'श्रम कानून सबसे ज्यादा सरकार ही तोड़ती है'

Last Updated 01 May 2017 06:50:21 AM IST

मजदूर दिवस के मौके पर आरएसएस के मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने कहा कि श्रम कानूनों का उल्लंघन तो सरकार खुद कर रही है.


मजदूर दिवस (फाइल फोटो)

बीएमएस ने सवाल किया कि श्रम कानूनों का मखौल उड़ाने वाली सरकार को कौन सजा देगा ? उसने आगे कहा कि श्रमिकों के लिए किसी नए कानून की जरूरत नहीं है. अगर सरकार मौजूदा श्रम कानूनों का पालन कर ले तो मजदूरों के हित के लिए ये ही काफी हैं.

बीएमएस ही नहीं, अन्य सभी मजदूर संगठनों का भी दर्द ये ही है कि श्रम सुधार के नाम पर पिछली और मौजूदा सरकार ने मजदूरों का सिर्फ शोषण ही किया है. ऐसी ही वजह से नाखुश सेंट्रल ट्रेड यूनियन (जिसमें दस मजदूर संगठन शामिल हैं ) ने सोमवार को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर रखी सरकार की बैठक का बहिष्कार करने का फैसला किया है.

कई सारे विषय हैं, जिनकी वजह से सारे मजदूर संगठन सरकार को श्रमिक विरोधी बताते हैं. इनमें न्यूनतम वेतन 18000 रुपए और न्यूनतम पेंशन 3000 रुपए करना प्रमुख है. इन विषयों पर मौजूदा सरकार के दौर में भी दो हड़तालें हो चुकी हैं.



रोजगार दिलाने में  विफलता और दूसरी तरफ मुनाफे वाले सार्वजनिक उपक्रमों को बेचना -विनिवेश करना और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति (एफडीआई) ऐसे विषय हैं, जिन पर सरकार मजदूर संगठनों से बात करने से कन्नी काटती है. बीएमएस के महासचिव बृजेश उपाध्याय कहते हैं कि श्रम कानूनों पर अकादमिक बहस निर्थक है, क्योंकि श्रम कानूनों का सबसे ज्यादा उल्लंघन तो सरकार ही कर रही है.

उन्होंने कहा कि 1971 में बने ठेका श्रमिक नियमन एवं उन्मूलन कानून का तो सरकार ने मजाक ही बनाकर रख दिया है, जिसके तहत स्थाई प्रवृत्ति के कामों के लिए ठेके पर मजदूर रखने की मनाही है. पर सरकारी क्षेत्र में ही 67% व्यक्ति ठेके पर काम करते हैं.

 

 

अजय तिवारी


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