बांग्लादेश में पाक सेना के किए 'गोलाहाट नरसंहार के पीड़ितों को न्याय का इंतजार

Last Updated 14 Jun 2022 10:52:17 PM IST

बांग्लादेश के सैदपुर में 51 साल पहले पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए 'गोलाहट नरसंहार' में मारे गए लोगों के परिवार के सदस्यों अभी भी न्याय का इंतजार है।


बांग्लादेश में पाक सेना के किए 'गोलाहाट नरसंहार के पीड़ितों को न्याय का इंतजार

बात 13 जून, 1971 की है, जब मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना ने सैदपुर में 480 से अधिक लोगों की हत्या कर दी थी। कुछ पीड़ितों ने गोली मारकर जान लेने की मांग की, लेकिन उन्हें बूट से रौंदा गया। सैनिकों ने उनसे कहा था कि 'पाकिस्तान सरकार अपनी महंगी गोलियां मलौंस (गैर-मुसलमानों के लिए अपमानजनक शब्द) पर बर्बाद नहीं करेगी'।

उस काले दिन को 51 साल हो चुके हैं, लेकिन बाद की सरकारों ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शहीद हुए लोगों की स्मृति को संरक्षित करने के लिए कुछ भी नहीं किया। उनकी स्मृति को याद करते हुए पीड़ित परिवार के सदस्यों ने सोमवार को नरसंहार में बेरहमी से मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी।

13 जून, 1971 को हुए नरसंहार में कितने लोगों की हत्या की गई, इसकी सही संख्या का अभी पता अभी तक नहीं चल पाया है। बचे हुए लोग और पीड़ितों के परिवार के सदस्य अभी भी नरसंहार की मान्यता के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

विनोद कुमार अग्रवाल (72) उस समय युवा थे, जो बाल-बाल बचे थे। नरसंहार में बचे सैदपुर के प्रमुख व्यवसायी अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया कि उन्होंने 13 जून, 1971 को ट्रेन से नीचे कूदकर अपनी जान बचाई थी।



अग्रवाल याद करते हैं, "ट्रेन धीरे-धीरे शहर से बाहर चली गई, लेकिन थोड़ी देर बाद अचानक गोलाहट नामक स्थान पर रुक गई। हमने वहां हमने पाकिस्तानी सैनिकों को कुछ लोगों के साथ ट्रेन में चढ़ते देखा। उन्हें देखते ही मेरा चचेरा भाई ट्रेन से कूद गया, मैंने भी वैसा ही किया। रेल पटरियों के बगल में पाकिस्तान समर्थक प्रवासी और सैनिक खड़े थे। उनके पास राइफलें थीं और स्थानीय लोग नुकीले रामदा (दरांती) लिए हुए थे।"

उन्होंने कहा, "इस समय हम सैदपुर में रहने वाले चार से पांच मारवाड़ी परिवार हैं, जबकि 1971 से पहले 500 से अधिक मारवाड़ी परिवार यहां रहते थे। उन्हें पाकिस्तानी सेना और उनके स्थानीय एजेंटों ने निशाना बनाया था। उस दिन (13 जून, 1971) 15-20 पाकिस्तानी कसाइयों ने मारवाड़ी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को एक के बाद एक चाकू से हत्या कर दी।"

स्मारक के वास्तुकार राज कुमार पोद्दार के छोटे भाई गोकुल कुमार पोद्दार ने मंगलवार को आईएएनएस को बताया, "शहीदों की याद में स्मारक निर्माण का काम सात साल पहले शुरू किया गया था, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है।" उन्होंने उस दिन चचेरी बहन और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपनी बड़ी बहन को खो दिया था, जिसकी नई शादी हुई थी।

अग्रवाल और गोकुल पोद्दार दोनों ने उल्लेख किया कि वे उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, जब बांग्लादेश सरकार पाकिस्तानी सेना द्वारा नरसंहार के शहीदों को श्रद्धांजलि देगी और मारवाड़ी परिवार को मान्यता देगी, जिन्हें 13 जून 1971 को बेरहमी से मार दिया गया था।

1971 की शुरुआत से ही पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में 'जातीय सफाई' की अपनी साजिश के तहत स्वतंत्रता सेनानियों, बुद्धिजीवियों और अल्पसंख्यक लोगों की सूची बनाना शुरू कर दिया था।

बाद में शवों को रेलवे ट्रैक के दोनों ओर एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में घुटने के गहरे छेद में दफन कर दिया गया था। बचे लोगों ने कहा, "उन शहीदों को ज्यादातर गीदड़ और कुत्ते खा गए थे।"

नरसंहार की क्रूरता को गोकुल पोद्दार और अग्रवाल ने मंगलवार को आईएएनएस को बताया कि बचे लोगों ने कहा कि नरसंहार के दौरान हत्यारे 'खर्चा खाता, खर्चा खाता' के नारे लगा रहे थे।

उस ट्रेन में जबरन 480 से ज्यादा मारवाड़ी सवार थे।

उस घातक दिन पाकिस्तानी सेना के सैनिकों और सशस्त्र सहयोगियों जमात-ए-इस्लामी के अलबद्रे रजाकार वाहिनी के साथ कय्यूम खान, इजहार अहमद और उनके सहयोगियों द्वारा गोलाहाट के पास नरसंहार किया था।

बचे लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया और नीलफामरी के सैदपुर उपजिला में बर्बर गोलाहट नरसंहार देखा, जिसमें कम से कम 480 लोग थे, जिनमें ज्यादातर मारवाड़ी थे।

अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया, "12 जून की दोपहर से सैदपुर छावनी से दो सैन्य लॉरी हमें हमारे घरों से छावनी तक ले जाने में लगी हुई थीं। उधर, ट्रेन के डिब्बों में घुसे पाकिस्तानी सैनिकों ने 20 युवा मारवाड़ी लड़कियों का अपहरण कर लिया और दहशत के कारण अभिभावक जरा भी विरोध नहीं कर सके।"

रेलवे पुलिया के पास पहुंचने से पहले ट्रेन पटरियों पर बहुत धीमी गति से आगे बढ़ी। ट्रेन में बैठे लोगों ने देखा कि सभी गेट और खिड़कियां बाहर से बंद हैं। विनोद ने देखा कि ट्रेन को पाकिस्तान समर्थक प्रवासियों ने चाकू और संगीन ले जा रहे थे, और पाकिस्तानी सैनिक सिविल ड्रेस में थोड़ी दूरी पर थे।

हत्यारों ने पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को घसीटने के लिए एक-एक करके एक-एक डिब्बे के दरवाजे खोल दिए, पहले उनका सारा सामान लूट लिया और फिर छुरा घोंपकर उनकी दर्दनाक मौत हो गई।

आईएएनएस
ढाका


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