जब खुद नहीं, तो दूसरों को कैसे लड़ा सकते हैं चुनाव : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराया गया व्यक्ति सांसद या विधायक नहीं हो सकता तो वह राजनीतिक दल का पदाधिकारी कैसे हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट |
राजनीति के अपराधीकरण से बचने के लिए राजनीतिक दल को भी शुचिता दिखानी होगी. इस मामले में आने वाले समय में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और इनेलो प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला पर गाज गिर सकती है.
सुप्रीम कोर्ट एक जनिहत याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें दोषियों पर राजनीतिक दल बनाने तथा उसमें पदाधिकारी बनने से तब तक रोक लगाने का अनुरोध किया गया था जब तक वे चुनाव संबंधी कानून के तहत अयोग्य हैं.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अजय खानिवलकर और धनंजय चंद्रचूड की बेंच ने कहा कि कोई दोषी व्यक्ति किसी राजनीतिक पार्टी का पदाधिकारी कैसे हो सकता है और वह चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों का चयन कैसे कर सकता है. यह हमारे उस फैसले के खिलाफ जाता है जिसमें कहा गया था कि चुनावों की शुचिता से राजनीति के भ्रष्टाचार को हटाया जाना चाहिए.
अदालत ने कहा कि कानूनी मूल सवाल यह है कि दोषी ठहराए जाने के बाद कोई नेता चुनावी राजनीति से प्रतिबंधित है लेकिन पार्टी का पदाधिकारी होने के नाते वह एजेंटों के जरिए चुनाव लड़ सकता है. अदालत ने सवाल किया कि क्या ऐसा है कि जो आप व्यक्तिगत रूप सें नहीं कर सके, उसे आप अपने एजेंटों के जरिए सामूहिक रूप से कर सकते हैं.
अदालत ने कहा कि सवाल यह है कि क्या ऐसे लोग कोई राजनीतिक दल बनाकर अन्य के जरिए चुनाव लड़ सकते हैं. केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि वह याचिका का जवाब दायर करेंगी और उन्होंने इसके लिए दो हफ्ते का समय मांगा जिसे अनुमति दे दी गई.
अदालत भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनिहत याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें दोषियों के राजनीतिक दल बनाने और अयोग्यता की अवधि के दौरान पदाधिकारी बनने पर रोक का अनुरोध किया गया है.
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