अमेरिका का रणनीतिक उद्देश्य है अपना आधिपत्य बनाए रखना

Last Updated 17 May 2022 11:34:24 PM IST

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने ऐतिहासिक अवसरों के आधार पर वैश्विक आधिपत्य का दर्जा प्राप्त किया।


अमेरिका का रणनीतिक उद्देश्य है अपना आधिपत्य बनाए रखना

साथ ही अमेरिका ने अपनी आधिपत्य स्थिति को बनाए रखने की रणनीति को बनाये रखने की नीति अपनायी। 1990 के दशक तक, सोवियत संघ के साथ आधिपत्य के लिए संघर्ष करना अमेरिकी विदेश नीतियों का मुख्य हिस्सा बना रहा। उधर सोवियत संघ का पतन होने के बाद, अमेरिका दुनिया में एकमात्र महाशक्ति बन गया, और अपनी आधिपत्य की स्थिति को बनाए रखना अमेरिकी कूटनीति का केंद्र बन गया। प्रसिद्ध अमेरिकी रणनीतिकार ब्रेजि़ंस्की ने अपनी पुस्तक द ग्रैंड चेसबोर्ड में स्पष्ट रूप से बताया कि अमेरिका को किसी भी प्रवृत्ति को जबरदस्ती रोकना चाहिए जो अमेरिका के आधिपत्य को खतरे में डाल सकता है।

अमेरिका अंतरराष्ट्रीय इजारेदार पूंजी द्वारा नियंत्रित देश है। अमेरिका के वास्तविक शासक वित्तीय पूंजी हैं। वित्तीय कुलीन वर्ग, राजनीतिक गणमान्य व्यक्ति और अकादमिक अभिजात वर्ग प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सरकारों की नीतियों को नियंत्रित करते हैं। साथ ही, वे विभिन्न माध्यमों से सरकारों को एजेंट भेजते रहते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकारों की नीतियां इजारेदार पूंजी के हितों की सेवा करती हैं। उदाहरण के लिए अमेरिकी राष्ट्रपतियों के चुनाव के पीछे भी अंतरराष्ट्रीय एकाधिकार वित्तीय पूंजी का हाथ है। उद्देश्य है कि सत्ता पर आने के बाद इन के द्वारा लागू की गई नीतियां एकाधिकार पूंजी की सेवा करेंगी।



पिछली शताब्दी की प्रतिस्पर्धा में अमेरिका ने अंतत: शांतिपूर्ण विकास के रणनीतिक से सोवियत संघ को हरा दिया। सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका रूस पर लगातार दबाव बनाने में कामयाब रहा। और अमेरिका ने चीन, भारत, तुर्की और ईरान जैसे देशों के बीच भयंकर प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने की कोशिश की। लेकिन, दुनिया भर में अमेरिका और पश्चिम से नियंत्रित अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का विरोध किया जा रहा है, और राजनीतिक उथल-पुथल इधर-उधर सामने आते रहे हैं। सवाल यह है कि आर्थिक विकास की प्रवृत्ति सामाजिक निष्पक्षता की ओर नहीं लेती है, बल्कि अमीर लोगों को अधिकाधिक संपत्ति प्राप्त होती रही है जबकि आम आदमियों की संपत्ति गंभीरता से कम होने लगी है। यही है समाज में संघर्ष पैदा होने की जड़ें। 1995 में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में आयोजित राजनीतिक अभिजात बैठक ने सामाजिक असंतोष को हटाने और मौजूदा शासन व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बड़ी संख्या में मनोरंजन के उत्पादों को बनाने का प्रस्ताव रखा। पर अगर कोई देश है जो अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी के तहत नहीं होना चाहता, तो अमेरिका को इस देश के कुलीनों को रिश्वत देने, इसके लोगों के मूल्यों को बदलने और यहां तक कि शासन परिवर्तन करवाने आदि के उपाय अपनाना चाहिये। यह इस सदी में विश्व में रंग क्रांतियों के बार-बार फैलने का मूल कारण है।

लेकिन परिवर्तन की प्रवृत्ति को नहीं रोका जा सकता है। विशेष रूप से उभरती अर्थव्यवस्थाओं का तेजी से उदय अमेरिका के आधिपत्य के लिए एक चुनौती बन गया है। इसलिए, अमेरिका ने उभरते देशों के हाई-टेक उद्योगों को दबाने, इन देशों के बीच संघर्ष और युद्ध को भड़काने का प्रयास किया है। अमेरिका का मानना है कि चीन का निरंतर आर्थिक विकास, विशेष रूप से उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में प्राप्त प्रगतियां, उसके आधिपत्य के लिए एक गंभीर खतरा है। इसलिए, अमेरिका ने चीन की प्रतिस्पर्धात्मकता को कमजोर करने के लिए चीन के खिलाफ लगातार प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया। उधर अमेरिका ने नाटो के विस्तार के जरिये रूस के रणनीतिक गुंजाइश को दबाने की नीति अपनायी। अमेरिका का उद्देश्य है कि अंत में एक क्षेत्रीय युद्ध के माध्यम से रूस का पूरी तरह से पतन कराया जाएगा। पर भारत के लिए, अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी जैसी संरचना के माध्यम से भारत को अपने स्वयं के रणनीतिक ढांचे में शामिल करवाने का प्रयास किया है।

लेकिन, अमेरिका की आधिपत्य की रणनीति शांतिपूर्ण विकास की ऐतिहासिक प्रवृत्ति और विश्व जनता के मौलिक हितों के खिलाफ होती है। हाल के वर्षों में अमेरिका द्वारा तैयार की गई विदेशी रणनीति का अब कोई स्पष्ट तर्क नहीं है, लेकिन आधिपत्य बनाए रखने के लिए उन्माद का एक अराजक रंग दिखाता है। उधर अमेरिका में जटिल और तीखे वर्ग विरोधाभास और नस्लीय संघर्ष के कारण से आम लोग इजारेदार पूंजी के हितों के लिए काम नहीं करना चाहते। सांस्कृतिक क्षय, राजनीतिक विभाजन और निरंतर आर्थिक संकट अमेरिकी आधिपत्य के अपरिहार्य पतन का कारण बनते हैं, और अंतत: एक निष्पक्ष और न्यायसंगत विश्व व्यवस्था स्थापित हो जाएगी।

आईएएनएस
बीजिंग


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