हामिद को मिली ‘आजादी’ तो कर गए अपना काम
अपने कार्यकाल के अंतिम दिन बृहस्पतिवार को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी ने बड़े भावुक अंदाज में सदन को अलविदा कहा.
![]() राज्यसभा के सभापति के रूप में हामिद अंसारी का अंतिम दिन संबोधन करते हुए. |
अपने संबोधन की शुरुआत उन्होंने शायराना अंदाज में करते हुए कहा, ‘आओ चलें कि अब अफसाना खत्म होता है, आशिकी भी खत्म होती है.’ इसी के साथ उन्होंने सरकार को भी नसीहत देते हुए कहा कि सरकार की नीतियों की स्वतंत्र और बेबाक आलोचना को अनुमति नहीं देने पर लोकतांत्रिक व्यवस्था पतन की ओर बढ़ते हुए निरंकुश होने लगती है. अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर भी इशारों इशारों में सरकार की नीतियों पर उन्होंने सवाल उठाए.
अंसारी ने पूर्व उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को उद्धृत करते हुए कहा कि लोकतंत्र तब पतनोन्मुखी होकर निरंकुश होने लगता है जब विपक्षी दलों को सरकार की नीतियों की स्वतंत्र और बेबाक आलोचना करने की इजाजत नहीं दी जाए. हालांकि उन्होंने आगाह किया कि आलोचना करने के सदस्यों के अधिकार को संसद की कार्यवाही में मनमाफिक बाधा पहुंचाने के अधिकार तक नहीं ले जाने दिया जा सकता है इसलिए सदन में सभी के अपने पास अगर अधिकार हैं तो दायित्व भी हैं.
अंसारी ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में अल्पसंख्यक समूहों के संरक्षण की विशिष्टता भी निहित है लेकिन साथ ही इन समूहों की अपनी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं. साथ ही कहा, ‘राज्यसभा लोकतंत्र का पवित्र स्तंभ है जिसमें बहस और चर्चाएं बाधक नहीं, बल्कि ये सूझबूझ भरे फैसलों के लिए अत्यावश्यक कार्यवाही हैं. राज्यसभा सभापति के रूप में अपने भाषण के अंत में अंसारी ने जय ¨हद कहा और अपने स्थान पर खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते की. पूरा सदन उनके सम्मान में खड़ा हो गया.
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा अंसारी ने बुधवार को राज्यसभा टीवी को दिए साक्षात्कार में भी उठाया था. ऐसा कर जहां इस मुद्दे पर अपना विरोध प्रकट कराया तो वहीं उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुए उनके इस वयान से सरकार भी कटघरे में खड़ी हुई.
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से हामिद अंसारी ने कई मौकों पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर न केवल अपनी चिंता जाहिर की बल्कि सरकार को नसीहत भी दी कि स्वस्थ लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी सरकार की है. दो वर्ष पूर्व पुणो में एक कार्यक्रम में उन्होंने साफ कहा था कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा नहीं हो रही. पिछले वर्ष भी एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि आज हालात ऐसे हैं कि सवाल उठाना भी असहिष्णुता है.
मोदी ने कुछ ऐसे दी विदाई
‘आपका अपना जीवन भी डिप्लोमैट का रहा. एक करियर डिप्लोमैट का क्या काम होता है यह पीएम बनने के बाद मुझे समझ में आया..क्योंकि उनके हंसने का क्या अर्थ होता है..हाथ मिलाने के तरीके का क्या अर्थ होता है. यह तुरंत समझ नहीं आता क्योंकि उनकी ट्रेनिंग वही होती है..लेकिन इस कौशल का इस्तेमाल 10 सालों में जरूर हुआ होगा ..सबको संभालने में उस कौशल ने किस प्रकार से इस सदन को लाभ पहुंचाया होगा.’
अब मुक्ति का आनंद भी रहेगा
10 साल ..पूरी तरह एक-एक पल संविधान-संविधान-संविधान के दायरे में चलाना..और आपने उसे बाखूबी निभाने का भरपूर प्रयास किया..हो सकता है कुछ छटपटाहट रही होगी आपके अंदर भी लेकिन आज के बाद शायद आपको वैसा संकट नहीं रहेगा..मुक्ति का आनंद भी रहेगा..और अपने मूलभूत जो सोच रही होगी उसके अनुसार कार्य करने, सोचने का और बात बताने का अवसर भी मिलेगा.’
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