है।
उन्होंने कहा कि पांच साल की पढ़ाई और एक साल की इण्टर्नशिप के बाद यदि आयोग की परीक्षा में उम्मीदवार असफल रहता है तो उसकी पांच साल की परीक्षा और एक साल की इण्टर्नशिप बेकार हो जायेगी तथा वह उम्मीदवार केवल बारहवीं उत्तीर्ण के समान रह जायेगा। यह बहुत ही निरंकुश प्रावधान है।
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