इराक के कुर्द क्षेत्र में ‘खतना’ के खिलाफ आवाज उठा रही महिलाएं

Last Updated 03 Jan 2019 06:57:44 AM IST

इराक के एक कुर्द गांव में ठंड में काले बादलों और बारिश के आसार के बावजूद एक महिला घर के बंद दरवाजे के बाहर खड़ी है। वह वहां से हिलने को तैयार नहीं है, क्योंकि उसे डर है कि उसके जाने के बाद उस घर में रहने वाली महिलाएं अपनी दो बच्चियों का खतना कर देंगी।




इराक के कुर्द क्षेत्र में ‘खतना’ के खिलाफ आवाज उठा रही महिलाएं (सांकेतिक फोटो)

बचपन में खतने का दंश झेल चुकीं 35 वर्षीय रसूल घर के बाहर खड़ी हैं और आवाज लगा रही हैं मुझे मालूम है कि आप घर में हैं। मुझे सिर्फ बात करनी है। इराक के कुर्द इलाके में महिलाओं/बच्चियों के खतने के खिलाफ जबरदस्त अभियान चलाने वाले ‘वादी’ एनजीओ की कार्यकर्ता रसूल कई बच्चियों के लिए देवदूत जैसी हैं। एक वक्त इराक के कुर्द इलाके में बच्चियों/महिलाओं के बीच खतना बहुत सामान्य बात थी।

लेकिन ‘वादी’ के अभियान ने काफी हद तक इस संबंध में महिलाओं की सोच बदली है और अब पूरे इराक के मुकाबले कुर्द क्षेत्र में बच्चियों के खतने की संख्या में कमी आयी है। रसूल क्षेत्रीय राजधानी अरबिल के पूर्व में स्थित शरबती सगीरा गांव में खतने के खिलाफ जागरुकता फैलाने और इस परंपरा को बंद कराने के लिए 25 बार जा चुकी हैं।

वह गांव के इमाम की सोच को बदलने का प्रयास कर रही हैं, जो सोचते हैं कि खतना इस्लामिक परंपरा है। वह गांव की प्रशिक्षित दाईयों को खतने से होने वाले नुकसान, उसके कारण वर्षों तक होने वाले रक्तस्रव, संक्रमण के खतरों और मानसिक प्रताड़ना के संबंध में समझाती हैं।

इराक के कुर्द इलाके की बात करें तो इसे सामान्य तौर पर महिलाओं के लिए प्रगतिशील क्षेत्र माना जाता है लेकिन यहां भी दशकों से बच्चियों के खतने की परंपरा रही है। तमाम अभियानों के बाद कुर्द प्राधिकार ने 2011 में खतने को घरेलू हिंसा कानून के तहत शामिल कर खतना करने वालों के लिए अधिकतम तीन साल की सजा और करीब 80,000 अमेरिकी डॉलर के जुर्माने का प्रावधान किया था। कानून बनने और एनजीओ के अभियानों के बाद खतने की संख्या में कुछ कमी भी आयी है।

एएफपी
शरबती सगीरा


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