लोकसभा में तीन तलाक बिल तीसरी बार पास

Last Updated 26 Jul 2019 06:01:07 AM IST

मुस्लिम महिलाओं के सम्मान व तीन तलाक से जुड़ा बहुचर्चित मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 बृहस्पतिवार को लोकसभा में मत विभाजन से पारित हो गया।


लोकसभा में बोलते हुए श्री रविशंकर प्रसाद।

विधेयक के पक्ष में 302 तथा विपक्ष में 82 मत पड़े। इस तरह यह विधेयक तीसरी बार लोकसभा से पारित हुआ है। विधेयक पर हुई चर्चा में विपक्षी दलों ने जहां विधेयक का कड़ा विरोध किया तो वहीं केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधेयक के पक्ष में कई तर्क पेश करते हुए कहा कि पैगम्बर मोहम्मद ने भी तीन तलाक को गलत बताया था। जदयू, कांग्रेस और टीएमसी के सांसदों ने लोस से वाकआउट किया।
प्रसाद ने लोकसभा में ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019’ पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इस विधेयक को सियासी चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। यह इंसाफ से जुड़ा विषय है। इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है। ‘यह इंसानियत, इंसाफ और मानवता से जुड़ा विषय है।’ उन्होंने एक पुस्तक के कुछ अंशों को उद्धृत करते हुए कहा कि पैगम्बर मोहम्मद ने तीन तलाक पर इतनी बंदिश रखी। उन्होंने कहा कि जब यह गलत है, तब इसे कैसे जायज ठहराया जा सकता है।   प्रसाद ने कहा कि 20 इस्लामी देशों ने इस प्रथा को नियंत्रित किया है, इसे निषेध किया गया है। इनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, जार्डन, सीरिया, यमन जैसे देश शामिल हैं।

हिन्दुस्तान एक धर्मनिरपेक्ष देश है तो वह ऐसा क्यों नहीं कर सकता । उन्होंने यह भी कहा कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में इसे गलत बताया लेकिन इस दिशा में कुछ नहीं किया। उन्होंने जोर दिया कि क्या महिलाओं के खिलाफ नाइंसाफी किसी आस्था का सवाल हो सकती है ? कोई धर्म महिलाओं के खिलाफ नाइंसाफी की अनुमति नहीं दे सकता । प्रसाद ने कहा कि अगर कोई अदालत में जाकर तलाक लेता है तो यह आपराधिक मामला नहीं होता है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जब हिन्दुओं से जुड़े कानून में दंडात्मक प्रावधान हुए तब तो किसी ने आवाज नहीं उठाई। इस बारे में मुख्य पक्षकार मुस्लिम समाज की बेटियां हैं। हम इन्हीं बेटियों की बात सुनेंगे।

क्या है विधेयक 

इस विधेयक में तीन तलाक की प्रथा को शून्य और अवैध घोषित करने का और ऐसे मामलों में तीन वर्ष तक के कारावास से और जुर्माने से दंडनीय अपराध तथा प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय अपराध घोषित करने का प्रस्ताव है। यह भी प्रस्ताव किया गया था कि विवाहित महिला और आश्रित बालकों को निर्वाह भत्ता प्रदान करने और साथ ही अवयस्क संतानों की अभिरक्षा के लिए भी उपबंध किया जाए। विधेयक अपराध को सं™ोय और गैरजमानती बनाने का उपबंध भी करता था । इसमें मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत देने की बात कही गई है ।

विधेयक के पक्ष में पड़े 303 मत
लोस में एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक को पारित किये जाने के लिये आगे बढ़ाने का विरोध किया और मत विभाजन की मांग की। सदन ने इसे 82 के मुकाबले 303 मतों से अस्वीकार कर दिया। इसके बाद कुछ सदस्यों के संशोधनों को हां और ‘ना’ के माध्यम से अस्वीकार कर दिया गया। सदन ने एनके प्रेमचंद्रन, अधीर रंजन चौधरी, शशि थरूर, प्रो. सौगत राय, पीके कुन्हालीकुट्टी और असदुद्दीन औवैसी द्वारा फरवरी में लाए गए अध्यादेश के खिलाफ सांविधिक संकल्प को भी अस्वीकार कर दिया । इसके बाद सदन ने विधेयक को मंजूरी दे दी। राजग के सहयोगी जदयू ने इस विधेयक का विरोध करते हुए सदन से वाकआउट किया था। तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, द्रमुक सदस्यों ने भी सदन से वाकआउट किया।

सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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