स्वामी ओम पर दस लाख जुर्माना
बिग बॉस में भाग ले चुके स्वामी ओम को सुप्रीम कोर्ट में बेवजह की याचिका दायर करने की भारी कीमत चुकानी पड़ी.
![]() बिग बॉस में भाग ले चुके स्वामी ओम (file photo) |
जस्टिस दीपक मिश्रा को भारत का चीफ जस्टिस नियुक्त करने की प्रक्रिया को गलत बताने वाले स्वामी ओम और उसके साथी मुकेश जैन पर सुप्रीम कोर्ट ने दस-दस लाख रुपए का जुर्माना लगाया. जुर्माने की राशि एक माह के अंदर जमा करनी होगी.
चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर और जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़ की बेंच के समक्ष बृहस्पतिवार को वह नजारा देखने का मिला, जो आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट से नदारद रहता है. तरह-तरह के कारनामों से सुर्खियों में रहने वाले ओमजी के बारे में कोर्ट ने कहा कि वह सिर्फ प्रचार पाने के लिए यहां आए हैं. लेकिन, ओमजी का जवाब सुनकर बेंच भी उस समय दंग रह गई जब उसने कहा कि उसे प्रचार की जरूरत नहीं. उसके 50 करोड़ अनुयायी हैं और बिग बॉस के कारण देश का बच्चा-बच्चा उसे जानता है. बिग बॉस का नाम सुनते ही दोनों जज एकबारगी चौंक गए. फिर उन्होंने कोर्ट मास्टर से पूछा कि यह बिग बॉस क्या बला है. जब टीवी धारावाहिक के बारे में बेंच को बताया गया तो उनकी भी हंसी छूट गई.
सुनवाई के दौरान बनी नाटकीय स्थिति : लगभग डेढ़ घंटे तक चली सुनवाई के दौरान कई बार फिल्मों जैसी नाटकीय स्थिति भी पैदा हो गई. जब चीफ जस्टिस ने ओमजी से पूछा कि आप करते क्या हैं? आपकी आजीविका का साधन क्या है? आपने अपनी याचिका में इसका जिक्र नहीं किया है. जस्टिस दीपक मिश्रा के सीजेआई के रूप में शपथ लेने में सिर्फ एक दिन का कार्यदिवस बाकी है, आपने पहले याचिका दायर क्यों नहीं की? आपने किसी वकील से सलाह-मशविरा किया? जब बेंच ने ओमजी के साथी मुकेश जैन को सामने नहीं पाया तो उसके बारे में पूछा. ओमजी ने कहा कि उसे सुरक्षा अधिकारियों ने अदालत में घुसने नहीं दिया. अदालत ने तुरंत मुकेश जैन को तलब किया. ओमजी ने कहा कि उसने एक वकील से बात की थी, लेकिन वकील ने कहा था कि मुझे अपना वकालत का लाइसेंस रद्द नहीं कराना. उसने यह भी कहा था कि इस तरह का केस डाला तो छह माह की सजा निश्चित है. उसके जवाब से खचाखच भरी अदालत में मौजूद लोग हंसी नहीं रोक पाए. समूची कार्यवाही काफी देर तक हिंदी में चली.
कोई आरोप नहीं लगाया : बेंच जानना चाहती थी कि जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ वह क्या आरोप लगाना चाहता है. ओमजी और मुकेश का सिर्फ यही कहना था कि आरोप कुछ नहीं है. जज तो भगवान का रूप होता है. हमें बस यही कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत वर्तमान सीजेआई ने अपने साथी जजों से मशविरा किए बिना वरिष्ठतम जज का नाम सीजेआई के लिए अनुमोदित किया, जो संविधान का उल्लंघन है. संविधान सीजेआई को अपना उत्तराधिकारी चुनने की अनुमति नहीं देता. बेंच ने पूछा कि क्या इस संबंध में आपने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का अध्ययन किया तो ओमजी ने टका सा जवाब दिया कि अदालत का कोई भी निर्णय संविधान से ऊपर नहीं हो सकता.
एक माह में भरना होगा जुर्माना : मुकेश जैन ने अदालत को बताया कि उसने आईआईटी रुड़की से हिंदी माध्यम में मेट्रोलिजकल इंजीनियरिंग की है और शाहदरा के करावल नगर में उसकी फैक्टरी है. मुकेश ने भी संविधान के अनुरूप जस्टिस मिश्रा की नियुक्ति न होने की दलील दी. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों याचियों की दलीलों को विस्तार से सुनने के बाद उन पर 10-10 लाख रुपए जुर्माना ठोका. जुर्माने की राशि एक माह के अंदर प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करने का निर्देश दिया. यदि एक माह में जुर्माना नहीं भरा गया तो केस फिर से सूचीबद्ध किया जाएगा, ताकि जुर्माना वसूलने के लिए उचित निर्देश दिए जा सके.
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