कारपोरेट दायरों से बाहर आने लगा यौन उत्पीड़न का आंकड़ा

Last Updated 06 Aug 2017 08:41:29 PM IST

किसी भी संस्थान में काम करने के लिए उसकी प्रतिष्ठा के साथ-साथ यह जानना भी आवश्यक होता है कि वहां कार्यस्थल का माहौल कैसा और कितना सुरक्षित है.


(फाइल फोटो)

बात जब महिला कर्मियों की हो तो यह और भी आवश्यक हो जाता है कि क्या उस संस्थान में लिंग भेद या यौन उत्पीड़न के मामलों की संख्या क्या है. आम तौर पर कारपोरेट संस्थान इस तरह के मामलों को दबा लेते हैं लेकिन सरकार और नियामकों से कई दफा निर्देश के बाद अब कई शीर्ष कारपोरेट कंपनियों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के आंकड़े बाहर आना शुर हुए हैं.
    
उल्लेखनीय है कि इन कंपनियों ने अपने यहां कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के कुछ आंकड़ों को सार्वजनिक करना शुरू कर दिया है और परेशान करने वाले इन मामलों की संख्या बतानी शुर की है. ठीक इसी समय इनमें से कई कंपनियों का कहना है कि उन्होंने इस तरह की अधिकतर शिकायतों का निपटारा प्रभावी तरीके से किया है जिसमें आवश्यकतानुसार सुलह या  अनुशासनात्मक कार्वाई दोनों तरह की कार्वाइयां की गई हैं. हालांकि पिछले वित्त वर्ष की समाप्ति तक इस तरह के लंबित मामलों की संख्या कम या ना के बराबर रही है.
     
भारतीय प्रतिभूति एवं विनियामक बोर्ड (सेबी) के नियमानुसार सभी सूचीबद्ध कंपनियों को उनके यहां दर्ज की गई यौन उत्पीड़न शिकायतों की कुल संख्या और वित्त वर्ष के अंत तक ऐसे लंबित मामलों की संख्या बताने की जरूरत होती है. उन्हें यह जानकारी अपने वाषर्कि परिणामों में देनी होती है.
     
इसके अलावा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भी कंपनियों से इस तरह के मामलों की जानकारी महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोक, निषेध और निपटान) अधिनियम-2013 देने के लिए कहता है.
    
मंत्रालय ने हाल ही में केंद्र सरकार की महिला कर्मियों के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल शुर किया है जहां वह कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करा सकती हैं. इसकी शुरआत के मौके पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा था कि इसके दायरे में निजी क्षेत्र को भी लाया जाएगा.


      
इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाए जाने की उम्मीद है लेकिन भारत की प्रमुख सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा शेयर बाजार को दी गई वाषर्कि रपटों की जानकारी का आकलन करने पर पता चलता है कि ऐसे मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है.
     
ऐसे मामलों की सबसे ज्यादा संख्या अन्य क्षेत्रों के मुकाबले सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों में देखने को मिलती है.
     
प्रमुख आईटी कंपनी इंफोसिस का कहना है कि उसने अपने यहां यौन-उत्पीड़न रोधी पहल रूपरेखा को संस्थागत स्वरूप दिया है जिसके माध्यम से वह ऐसी शिकायतों का निपटारा करती है.

भाषा


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